प्रेम राधा प्रेम मीरा
प्रेम राधा प्रेम मीरा
वृद्धाश्रम में चलते चलते एक महिला पर नजर पड़ी।अखबार में नजर गड़ाए हमें इगनोर करने की कोशिश कर रही थी। हम उनके करीब गए तो बिना पूछे ही कहने लगी
"हमें किसी ने घर से नही बाहर किया।हम अपनी मर्जी से यहाँ आये है।"नजरें फिर अखबार पर।
समझ गई ऐसे प्रश्नों से ऊब चूकी हैं।सच भी यही होगा।जरूरी नही की बच्चे ने ही माँ को निकाला हो।पर उनसे बात करने का मन तो कर रहा था।जरा विषय बदलती हुई कुछ सोचने लगी।
फिर जाकर पूछी " बुआ एक बात बताओगी।"
बुआ सुनते ही आंख में स्नेह झलकने लगा।
बोली। "पूछो"
"बुआ आपके समय मे प्यार होता था।"
मैने भी पूछ ही लिया।
"होता क्यों नही था।प्यार तो हर समय में होता था।"
उन्होंने कहा।
मैं थोड़ी और करीब आकर पूछी "बुआ आपको किसी से प्यार हुआ था या आपसे किसी ने प्यार किया था क्या।"
अब बुआ जरा आराम से बैठ गई ।कहने लगी "तब के जमाने में लड़कियों को नही पढ़ाते थे।मेरे पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे।उन्हें इंदिरा जी बहुत अच्छी लगती।इसलिए मेरा नाम भी इंदु रख दिये। जैसे कालेज में गई कई लड़के लड़कियां थे।एक मुझसे बातें भी खूब करता था।कुछ दिन बाद वह कालेज ही छोड़ दिया"
मैने पूछा "क्यों"?
"अरे भैया हमारे जान गए थे।"मुझे कुछ नही बताया और जाकर लड़के को धमका दिया।
बेचारा डर से कालेज छोड़कर दूसरे कालेज में चला गया।मुझे तो बहुत साल बाद पता चला।"कह कर मुस्कुराने लगी।
"फिर आपको पता कब चला।"मैं भी पूछ दी।
"दरसल एक ही बेटी है वह भी लन्दन में।मेरा वहां मन नही लगता और यहाँ भी घर में अकेली पड़ जाती हूं।इसलिए यहाँ आ गई।अपनी उम्र के लोगों से बात करना अच्छा लगता है।
कुछ दिन पहले एक हमारी उम्र के ही डॉक्टर हमारा चेक अप करने आये।बीपी चेक करते पूछते हैं कि आप इंदु है क्या।" मैं चौंक गई।पूछा फिर।
"डॉक्टर साहब ने याद दिलाया "मै मणिभूषण ।आपके साथ कालेज में पढ़ता था।"
कुछ जोर देने पर याद आया।
"अरे! आप तो कालेज छोड़ कर भाग गए थे न"।
"भागा कहाँ था !भगाया गया था।"
"पर क्यों,आप तो कॉलेज से सबसे तेज विद्यार्थी थे।"
"पर क्या करूँ।आपसे एक तरफ़ा प्रेम हो गया था।वेसे भी उन दिनों कालेज में दो चार लड़कियां ही थी।भावुकता में यह बात अपने मित्र को कह दी,उन्होंने चुपके से जाकर आपके भाई साहब को चुगली लगा दी। फिर क्या था।आ गए हमें धमकाने।"
वाह जी प्रेम का पता भी चला तो साठ की उम्र में।
"बुआ फिर क्या हुआ।बताओ तो!
"फिर क्या,अगले दिन पत्नी सहित आये हमसे मिलने।उनकी पत्नी ने हँस हँस कर बताया डॉक्टर साहब अपना पहला प्रेम अब तक नही भूले।घर मे बच्चों तक को पता है उनके प्रेम के बारे में।"
वाह बुआ! तब का प्रेम ऐसा था।और आपको अहसास तक नही कोई इतनी उम्र से इतनी शिद्दत से आपको चाहता था।
"नहीं, मुझे क्या पता।अब भी डॉक्टर साहब आते हैं।उनकी पत्नी उनके बच्चे सब मुझसे मिलते हैं।हर पर्व त्यौहार में मुझे घर भी ले जाते हैं।
बुआ सच में आपका प्रेम अलौकिक प्रेम था।

