जिन्ह या प्रेत ?
जिन्ह या प्रेत ?
यह कहानी सत्य घटना है
पंजाब में एक शहर है मोहाली, ये कहानी वहाँ के रहने वाले ऋषि (बदला हुआ नाम) की है। वो साधारण सी ज़िन्दगी जीने वाला साधारण सा व्यक्ति है।
यह कहानी मैं उसी की ज़ुबान से सुनाऊंगा
यह बात तकरीबन 2012 की है।
मेरी बहन की शादी एक बहुत अच्छे परिवार में हुई है। मै उस वक़्त कॉलेज में पढता था। वैसे तो मैं भगवान को बहुत मैंने वाला बहुत पाठ करने वाला इंसान हूँ। पर इस घटना ने मुझे अंदर तक झिंझोड़ दिया था।
एक दिन मेरी बहन का दुपहर को मेरे पिताजी को फ़ोन आया। उसने पिताजी से कहा कि आप सब से मिलना है मेरे बारे में उसने कुछ बात करनी है। मेरे को भी कॉलेज से छुट्टी करवाई। जब वो घर आयी तो उसके साथ एक बाबाजी थे। हमने चाय पी, खाना खाया। बाबाजी मुझे बहुत अजीब से तरीके से देख रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था। कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?
खाना खाने के बाद उन्होंने मुझसे सब के सामने कहा कि बैठो और अपनी कमीज उतारो और अपनी आँखें बंद कर लो।
जब मैंने अपनी आँखें बंद की तो उन्होंने मेरे शरीर पे पानी के छींटे फेंकें । जब मैंने अपनी आँखें खोली तो मैंने देखा सब मेरी तरफ अजीब तरीके से देख रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था। तब मेरे जीजा जी ने मुझे बताया कि जब मेरे ऊपर पानी फेंका जा रहा था तब मैं तड़प रहा था और ये मंज़र सब ने देखा। पर मैंने कहा मुझे ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ। तब बाबाजी ने मुझसे पूछा कि पिछले कुछ दिनों में तुम्हारे साथ कुछ अजीब हुआ? तो मैंने कहा अजीब मतलब?
उन्होंने कहा कुछ डरावना ??
तब मुझे अपने साथ बीता एक एक वाकया याद आ रहा था।
दरअसल कुछ दिनों से मेरे को कुछ डरावना अनुभव महसूस हो रहा था। मुझे अपने आसपास ऐसा एहसास होता था कि मेरे साथ कोई चल रहा है, मेरे साथ कोई बैठा हुआ है और तो और मेरे साथ कोई सो रहा है।
मैंने फिर बताया कि रोज़ रात को मुझे डरावने सपने आते हैं। मुझे स्लीप पैरालिसिस भी होता है। ऐसा लगता है कि कोई मेरी छाती पे बैठा है। और तो और एक बार मुझे एक स्कूटर ने टक्कर मारी, आप शायद मानेंगे नहीं, मुझे एक खरोंच तक नहीं आयी । तब मुझे भी हैरानी हुई थी कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। पर मैं उसे एक साधारण सा वाकया मान रहा था।
तब बाबाजी ने बताया कि तुम्हारे साथ एक प्रेत या जिन्ह है। जो शायद तुम्हें अपना मान चुकी है। फिर बाबाजी ने कहा हम अगले हफ्ते फिर आएंगे तब तक कुछ सामग्री मंगवा कर रखना। तब तक काले रंग का कोई भी कपड़ा नहीं पहनना।
फिर वो अगले हफ्ते आये और उन्होंने कुछ मुस्लिम आयतें पढ़ीं और एक कलश को एक कपड़े में बाँधा और मेरी माँ से कहने लगे कि तुमने जो खीर पूरी बनाई है। उसे बहार मुंडेर पे रख दो और सुबह तक पीछे नहीं जाना।
और वो कलश मेरे घर के आगे बरामदे में दरवाज़े के पास रख दिया और कहा मैं कल आऊंगा और इस कलश को ले जाऊँगा।
आप यकीन नहीं करेंगे कि पूरी रात मुझे उसका साया महसूस हुआ। ऐसा लगा जैसे उस कलश के पास कोई बैठा है और मुझे तरसी निगाहों से देख रहा है।
अगले दिन सुबह जब हमने पिछला दरवाज़ा खोला तो हमने देखा वहाँ ना तो कोई खीर थी ना कोई पूरी बस वो एक कागज़ था जिसमे बाबाजी ने खीर पूरी रखी थी। हमने सोचा कि शायद कोई जानवर या पक्षी ले गया होगा। पर जानवर इतनी ऊपर चढ़ नहीं सकता था और पक्षी अगर लेता तो खिलारता। पर वो जगह बिलकुल साफ़ थी। फिर बाबाजी ने उस कलश को विसर्जित कर दिया।
उस दिन के बाद से मुझे कभी कुछ वैसा एहसास नहीं हुआ।
मुझे नहीं पता वो प्रेत था या जिन्ह ? पर जो भी था बहुत अजीब और डरावना था। आज भी जब मैं उसके बारे में सोचता हूँ मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।