प्रेम का आदर्श
प्रेम का आदर्श
एक दिन धर्मदास जी, जो कि कबीर पंथ के बड़े आचार्य थे और कबीर दास जी के परम शिष्य। एक दिन की बात है धर्मदास जी भोजन बना रहे थे और जब रसोई तैयार कर रहे थे, उन्होंने देखा एक लकड़ी में से सैकड़ों चीटियां अपने अंडे बच्चे लेकर भाग रही है और अनेकों चूल्हे की नज़र हो गई है।
यह देख इनको बड़ा ही सोच हुआ। मन में संकल्प किया कि इसका प्रायश्चित कैसे किया जाए, तो उन्होंने उपवास रखा और बनी हुई सामग्री को किसी भूखे को देने के लिए सोचा।
चौके से बाहर निकल आए। सामने पेड़ के नीचे एक अति ही दीन और दरिद्री साधु बैठा हुआ दिखाई दिया, सोचा यह सब सामान इस बेचारे को दे देना चाहिए। अच्छा है आज का इसका काम चल जाएगा।
धर्मदास जी ने चौके की सारी सामग्री को उठाया और उस मलीन वेषधारी वृद्ध साधु के पास जाकर कहने लगे, "लो महाराज भोजन कर लो।" साधु हँस पड़ा और कहने लगा, वाह ! खूब रहे ? जिस भोजन में चीटियों का नाश हो वह तो मुझे खिलाओ और जो अच्छा और पवित्र हो तो आप खाओ यही तुम्हारी उपासना और भक्ति है कि अच्छा -अच्छा आपको और बुरा- बुरा दूसरों को, क्या तुम्हारे किसी देव ने तुम्हें यह नहीं बताया कि अमुक लकड़ी में चींटी हैं इसे चूल्हे में ना दो। तो फिर ऐसे देव की पूजा करने से क्या लाभ।
यह कहने के बाद साधु एकदम वहां से अंतर्ध्यान हो गया, अब धर्मदास जी को बहुत पछतावा हुआ और वह रोने लगे और मथुरा के गली -कूचों में उन्हीं साधु की तलाश करने लगे और बिना अन्न और जल ग्रहण किए बिना, सातवें दिन काशी के लिए चल दिये। धर्मदास जी ने काशी में जब उन साधु से भेंट हुई तब उनके चरणों तले गिर पड़े और रोने लगे और कहा प्रभु मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मैं यह नहीं जानता था कि आप ही मेरे गुरु हैं, इसलिए प्रेम अद्भुत वस्तु है जो इसके फंदे में पड़ गया वह घर का रहा ना घाट का।
प्रेम में न खाना ही अच्छा लगता है न सोना। प्रेमियों की रात हमेशा जागते ही कटतीं है, प्रेम मतवाला बना देता है, कभी हँसाता है तो कभी रुलाता है। प्रेमियों को दुनिया दीवाना और मजनूँ के नाम से पुकारती है।
प्रेम के आते ही शर्म -हया वा बढ़ाई रुखसत हो जाती है। इस प्रकार धर्मदास जी ने एक "प्रेम का आदर्श" रूप प्रकट किया। प्रेम ही एक ऐसी वस्तु है जिससे हम किसी को भी प्राप्त कर सकते हैं और व्याकुलता प्रेम में इतनी बढ़ जाती है कि प्रभु उनके सामने आने को निश्चित ही मजबूर हो जाते हैं और भक्तों को बिल्कुल अहंकार रहित कर देते हैं और हमेशा- हमेशा के लिए उसको अपने हृदय से प्रभु लगा लेते हैं, और उसके मोक्ष का द्वार हमेशा- हमेशा के लिए खोल देते हैं। प्रेम एक ऐसी वस्तु है जिससे बुरे से बुरे आदमी को भी पिघलाया जासकता है।
भगवान बुद्ध ने अंगुलीमाल जैसे खतरनाक डकैत को "प्रेम"से ही पिघला दिया था।
कहा भी गया है कि-" सबसे ऊँची प्रेम सगाई"।