Chhavi Gautam

Romance

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Chhavi Gautam

Romance

प्रेम की कश्ती

प्रेम की कश्ती

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सुनिधि कार में बैठ अपने घर के लिए वापस निकल गई थी लेकिन उसका दिल, "वो तो आरव के पास मुंबई में ही रह गया था।" हल्की हल्की बारिश की फुहार भी आज उसे चुभ रही थी मानो की कह रही हो की बस सुनिधि तुझ से नहीं हो पायेगा। सहेली की विदाई पर तो तेरे एक आंसू नहीं निकला लेकिन शिवानी के घर से चलते समय तू कैसे फूट फूट कर रो कर आई है जिसका कारण सिर्फ आरव से दूर होना था।

कोई भला क्या सोचता होगा की कैसी पागल लड़की है मेहमान बनकर आई थी और अपने घर लौटने पर ऐसे पागलों की तरह रोई। नाक मुंह सब लाल कर लिए।


सुनिधि यहां मुंबई में अपनी सहेली शिवानी की शादी के लिए आई थी लेकिन उसे क्या पता था की शादी में उसे कोई ऐसा मिल जाएगा जिसके साथ दिल हर पल रहना चाहेगा। कोई अनजान जिसको वो जानती तक नहीं लेकिन सिर्फ दो दिन की मुलाकात में वो अजनबी अपना लगने लगेगा इन्हीं सब उधेड़ बुन में उदास मन लिए सुनिधि अपने घर पुणे पहुंचती है।


सब कुछ तो वही था पहले जैसा लेकिन बस सुनिधि ही खोई खोई सी थी होती भी क्यों नहीं उसको आरव से प्यार जो हो गया था। ऑफिस में भी सुनिधि अब खोई सी ही थी की कोई पूछे सुनिधि क्या हुआ है सब ठीक तो है ? और वो रो ही दे।

अकेले में तो आरव के फोन का इंतजार कर कर के कितनी बार रो चुकी थी लेकिन गलती उससे ये हुई की उसके पास आरव का फोन नंबर नहीं था इसलिए एक मात्र बस इंतजार के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।


घर में भी चुप चुप उदास ऑफिस में भी वही हाल जिसको सब नोटिस तो कर रहे थे लेकिन ये सोच चुप लगा जाते की शायद तबीयत या मन ठीक ना हो। शादी से आते ही ऑफिस जाना था तो थकान के कारण थोड़ी चिड़ चिड़ी रहने लगी है।


एक दिन ऑफिस में पहुंची तो सुनिधि की आंखें सूज कर मोटी मोटी हो चुकी थी। पूछने पर सबके बोल दिया की सर दर्द है और रात को सो नहीं पाई हूं।

अब बेचारी करती भी तो क्या, क्या बताती सब को ? यही की दोस्त की शादी में वो उसके ही चचेरे भाई को अपना दिल दे आई है जिसका उसे ये भी नहीं पता की ये फीलिंग एक तरफा है या दोनों तरफ एक जैसा ही हाल है।

लेकिन सुनिधि का दिल ये सोच सोच ज्यादा परेशान उसे अभी तीन दिन हुए मुंबई से आए और उसके लिए तो एक एक पल सदियों जितना लंबा कट रहा है तो क्या, आरव के मन में उसे लेकर कोई फीलिंग नहीं थी क्योंकि अगर वो भी मुझे मिस कर रहा होता तो वो तो मुझे फोन कर सकता था उसने तो मेरा फोन नंबर चलते समय मुझ से लिया था। फिर क्यों ? अभी तक एक कॉल तक नहीं।


प्रिया ( सुनिधि की कलीग) सुनिधि के चेहरे के हाव भाव पहले दिन से ही नोटिस कर रही थी प्रिया ने सुनिधि से पूछा भी था।

सुनिधि एवरी थिंग इज ऑल राईट," प्रिया ने पुछा।"

सुनिधि ने," एक हल्की सी झूठी मुस्कान के साथ गर्दन हिलाते हुए हाँ में जवाब दिया।"

