पॉपकॉर्न
पॉपकॉर्न
सितम्बर की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी। मकई की हल्की हरी और भूरी फसल से लहलहाते खेत यूं लग रहे थे मानो सीमा पर असंख्य सैनिक हाथों में बंदूकें लिए खड़े हों। वातावरण में घुली हल्की गुलाबी ठंडक और खेतों में तैयार खड़ी फसलें किसानों के चेहरे और गुलाबी कर रही थी। हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर का एक छोटा सा गाँव है बायरी, इसके नामकरण के पीछे किवदंती है कि एक जमाने में यहाँ पर बेर का घना जंगल हुआ करता था। इस जंगल के बीचों बीच दोनों ओर एक सर्पीली सड़क निकली तो लोगों ने यहाँ जमीने ख़रीद कर मकान बनाये और एक छोटा सा गाँव बस गया, बायरी। दस घरों के इस छोटे से गाँव में राजेश का भी अपना मकान और कुछ सीढ़ीदार खेत हैं। राजेश अपने गाँव का इकलौता ग्रेजुएट है। उसने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया है। नौकरी मिली नहीं इस लिए उसने इन पांच खेतों में ही अलग अलग फसलें साग, सब्जी आदि उगा कर अच्छा ख़ासा कमा लेता है। वह खेती बाड़ी में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता और सबसे कम ज़मीन होने के बावजूद भी सबसे अधिक इनकम लेता। गाँव में सभी लोग उसके स्मार्ट वर्क की तारीफ़ करते वह भी सभी से यही कहता कि आज स्मार्ट हार्ड वर्क नहीं स्मार्ट वर्क का जमाना है।
कुछ ही दिनों में फसलें कटनी शुरू हो गई। जैसा कि आमतौर पर हमारे यहाँ होता है कि फसल कटाई या फिर कोई अन्य भारी कार्य हेल्ला (सामूहिक श्रम) द्वारा किया जाता है। गाँव के लोग इकट्ठे हो कर एक दूजे की फसलें काट रहे थे और हेल्ले वाले घर पर खूब दावतें उड़ा रहे थे। लगभग एक सप्ताह में राजेश का हेल्ला भी आ गया। शाम को बैठ कर राजेश ने पत्नी और बच्चों से बात कर हेल्ले का मीनू तैयार किया और प्रातः तड़के ही वे दोनों पति पत्नी सामान के लिए बाजार निकल गए। दोनों बच्चे पाठशाला चले गए। राजेश ने टौमी को आखिरी खेत के नीचे ओर इस तरह से बाँध दिया था कि उसे सारे खेत वहीं से नजर आ जाये। उसके खाने पीने का सारा सामान वहीँ उसके पास रख दिया। वह निश्चिन्त था क्योंकि हर रोज भी तो टौमी ही उनके खेतों की रखवाली करता था। हालांकि अब गाँव में सबके फसलें कट चुकी थी और केवल उसकी फसल ही बाकी थी इस लिए उसे ही बंदरों का सबसे अधिक खतरा था। वे जा तो रहे थे लेकिन राजेश का मन अभी भी वहीँ खेतों में ही अटका हुआ था। बाजार पहुँचते ही उन्होंने से सबसे पहले सामान ख़रीदा और सरकारी हॉस्पिटल खुलते ही वहां रीना का चेकअप करवा कर दवाइयाँ लीं। राजेश की पत्नी रीना को पिछले कुछ दिनों से तेज़ बुखार रहने लगा था। डॉ ने कहा तेज़ धूप में फसल की रखवाली करने से ऐसा हो गया है। अपनी ओर से उन्होंने सारा काम जल्दी - जल्दी निपटाया फिर भी घर पहुँचते- पहुँचते दिन के दो बज चुके थे। राजेश और रीना ने घर के आंगन में पाँव रखा ही था कि उनके पाँव तले से ज़मीन खिसक गई। उनके सारे खेत उजड़े हुए थे और बन्दर यहाँ वहां गुलटियाँ मार रहे थे। रीना तो गश खाकर वहीँ गिर पड़ती अगर उसे राजेश ने संभाल न लिया होता। राजेश भी यूं तो हिम्मत हारने वालों में से नहीं लेकिन छह महीने की कमाई यूं पल भर में डूब जाए तो कोई भी पागल हो सकता है। उसे टौमी पर बहुत गुस्सा आया। उसने एक मोटा सा डंडा लिया और उस ओर तेज तेज क़दमों से चल पड़ा जहाँ सुबह टौमी को बाँध कर गया था। वह सोच रहा था कि आज तक तो ऐसा हुआ नहीं कि टौमी के होते कोई बन्दर खेत में घुसने की भी हिम्मत करता, लेकिन गुस्से में उसका विवेक भी उसका साथ नहीं दे रहा था। टौमी को आराम से सोया देख उसका क्रोध सातवें आसमान पर था और उसने आव देखा न ताव ! एक के बाद एक अंधा धुंध डंडे उसने टौमी के सिर पीठ और टांगों पर बरसा दिए। “साले ...हराम के बीज, तुझे इतना खाने पीने को दिया और तू यहाँ आराम फरमा रहा है ... हरामखोर।” राजेश बड़बड़ाया। क्रोध निकलने पर राजेश को होश आया तो उसे भान हुआ “अरे बेटा टौमी ! मैंने तुझे इतना मारा तूने चूं भी नहीं ... “ डरते डरते उसने कुत्ते तो उल्टा पलटा। “ओह ! माई गॉड ये तो मरा पड़ा है। है राम ...शायद मुझ से इसके सिर पर डंडा इतना जोर का लग गया कि ये चित हो गया।” राजेश धड़ाम से नीचे बैठते हुए फिर बड़बड़ाया।
