Monika Khanna

Drama

4.7  

Monika Khanna

Drama

पराई होकर भी अपनी सी

पराई होकर भी अपनी सी

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बालकनी में बैठी वीना जी चाय की चुस्कियां लेते हुए बाहर लगे अमलतास के पेड़ और उसके पीछे निकलते सूरज को निहार रही थी। पीले पत्तों वाला अमलतास का पेड़ और उसके पीछे निकलता सुर्ख सूरज, चहचहाती चिड़ियों की आवाज कानों में मधुरता का रस घोल रही थी। सच बड़ा ही मनोरम दृश्य था। शादी के इतने वर्ष बीत गए, वह सास बन गई पर उन्हें एहसास ही नहीं हुआ कि उनकी बालकनी से इतना मनोरम दृश्य भी दिखता है। आज इतने वर्षों बाद यह सुकून भरी सुबह ने उनका मन प्रफुल्लित कर दिया और वह मन ही मन इस खूबसूरत सुबह के लिए अपनी बेटी जैसी बहू वैशाली को धन्यवाद देने लगी। वीना जी अपने पुराने दिनों में खो गई, जब उनकी माताजी और पिताजी ने बोला था कि वीना को बहुत ही अच्छा ससुराल मिल रहा है, बहुत ही अच्छी किस्मत है, राज करेगी मेरी वीना।

पर मैं कब राज कर पाई?

शादी होकर आते ही सास ने सारी जिम्मेदारियां वीना जी पर डाल दी। सास ससुर नंद देवर से भरा पूरा संयुक्त परिवार। चकरघिन्नी सी जिंदगी हो गई थी वीना जी की। मानव, वीना ‌जी के पति, उन्होंने भी तो कभी वीना जी को नहीं समझा। मानव भी और पुरुषों से अलग नहीं थे। पुरुष होने का दंभ उनमें कूट-कूट कर भरा था। उनकी नजरों में औरतों का काम ही होता है घर संभालना और घर में काम ही क्या होता है। बस खाना ही तो बनाना होता है तो उसमें क्या थकना और वैसे भी सभी औरतें तो करती हैं तुम उसमें क्या अनोखा करती हो।

शादी होते वक्त मां पिताजी ने यही शिक्षा दी थी ससुराल में तालमेल बिठाकर रहना, मेरा तो पूरा जीवन ही तालमेल बिठाते बीत गया। मैं तो भूल ही गई कि मेरा भी कोई अस्तित्व है। याद है मुझे वह तड़के 5:00 बजे उठ जाना, सबकी चाय नाश्ता सबकी अलग-अलग पसंद का ध्यान रखना। काम करते-करते कब 12:00 बज जाता था पता ही नहीं लगता था। कोई एक बार भी मुझसे नहीं पूछता था कि तूने कुछ खाया या नहीं। सबको खिलाने के बाद जब मैं अपनी प्लेट लगाती थी तो मन करता था कि काश कोई मुझे भी गरमागरम रोटी सेक कर दे दे। पर उसका सुख तो सिर्फ मायके में ही था। मां की याद करके आंखों में आंसू आ जाते थे वीना जी के। कभी-कभी जब मन विचलित होता था तो जी करता था सबको खरी खरी सुना दो और बताऊं कि यह जो दो रोटी मैं खाती हूं सारा दिन की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद मुझे मिलती है।

देखते ही देखते समय कैसे निकल गया आज सास-ससुर स्वर्ग सिधार चुके हैं, नंद और देवर भी अपने अपने परिवार में व्यस्त हो गए। पर मानव का स्वभाव आज भी वैसा ही है। मेरे भी दोनों बच्चे बड़े हो गए, बेटी अपनी ससुराल में बहुत खुश है और भगवान की कृपा है कि उसको मेरे जैसा ससुराल नहीं मिला। उसका जीवन साथी और उसका परिवार बहुत ही खुले विचारों के हैं और मेरी बेटी को अपनी ही बेटी मानते हैं।

जब मेरे बेटे अक्षत ने अपनी पसंद मुझे बताई तो मानव सुनकर बहुत बिगड़ गए, पर बेटे की पसंद के आगे उनको झुकना पड़ा। जब मैं शादी की तैयारियों में व्यस्त थी तब कई लोगों ने मुझसे बोला, वीना अब तू भी सास बनने जा रही है। अब आजकल की लड़कियां तो सासों को इतना मानती ही नहीं, जिंदगी भर पहले अपनी सास की गुलामी करो फिर अपनी बहुओं की, अब तो तुझे भी इसी काम में लगना पड़ेगा।