आज प्रिया ने सुनिधि की सूजी हुई आंखें और आंखों में छुपे आंसू भांप लिए थे उससे रहा नहीं गया।

देख सुनिधि बहुत हुआ तेरा ड्रामा। ये झूठ बोल बोलकर ना तू बाकी लोगों को बेवकूफ बना मुझे नहीं। क्या हुआ है कब से देख रही हूं तुझे जब से तू छुट्टी से वापस आई है तब से तेरा हाव भाव ही बदले हुए है। चुप-चुप उदास रहती है। ना ही तेरे चेहरे पर वो पहले वाला ग्लो मुझे नजर आता है। हुआ क्या है बताएगी।

प्रिया के पूछने पर सुनिधि उसे बताती है कि कैसे वो शिवानी की शादी में आरव से मिली।


शिवानी की मेहंदी के दिन सुबह ही मैं पहुंच गई थी फ्रेश होकर नहा कर जब मैं बाहर आई तो घर में बाकी मेहमान जो पहले से मौजूद थे उनसे तो मैं मिल चुकी थी लेकिन ये कुछ चेहरे नए थे। जैसे ही मैं वहाँ से गुजरी तब ही साइड से आवाज आई, "भाई साहब ये बिटिया कौन है? मैं रुकी और हाथ जोड़कर नमस्ते किया।"


शिवानी के पापा ने उनसे मेरा इंट्रोडक्शन करवाया की ये भी हमारी ही बिटिया ही है शिवानी की सहेली हैं सुनिधि। पुणे से आई है और फिर उन सब का तब मुझे पता चला की वो शिवानी के चाचा चाची और उनका बेटा आरव है। मेरी नजर आरव पर पड़ी तो चेहरे पर हल्की स्माइल लिए हैलो करने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया मैंने भी बदले में वही किया।


उसके बाद तो जहां वो जाती आरव भी बहाने से वही जा बैठता। अब तो मुझे थोड़ा अनकंफर्ट लगने लगा था मतलब मुझे उसका ये सब करना अच्छा भी लग रहा था और मैं उसके सामने आने पर शरमा भी जाती जो मुझे खुद में ही ऑकवर्ड फील भी करवा रहा था की मै अजीब सी हरकते क्यों करने लगी हूं जबकि ऐसा भी वो कुछ नहीं बोल रहा है या कर रहा है जो उसके आने से मै शरमा जाती हूं।

मेहँदी से अगली सुबह जब शिवानी को ढूंढते हुए मैं उस कमरे में पहुंची जहां आरव सोया हुआ था तो शिवानी और आरव वही बैठ बाते कर रहे थे मुझे देख शिवानी ने आरव को तिरछी नज़र करते हुए छेड़ा और आरव भी थोड़ा शरमा अपने बालो को सही कर बोला आओ सुनी बैठो।

सुनी!!!! क्या बात है भैया आपने तो सुनिधि का सुनी कर दिया," शिवानी ने आरव की खिंचाई करते हुए फिर एक तंज कस दिया।


अरे !! सुनिधि बहुत लंबा नाम है इसलिए मैंने सुनी बोल दिया," आरव ने जवाब दिया।"

हां हां भैया हम सब समझ रहे है। क्यों सुनी सही कहा ना मैंने," शिवानी ने मुझ से कहा और जोर से हम तीनों हंस दिए।"

अरे शिवानी अपनी मेहँदी तो दिखाओ। शिवानी की मेहंदी देखना तो शायद एक बहाना था मेरी मेहँदी देखने का। शिवानी के बाद उसने मेरी मेहँदी देखने को कहा मैंने भी अपना हाथ आगे कर दिया।

अरे ये क्या तुमने एक ही हाथ में क्यों दूसरे में क्यों नहीं लगवाई," आरव ने मुझ से पूछा।"


