पप्पू प्रेमी
पप्पू प्रेमी
पप्पू के पिता ने जोर-जोर से पप्पू को आवाज लगाई- "पप्पू ! अरे ओ रे पप्पू ! कहाँ मर गया रे साले ! क्या सुन रहा हूँ मैं ? सच है यह बात ?"
पप्पू दौड़ता हुआ आया- "कौन-सी बात पिताजी ?"
"यही कि बिन्नी के साथ तेरा चक्कर चल रहा है। बहुत मजे में आ रहे हो तुम दोनों।" पप्पू के पिताजी ने गुस्सा जताते हुए कहा।
"अरे पिताजी, आप भी.... यह भी कोई बात हुई ?" पप्पू ने कहा।
"साले ठाकुर होकर हरिजन के साथ चक्कर चला रहा है ! बड़ी बात नहीं हुई तो क्या हुई ?" पप्पू के पिता ने नाराजगी व्यक्त की।
"अरे पिताजी, आज के जमाने में हरिजन-ठाकुर कुछ नहीं चलता है। सब एक ही हैं।"
"चुप र यार तू ! ठाकुर के खानदान को बदनाम करने में लगा हुआ है। जात-बिरादरी का कुछ तो खयाल रख। खाली क्यों पड़ा है उसके पीछे ?"
"पिताजी, आज के जमाने में शादी करने के लिए लड़की देखते हैं, बाकी कुछ नहीं। लड़की अच्छी और समझदार होनी चाहिए। देखने में गोरी-चिट्ठी न हो चलेगा, लेकिन समझदार जरूर होनी चाहिए।"
"चुप साले ! यह फिल्मी डायलॉग अपने पास ही रख। मुझे मत सिखा। थोड़ा-बहुत दहेज नहीं मिला तो शादी करने का क्या फायदा ? खाली बिरादरी में काला मुंह दिखाना पड़ेगा।"
"पिताजी, बिरादरी-सरादरी कुछ नहीं। दहेज-वहेज कुछ नहीं। सब मैं देख लूंगा। मुझे बिन्नी अच्छी लगती है, बस।"
"अच्छा, बहुत बड़ा हो गया है तू अब। अपने पिताजी को भी कुछ नहीं समझता !"
"ऐसी बात नहीं है, लेकिन मैं बिन्नी को अच्छा मानता हूँ। उसी के साथ शादी करूंगा। बस !" ऐसा कहकर पप्पू कमरे से बाहर चला आया।
कुछ दिनों बाद अखबार में खबर छपी कि पप्पू और बिन्नी ने भागकर शादी कर ली।