वीना जी ने भी सोचा, अब तो मेरी आदत ही हो चुकी है इन सब चीजों की। जिंदगी से अब किसी चीज की उम्मीद नहीं, जिंदगी का यह पड़ाव भी हंसकर पूरा करुंगी। वैशाली मेरे अक्षत की पसंद वाकई में बहुत विशाल हृदया निकली। वैशाली वर्किंग वुमन है, आजकल तो वैसे भी लड़कियां अपने कैरियर को लेकर बहुत सजग हैं और होना भी चाहिए। क्योंकि वह इतनी मेहनत से शिक्षा लेती हैं और उस शिक्षा का लाभ उठाना और उसका सही इस्तेमाल करना उनको आता है। मैं भी खुश थी कि मेरी बहू वह सब नहीं सहेगी जो मैंने सहा। मैंने अक्षत को हमेशा यही शिक्षा दी बेटा हमेशा लड़कियों की भावनाओं का सम्मान करना, उनको उतनी इज्जत जरूर देना जिसकी वह हकदार हैं। मैंने भरसक कोशिश करी थी अक्षत पर मानव की परछाई ना पड़े और शायद मैं सफल भी हुई थी, क्योंकि वह मेरी भी बहुत इज्जत करता था। जो लड़के अपनी मां को बहुत प्यार और सम्मान देते हैं, वह यकीनन अपनी पत्नी को भी बहुत सम्मान देते हैं, ऐसा मेरी मां कहा करती थी।

वैशाली बहुत अच्छी लड़की थी। मैं उसको जल्दी कोई काम नहीं करने देती थी क्योंकि मुझे लगता था वह अपनी जिंदगी खुलकर जीये। एक दिन सुबह सुबह बेल बजने पर मैंने देखा वैशाली एक मेड को लेकर चली आ रही है, आते ही मुझसे बोली "मम्मा बहुत कर लिया आपने काम, अब आप आराम करेंगी। यह शांति है और अब से यह फुल टाइम घर पर रहेगी और घर का सारा काम यही देखेगी। खाना भी यहीं बनाएंगी" मेड की तरफ इशारा करते हुए वैशाली ने बोला।

"पर बेटा इसकी सैलरी तो बहुत होगी मानव कभी नहीं मानेंगे" 

"मां मैं हूं ना, मैं देख लूंगी। मैं इतना कमाती किसलिए हूं! मम्मा अगर आपने मुझे बेटी माना है तो मैं भी आपको सास नहीं दिल से अपनी मां ही मानती हूं। अगर आप हमारी भावनाओं का इतना ख्याल करती हैं तो हमारा भी फर्ज है कि हम आपकी भावनाओं का ख्याल करें। बस मुझे और कुछ नहीं सुनना। और हां शांति, तुम मां को दोनों टाइम गरमा गरम रोटी बनाकर खिलाओगी" कहती हुई वैशाली ऑफिस जाने लगी तो वीना जी का दिल भर आया और आंखों छलक पड़ी। मन ही मन वैशाली के लिए स्नेह उमड़ आया और उन्होंने वैशाली को आलिंगनबद्ध कर लिया और बोली, "थैंक्यू बेटा"।

"मां थैंक यू बोलकर मुझे पराया ना करें" वैशाली बोली।

"हां बेटा जीती रहो, खुश रहो, सौभाग्यवती रहो" वीना जी ने ढेरों आशीर्वाद और प्यार अपनी बहू वैशाली पर लुटा दिए।

कौन कहता है कि बहू बुरी होती हैं, एक बार उनको बेटी बना कर देखिए, मन से अपना कर देखिए! यह बहू से बनी बेटी, जिंदगी को स्वर्ग ना बना दे तो कहिएगा। हर घरों में अलग कहानी होती है, कहीं सास बुरी कहीं बहू बुरी। दोनों में अगर बुराइयां हैं तो दोनों में अच्छाइयां भी हैं। समझदारी इसी में होनी चाहिए कि हम बुराइयों को नजरअंदाज करें और अच्छाइयां और खूबियां देखें। तो हमें एक दूसरे को अपनाने में आसानी हो जाएगी और जिंदगी स्वर्ग से सुंदर हो जाएगी। एक बार ऐसा करके तो देखिए, यकीनन जिंदगी आसान हो जाएगी।


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