थोड़ी देर सांस लेने के बाद उसने फिर कुत्ते को देखा, उसका ध्यान कुत्ते के मुंह के पास पड़ी आधी खाई हुई रोटी पर गया। उसने देखा रोटी कुछ काली काली है, लेकिन उसने जो रोटी सुबह दी थी वह तो ये नहीं है। उसने रोटी हाथ में उठा कर सूंघ कर देखी उसमें से बारूद जैसी गंध आ रही थी। उसने देखा कुत्ते के मुंह से खून निकला पड़ा जो ताजा नहीं सूख चुका है। बस उसे समझते देर न लगी कि कुत्ते को किसी ने जहर दे कर मारा है। “है भगवान सत्यनाश हो ऐसे लोगों का जिन्होंने एक निरीह प्राणी कुत्ते को भी नहीं बख्शा।” बड़बड़ाते हुए उसने शेड से गैंती और फावड़ा निकाला और वहीँ खेत के पास कुत्ते को दफ़ना दिया। घर जाकर हाथ मुंह धोया और परिवार को ये सारा वाकया सुनाने के बाद आगे की योजना बनाने लगा। गाँव पड़ोस के कुछ मित्र शोक जताने आये , सहायता का वचन भी दे गए लेकिन राजेश जानता है कि भगवान भी उसकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है। अगली सुबह जो कुछ लोग हेल्ले में आये, उनके साथ मिलकर राजेश ने बची खुची फसल इकट्ठी की, छिली और लगे हाथ दाने निकलवा कर आंगन में सूखने को डाल दिए। राजेश सोच रहा था फसल सलामत रहती तो लगभग तीस हजार की तो थी लेकिन अब जो कुछ बचा है पांच हजार का भी नहीं है, उसमें से भी ज्यादातर अध् खाया ही है। खाना खाकर राजेश आंगन में लगी चारपाई पर पड़ा सोच रहा है। रीना और बच्चों को नींद तो नहीं आई है लेकिन सोने का ढोंग कर रहे हैं बच्चों ने थोड़ा बहुत खाया है रीना ने तो अन्न का दाना भी मुंह में नहीं लिया। पड़ा पड़ा वह सोच ही रहा था कि साल भर क्या खायेंगे अगली फसल का क्या भरोसा पानी तो है नहीं सब ऊपर वाले पर ही निर्भर है। वह अचानक उठ बैठा, भीतर जाकर लाइट जलाई और अपना लेपी ऑन किया। नेट कनेक्ट होते ही सर्च इंजन गूगल टिमटिमाया। उसने तुरंत टाइप किया ‘पोपकोर्न’ और अंगूठे के साथ वाली ऊँगली झटक दी। कुछ ही सेकंडों में पोपकोर्न विकपीडिया यूं प्रकट हुआ ज्यूं अलादीन के चिराग का जिन्न और मानो कहने लगा हो क्या हुक्म है मेरे आका ! राजेश ने एक एक कर उसकी स्टडी की और चैन से सो गया। सुबह की चाय के साथ राजेश ने योजना परिवार को परोस दी। उसके चेहरे पर गजब का आत्म विशवास और उत्साह था। उसने लेपी ऑन कर योजना सब को समझा भी दी और साथ ही कार्टन का आर्डर भी ऑनलाइन प्लेस कर दिया। “सन्डे को बच्चों की छुट्टी होती है , उसी दिन हम ये काम करेंग।” राजेश ने कहा और सब ने हामी भर दी। राजेश ने लेपी को ड्राइंग फाइल की तरह बंद करते हुए बेटी पलक को पकड़ा दिया।
संडे को परिवार के सभी सदस्य सुबह जल्दी उठ गए। नहा धोकर राजेश ने कुल देवता का नाम लेकर कढ़ाई चूल्हे पर चढ़ा दी। रीना ने आग पहले ही जला दी थी। एक एक मुट्ठी मकई के दाने राजेश गर्म गर्म कढ़ाई में डालता रहा और बड़ी से झरनी के साथ उन्हें हिलाता रहा। ज्यों ही उनकी खीलें बन जाती उन्हें निकाल कर परात में रख देता। रीना बराबर लकड़ी से आंच लगाती रही। बच्चे पलक और सन्देश पेटिओं में भर कर बंद करते रहे। इधर कम्पनी के एक एम्प्लोय ने अपने लेपी पर कुछ देर उँगलियाँ नचाई तो राजेश के मोबाइल पर क्लिंग- क्लिंग की आवाज़ के साथ एक मेसेज उभरा ‘ रुपीस फिफ्टी थाउजेंड एट हंडरड हे ज बीन क्रेडिटेड टू यूअर अकाउंट।'