मैंने भी बोल दिया की मुझे पसंद नहीं है वो तो शिवानी के बोलने पर मैंने लगवा ली अदरवाइस मैं मेहँदी नहीं लगाती। उसके बाद उसने बहाने से मेरा हाथ पकड़े ही रखा। मेरे छुड़ाने पर भी नहीं छोड़ा और शिवानी की नज़र बचते ही उसपर अपने प्यार का एक स्पर्श जल्दी से चिपका दिया।


मेरी हालत उस समय ऐसी थी की शर्म से पानी हो जाऊँ। फिर वहाँ अपनी मम्मी को अचानक से देख उसने मेरा हाथ छोड़ा।


पूरी शादी से विदाई तक हम शादी में ही व्यस्त रहे। हम दोनों में से किसी ने भी अपने प्यार का इजहार तो नहीं किया था लेकिन ये दोनों को समझ आ रहा था की आग दोनों तरफ बराबर की है। मैं भी उसे पसंद करने लगी थी। शिवानी की विदाई के बाद जब मैं वापस आ रही थी तो वो मुझे कहीं नजर ही नहीं आया मुझे लगा की अब तो मुझे उससे मिले बिना ही जाना पड़ेगा क्योंकि मेरी कैब आ चुकी थी और मन में सोचा शायद ये कहानी सिर्फ इतनी ही थी।


अंकल आंटी मुझे बाहर तक छोड़ने के लिए वहाँ खड़े ही थे मैं गाड़ी में बैठ ही चुकी थी तभी पीछे से आवाज आई सुनी !!!! मेरे दिल की धड़क तेज हो रही थी शरीर में एक अलग सा कंपन मैं महसूस कर पा रही थी और अचानक से मेरे आंखों से आंसू निकल पड़े थे तभी खिड़की पर आरव आकर रुका वो भी हाँफ रहा था शायद जल्दी जल्दी भाग कर आया था। उसके चेहरे पर मुझे गुस्सा और प्यार दोनों एक साथ नज़र आ रहे थे। उसने अपनी पॉकेट से पैन निकला और मेरे हाथ में थमा दिया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर कहा," अपना नंबर लिखो सुनी।" मैंने भी बिना वक्त गवाए अपना फोन नंबर उसके हाथ पर लिख दिया।


उसने मेरा हाथ जोर से पकड़ा और मेरी आंखों में आंखें डालते हुए," मैं तुम्हें कॉल करूंगा सुनी। ध्यान रखना अपना बाई।"

भैया कार सही से ड्राइव कीजिएगा," कैब वाले से आरव ने बोला।"


उसके बाद मैं पूरे रास्ते इसी उम्मीद में खुश होती आई की अब हम अलग नहीं हुए है। आरव का फोन के इंतजार में मैं अपना मोबाइल एक सेकंड के लिए भी खुद से दूर नहीं करती। रात को सोती भी नही हूं ठीक से इस उम्मीद में कही उसका फोन आया और मेरी आंख लग गई तो उसकी कॉल मुझ से मिस हो जाएगा। और बाकी तो तू मुझे देख ही रही है। बस यही कारण है मेरी उदासी का," सुनिधि ने प्रिया से कहा।"


ओह!! तो लव शव का मामला है। मतलब मेरी छठी इंद्री सही बोल रही थी की ये किसी के इश्क का जादू है जो मिस सुनिधि के सर पर चढ़ कर बोल रहा है। "प्रिया ने सुनिधि से ठिठोली करते हुए कहा।" सुनिधि मुस्कुरा जाती है।


अरे!!!! मेरी पागल लैला इसमें इतना परेशान होने की जरूरत क्या है सही कहते है लोग इश्क में लोग अंधे हो जाते है। आज के जमाने में तू कहा जी रही है उसने फोन नहीं किया तो तू कर ले," प्रिया बोली।

अरे ! मेरे पास उसका नंबर नहीं है कितनी बार बताऊं," सुनिधि खुद पर ही झुंझलाते हुऐ बोली।"

माना तेरे पास आरव का नंबर नहीं है लेकिन शिवानी का तो है ना। उसके हाल चाल पूछने के बहाने से ही सही तू शिवानी को फोन कर ले क्या पता आरव का ही कुछ मैसेज मिल जाए," प्रिया ने कहा।


