प्रेम का स्वाद
प्रेम का स्वाद
तेज़स छोटी-छोटी बातों पर उलझ जाता,निशा कितना ही चुप रहने की कोशिश करती,लेकिन तेज़स को कुछ न कुछ बोलना ही रहता,अक्सर झगड़ों का कारण तेज़स का क्षणिक आवेश और अहंकारी स्वाभाव होता।
आज निशा का मूड भी कुछ उखड़ा हुआ था,रसोई में काम करते-करते बड़बड़ाती जा रही थी,छुट्टी के दिन भी आराम नहीं,बस काम करते रहो,औरतों का तो जीवन ही कोल्हू का बैल है,जहाँ बाँध दो वहीं घूमती रहती हैं।
यह सुनते ही तेज़स का अहंकारी स्वभाव अपशब्द बोल उठा,जिसे सुनकर आज निशा भी उखड़ गयी और दोनों में जमकर झगड़ा हो गया,डाइनिंग टेबल पर रखा हुआ भोजन रास्ता देखता रहा, लेकिन उसे खाने वाला आज कोई नहीं था।तेज़स की आदत ऐसी थी कि जब भी निशा गुस्से में खाना नहीं खाती तो,वो उसे मनाने के वजाए खुद भी बिना खाना खाए ही सो जाता।
सुबह हो गयी,तेज़स उठा लेकिन निशा के रूम का दरवाजा नहीं खुला।मार्निंग वाक से भी आ गया,फिर भी निशा नहीं उठी।जल्दी उठने वाली निशा आज इतने देर तक कैसे सो रही है!!, अब तो तेज़स के मन में जाने कितने ही उल्टे-सीधे ख्याल आने लगे।
नहीं-नहीं भगवान्,आप ऐसा नहीं कर सकते हैं,फिर वो दरवाजे के पास जाता लेकिन अनजाने भय की वजह से उसे बिना खटखटाए ही आ जाता।कही ऐसा न हो कि.........।
अंदर-बाहर टहलते-टहलते आकर किचन में चाय बनाने लगा,कि शायद खटपट की आवाज़ से वो उठ जाए,जोर-जोर से अदरक कूटा फिर भी निशा नहीं उठी,अब तो शक की सूई और तेजी से बढ़ने लगी, और उसी रफ्तार से तेज़स की श्वास भी अटकती जा रही थी,जरूर कुछ गड़बड़ है।
वो पसीना-पसीना हो गया और ईश्वर की शरण में बैठ माफी माँगने लगा,कि खटटटट दरवाजे की आवाज़ के साथ निशा किचन में जाते हुए दिखी,वो दौड़ कर उससे इस तरह लिपट गया,जैसे वर्षों से कोई खोया हुआ मिल गया हो।
निशा हतप्रभ सी पूछती रही,क्या हो गया ? तेज़स कुछ बोलने के वजाए फूट-फूट कर रोता रहा।निशा घबरा गयी,क्या हुआ तेज़स,अम्मा-बाबू जी ठीक तो हैं न ?
हाँ निशा सब ठीक है। तो फिर आप इतना रो क्यों रहे हैं ! ?,
निशा अब आज के बाद इस घर में कभी झगड़ा नहीं होगा, मुझे आज समझ में आ गया कि तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊँगा।
इतना सुनते ही निशा की तरसती आँखों ने आँसुओं की धार बहा दी,अब तेज़स के आँसुओं से निशा और निशा के आँसुओं से तेज़स का बंजर पड़ा हृदय प्रेम के रस से भींग रहा था।