प्रेम और समाज
प्रेम और समाज
रितेश अपनी मस्ती से अपने दफ्तर की सीढ़ियाँ उतर ही रहा था कि अचानक उसकी नज़र सामने बैठी नेहा पर पड़ी जो शायद उस कंपनी में इंटरव्यू देने आयी हुई थी। पर दोनों ही एक दुसरे को इग्नोर करते हुए अपने अपने कामों में लग गए। अगले दिन सुबह जब रितेश अपने दफ्तर पहुँचा तो उसने देखा कि नेहा उसके सामने वाले बेंच पर बैठी मोबाइल देख रही थी। रितेश की नज़र ना चाहते हुए भी उसी की तरफ ही जा रही थी। मोबाइल देखते देखते उसका मुस्कुराना। ना जाने क्यों रितेश को उसकी तरफ आकर्षित कर रहा था। अचानक नेहा की नज़र रितेश पर पड़ी।
रितेश - हेलो! मेरा नाम रितेश है
नेहा - (मोबाइल अपने बैग में डालते हुए) हेलो ! मैं नेहा
रितेश - तुम यहाँ??
नेहा - आज मेरा पहला दिन है।
रितेश - कोई नहीं अभी रजनी मैडम आके तुम्हें सारा काम समझा देंगे।
इतना कह कर रितेश अपने काम में लग गया। पर बार बार उसकी नज़र उसके पर जा रही थी।
आँखों में हया, दिल में एक झिझक, पहले दिन की घबराहट नेहा के चेहरे पर साफ़ दिख रही थी।
थोड़ी देर में रजनी मैडम आये उन्होंने रितेश को बोलै कि कम्प्यूटर्स पे नेहा को काम समझा देना।
नेहा को शायद रितेश पसंद नहीं था क्युकी रितेश का स्वभाव था मज़ाक वाला एक चंचल सा और नेहा एक दम शांत।
पर नेहा ने जैसे तैसे रितेश को बर्दाश्त किया।
एक साधारण सा दिन था जब नेहा और रजनी मैडम आपस में बात कर रहे थे। रितेश भी अपना काम कर रहा था।
यह भगवान भी कितना निर्दयी है। कैसे हुई तुम्हारे पति की मौत ? रजनी ने जब नेहा से पूछा। रितेश को अचानक से सदमा लगा और वो हैरान सा होकर उनकी बातें सुनने लगा।
नेहा - अभी ६ महीने पहले ही कैंसर से हुई थी उनकी मौत। बस अब क्या करें? अपनी एक बची को भी पालना था और मैं अपने ससुराल वालों पे भोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए आज नौकरी कर रही हूँ।
ये सुन के मानो रितेश के पैरों तले ज़मीन निकल गई थी। इस बात ने रितेश के दिल में नेहा के लिए एक इज़्ज़त जगा दी थी। वो नेहा बस खुश देखना चाहता था। उसने धीरे धीरे नेहा से बातें करनी शुरू की। उसको हसाना, उससे घंटों बातें करना उससे अच्छा लगता था। धीरे धीरे नेहा को भी उसका साथ अच्छा लगने लग गया था। वो भी अपना सब दुःख सुख रितेश को बताती थी। उन दोनों की दोस्ती को एक साल बीत गया था।
एक दिन रितेश ने भी अपने दिल की बात नेहा को बता दी। उसने प्यार का इज़हार कर दिया। नेहा निशब्द थी क्युकी उसकी बीती ज़िन्दगी उसके आड़े आने लगी और एक तो वो एक बच्चे की माँ थी और दूसरा रितेश से उम्र में भी बड़ी थी।
यह कहानी सत्य घटना पे आधारित है। जो समाज से एक प्रश्न पूछता है। कि क्या किसी को उस व्यक्ति से प्यार व् शादी करने का अधिकार नहीं जो उससे उम्र में बड़ा हो या सामाजिक दायरों में बंधा हो ??
क्यूंकि उनमे प्यार तो आज भी है बस शादी नहीं है। और दोनों ने एक दुसरे की और घर वालों की इज़्ज़त रखते हुए दोनों ने ऐसे ही अपना सारा जीवन काटा।