सुनिधि शिवानी को फोन करती है एक दूसरे का हाल लेने के बाद शिवानी सुनिधि को बताती है की आरव उसका कॉन्टेक्ट नंबर पूछ रहा था उससे, लेकिन उसने सोचा की पहले वो उससे पूछकर ही उसका नंबर शेयर करेगी।


सुनिधि ने शिवानी को हां में उत्तर दिया तभी शिवानी बोली की अरे सुनिधि मैं थोड़ा व्यस्त हूं अभी कुछ दिन शादी की रस्मों से अभी फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है तुम आरव को खुद ही कॉल कर लेना मैं अभी नंबर शेयर कर रही हूं वरना बाद में भूल जाऊंगी। आरव भैया कितनी बार मुझ से तेरा नंबर मांग चुके है। तू उन्हें ध्यान से कॉल कर लेना।

सुनिधि को और क्या चाहिए था। शिवानी ने तो जैसे उसके मन का हाल जान सब उसके मन के मुताबिक ही कर दिया था।


आरव का नंबर मिलते ही सुनिधि ने डायल किया। रिंग होते ही दिल की धड़कने तेज हो गई थी। होंठ पहले से ही कांपना शुरू कर दिया था जुबान साथ देने की हालत में नहीं थी। मन किया की फोन काट दू लेकिन तभी उधर से "हैलो आरव दिस साइड"। कानों में गूंज गया।

मानो आस पास मधुर प्रेम गीत बज रहे हो , गिटार की धुन कानों में अपने आप ही सुनाई दे रही थी।


हैलो आरव," मैं सुनिधि!! अभी शिवानी से मेरी बात हुई तो उसने बताया की तुम मुझ से बात करना चाहते थे।"


सुनी," यार तुम कहाँ थी कितना परेशान हो गया था मैं तुम्हें अंदाजा भी है कुछ इस बात का। शिवानी को कितने मैसेज किए मैंने, कॉल भी किया, तुम्हारे बारे में जानने के लिए लेकिन वो शादी की रस्मों में ही व्यस्त थी।" आरव लगातार बोले जा रहा था उसकी बातों में उसकी बेचैनी मैं बहुत अच्छे से महसूस कर पा रही थी।


लेकिन आरव मैंने तुम्हें अपना कॉन्टैक्ट नंबर दिया तो था फिर तुम्हें शिवानी से क्यों मांगना पड़ा", सुनिधि ने पूछा।

तुम तो चुप ही करो ! मुझे तुम पर इतना गुस्सा आ रहा था की क्या बताऊं तुम्हारे ही कारण मैं इतने दिन परेशान रहा हूं। मुझे गलत नंबर क्यों दिया तुमने पहले ये बताओ" आरव बोला।

ओह!!!! नंबर गलत दे दिया था मैंने। सॉरी आरव उस वक्त मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था।" सुनिधि ने जवाब दिया ।


क्यों दिमाग काम क्यों नहीं कर रहा था। जानता हूं मैं कि मुझ से दूर जाने के कारण तुम अपसेट थी मैंने देखा था तुम्हारी आंखों में क्योंकि तुम्हारे जाने की खबर सुनकर मैं भी पागलों की तरह भागा था तुम्हें बाई बोलने के लिए।


सुनी अगर तुम हां कहो तो क्या मैं तुम से मिल सकता हूं प्लीज ना मत करना। मै तुम से दूर अब नहीं रहना चाहता हूं। तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। मैं चाहता हूं की हम कभी अलग ना हो। हमेशा साथ रहे। ऐसा मेरा दिल करता है और तुम क्या चाहती हो ? तुम बोलो," आरव ने पूछा।


सुनिधि की खामोशी उसका जवाब थी। दोनों मिलने का प्लान बनाते है और मिलकर अपने प्यार का इजहार कर प्रेम की कश्ती में गोते लगा साथ साथ उड़ान भरते है।


डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।


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