प्रेम का रंग
प्रेम का रंग
अपने नन्हें पैरों से तेजी से लम्बे डग भरते हुए वह मन्दिर प्रांगण के अन्दर प्रवेश करने वाले हर भक्त से उम्मीद भरी आंखों से विनती कर रही थी। काफी देर से एक प्रयास के सफल होने की आशा में हर बार निराशा हाथ आने पर भी वह अपनी हार नहीं मान रही थी।
‘बीबीजी, प्रसाद और फूल लेकर जाओ। बीस रुपये में दोनों दे दूंगी।’ मन्दिर की सीढ़ियों पर उसके पीछे पीछे आते हुए उसने उससे भी विनती की।
‘बीबीजी, ले लो न ! सुबह से कुछ न बिका है। मातारानी आपकी झोली खुशियों से भर देगी।’ उससे कोई जवाब न पाकर उसकी आंखों में फिर से उदासी उतर आई।
इस बार उसने पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखा। उसे उसकी नन्हीं कोमल आंखों में कुछ नजर आया और उसका हाथ अपने ब्लाउस में छिपा रखे बटुए को छू गया।
‘बच्चे तो भगवान का रुप होते है। क्या पता मातारानी इस रुप में परीक्षा ले रही हो ?’ बीस का नोट उसकी तरफ बढ़ाते हुए वह मुस्कुराई।
खुशी से उसने फटाफट झोली से कुछ और फूल निकालकर हाथ में रख लिये।
‘वैसे तेरा नाम क्या है री ?’ उसके चेहरे पर छाई खुशी अनुभव करते हुए उसने उससे पूछा।
प्रसाद की पुड़िया और फूल उसकी तरफ बढ़ाते हुए उसने बीस का नोट लेने के लिए खुशी से अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और जवाब दिया, ‘फातिमा’
उसका जवाब सुनकर बीस का नोट थामा गया हाथ थोड़ा सा पीछे हट गया और चेहरे के भाव कुछ बदल से गये। प्रसाद की पुड़िया और फूल वाले हाथ अब भी उसकी तरफ एक आस के साथ बढ़े हुए थे।
‘मम्मी जी ! भक्ति के रंग के संग सद्भावना और प्रेम का रंग मिल जाएगा तो मातारानी और ज्यादा खुश हो जाएगी।’ सहसा उसके पीछे खड़ी बहू ने बीस रुपये वाला हाथ पकड़कर थोड़ा सा आगे बढ़ा दिया।
उसने उसे एक नजर देखा। धर्म के रंग में प्रेम का थोड़ा सा रंग मिलकर एक उम्मीद को जन्म देने को तत्पर था।
प्रसाद की पुड़िया और फूल वाले नन्हें से हाथ में अब बीस का नोट मुस्कुरा रहा था।