परछाइयाँ
परछाइयाँ
कहते हैं, आदमी समाज से अपने गुनाहों को सौ यत्न कर छिपा भी ले तो भी अपनी ही परछाइयाँ उसे माफ नहीं करती, अदालतों में बेगुनहगार साबित हो कर भी, ख़ुद के गुनाह की परछाइयाँ उसे जीने नहीं देती। अजय का गुनहा परछाई बन कर उसका पीछा कर रहा था, दिव्या से शादी, अजय ने उसकी दौलत को देख कर की थी। उन दिनों अजय रेलवे में क्लर्क की नौकरी करता था, गरीबी में पला था सो पढ़ाई लिखाई भी ज्यादा नहीं कर सका पर सपने बहुत ऊंचे थे। नौकरी से ज्यादा उसका समय साहब लोगों की खुशामद करने मे लगा रहता ताकि तरक्की जल्दी पा सके।
इसी बीच सी.आर.बी. साहिब ने उसके अच्छे व्यवहार सुनकर बुलाया और उसे अपनी भांजी दिव्या के बारे में बताया जो जन्म से ही मूक थी पर गुणों की भंडार थी, उसने पढ़ाई के साथ -साथ ललित कलाएं सीख रखीं थी। अजय तुरंत ही उससे शादी करने को तैयार हो गया था।
ईश्वर जहाँ अपनी संरचना मे कुछ गलती छोड़ जाता है तो वही अपनी उस संरचना को कुछ अदृश्य शक्तियँ देकर अपना प्रायश्चित भी कर लेता है, दिव्या में चेहरे को पढ़ लेने की शक्ति दिव्य थी,अजय के चेहरे को देख उसके इरादों को समझ लेती। अजय का प्रमोशन होते ही उसके इरादों का अंदाजा लगा लिया था और अपना वसियतनामा जाकर उसने अजय के पीछे से जमा कर दिया था।
कुछ दिनों से किसी अंजान दुर्घटना की आशंका से वह रात को डरकर उठ जाती और फिर बाहर बालकनी मे जाकर लंबी-लंबी साँसें लेती, शायद अजय को इसी मौक़े का इंतजार था, उसने रात के सन्नाटें मे उसे पीछे से धक्का दे दिया। नीचे गिरकर कब उसकी साँसे छूटी, अजय ने पता करने की कोशिश भी नहीं की। दुनिया के सामने रो-रो कर उसने अपने उस गुनाह का किसी को शक भी होने न दिया।
दिव्या की मृत्यु के कुछ दिन बाद अजय की ड्यूटी में रहते, एक बड़ी पैसेंजर ट्रैन का एक्सीडेंट हो गया और उसे इस्तीफा देना पड़ा l सरकारी क्वॉटर को भी छोड़ना पड़ा। नौकरी की तलाश मे दर दर भटक रहा था पर डिग्री के न होने पर नौकरी नहीं मिली, अपने गुनाहों को छिपाते -छिपाते वह थक चुका था। अपने साये से भी डरता, हर रात आकाश की तरफ देख, चीख-चीख कर दिव्या से माफी मांगता,अब तो खुद की परछाइयां भी उसे डराती थीं। लोग उसे पागल समझने लगे थे।