अनन्त आलोक

Children Stories

4.7  

अनन्त आलोक

Children Stories

संस्कार

संस्कार

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गुल्लू और हेरी ने माँ से एक साथ कहा “मम्मी इस बार हम होली में नाना के घर नाहन जायेंगे।” माँ समझ गई कि दोनों ने मिलकर ये योजना बनाई है। माँ ने कहा “कोई बात नहीं बेटा लेकिन होली वाले दिन तो लोग रंग डालेंगे। देखना तुम लोग पहचान में भी नहीं आयोगे ! नाहन शहर में तो बड़ी जबरदस्त होली होती है।” “तो क्या हम एक दिन पहले भी तो जा सकते हैं माँ।” गुल्लू ने कहा तो माँ ने हामी भर दी “हाँ ये ठीक है तुम दोनों अपने पापा के साथ होली से एक दिन पहले चले जाना और एक दिन बाद लौट आना।” 

हे ... हम नानी के घर जायेंगे ... हम नानी के घर जायेंगे , खूब होली खेलेंगे। वहां तो कालू , सन्नी भैया और डॉली दीदी भी होंगे। हम सब खूब मजे करेंगे। अहा ... इस बार तो मजा ही आ जायेगा।”

अचानक बच्चों को ध्यान आया “अरे मम्मा आप क्यों नहीं चल रहे हो ? आप भी चलो न ! हमारे साथ। हम सब होंगे तो कित्ता मजा आएगा। आप भी सब के साथ होली खेल लेना।” हाँ बच्चों सोच तो रही हूँ , बहुत साल हो गए। होली में कभी जाने का मौका ही नहीं मिला। बस घर के कामों से ही फुर्सत नहीं मिली कभी।” “तो बस इस बार पक्का हम चारों चलते हैं। लगाओ नानू को फोन और कह दो , हम आ रहे हैं। गुज्झिया तैयार रखें , मैं तो पूरी चार खाऊँगी।” हेरी ने कहा और माँ का मोबाइल ले कर नाना का नम्बर मिलाकर थमा दिया माँ के हाथ में। 

“अरे –अरे ये क्या कर रही हो , अभी तुम्हारे पापा से भी तो पूछना पड़ेगा न !” माँ ने फोन कट कर दिया। “ थोड़ी ही देर में नाना का फोन आ गया। मिस कॉल लग गई थी , उधर से आवाज आई , हाँ बेटा क्या बोल रही थी ? “वो कुछ नहीं बाऊ जी , ऐसे ही बच्चों ने मिला दिया था।” “तो बात कर लेती बेटा , घर पर सब ठीक तो है न ? “ हाँ हाँ बाऊ जी सब ठीक हैं। बस बच्चे कह रहे थे कि इस बार होली में नानू के घर जाना है।” 

“अरे ये तो और भी अच्छी बात है , तो देर किस बात की आ जाओ न !” “हाँ हम देखते हैं बाऊ जी।” “इसमें देखना क्या है बस पक्का करो।” “ हाँ हाँ माँ बोल भी दो अब , कब तक थोड़ी -थोड़ी बातों के लिए पापा को पूछती रहोगी।” पीछे से गुल्लू बोला। “तो ठीक है पापा हम लोग आ जायेंगे चार तारीख को। पांच को होली है ही तो उस दिन तो नहीं आ पाएंगे। इस लिए एक दिन पहले ही आ जायेंगे।” “ठीक है बेटा हम इंतजार करेंगे। उधर से पापा ने कहा। 

चार की शाम को सभी नाहन पहुँच गए। पांच को सुबह उठते ही बच्चों ने रंग की पिचकारियाँ भर लीं और नाना-नानी के कमरे के द्वार पर खड़े हो गए। “नानू और नानी बाहर आइये , हमें होली खेलनी है।” दोनों ने कहा। “नहीं बेटा , ऐसे नहीं देखो जैसे मैं करता हूँ ऐसे शुरुआत करनी है।” मनोज ने उन्हें रोकते हुए कहा। “तो फिर कैसे पापा , जल्दी बताओ न !” गुल्लू बोला। 

तब तक नाना-नानी बाहर आ गए थे। “देखो पहले गुलाल थाली में लो इस तरह। अब इस तरह से सबसे पहले ये गुलाल नानी-नानी के पाँव पर डालो , ऐसे ... ठीक है ! अब तिलक करो और फिर थोड़ा-थोड़ा गालों पर भी लगा दो। इसके बाद खेलो। आओ -आओ तुम दोनों भी अब ऐसे ही करो।” “ओके पापा लेकिन ऐसा क्यों करते हैं ,पहले हमें ये तो बताइए न !” हेरी ने पूछा। बेटा ये संस्कार हैं। जब भी अपने से बड़े किसी को रंग लगाते हैं तो इस तरह से उनका मान करना चाहिए।” “वाह पापा ! हमने तो ऐसा पहली बार देखा ! ये तो बहुत अच्छा है।” फिर दोनों बच्चों ने बारी-बारी नाना- नानी , मामा-मामी और बड़े भाई बहनों को इसी तरह रंग लगाया। 

सभी इतने खुश हुए कि दोनों को उठा-उठा कर चूमने लगे। उस के बाद तो खूब मजे की होली हुई। बाकी बच्चों ने भी इसी तरह से होली की शुरुआत की। थोड़ी ही देर में ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। टीवी चैनल , अख़बार के पत्रकार आए गुल्लू और हेरी के इंटरव्यू हुए और थोड़ी ही देर में वे टीवी चैनल पर दिखने लगे। ‘आज के घोर आधुनिक समय में बच्चों के संस्कार।’ स्क्रीन पर हेडलाइन्स चल रही थी और नीचे उन दोनों की फोटो दिखाई जा रही थीं। सभी लोग बहुत खुश थे।


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