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Manpreet Makhija

Tragedy Inspirational

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Manpreet Makhija

Tragedy Inspirational

पंख

पंख

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"मम्मा, मम्मा... मम्मा उठो ना। मम्मा देखो, आपके हाथ से खून निकल रहा है ! मम्मा... ।" रोते हुए सात साल के सोनू ने अपनी माँ निकिता से कहा। निकिता ज़मीन पर पड़ी दर्द से रोए जा रही थी।

"बहुत उड़ रही थी न हवा में , अब यही ज़मीन पर पड़ी रह अपने टूटे हुए पंख और ख़्वाबों को लेकर" इतना कहकर निकिता का पति राज, दरवाज़ा पटकते हुए वहां से चला गया। 

निकिता एक शादीशुदा, और आत्मनिर्भर औरत थी। उसकी शादी को कुछ नौ साल ही बीते थे। इन नौ सालों में निकिता ने अपने पति राज का इतना भयावह रूप कभी नहीं देखा था जो कि आज उसने देखा। हाँ कभी कभार गुस्सा हो जाता था लेकिन निकिता पर हाथ उठाने की गलती उसने कभी नहीं की फिर आज क्या हुआ!

निकिता शुरू से आत्मनिर्भर नहीं थी। उसकी और राज की शादी के बाद वह पूरी तरह से घर की जिम्मेदारी और सास ससुर की सेवा में लगी रहती थी। जो चाहिए होता, राज से कह देती वो उसे लाकर दे देता। दोनो अपनी जिंदगी में खुश थे। शादी के दो साल बाद, सोनू (निकिता और राज के बेटे) ने जिंदगी को और खुश हाल बना दिया। समय ऐसे ही बीत रहा था। एक दिन अचानक जब राज अपने ऑफ़िस से जल्दी घर लौट आया तो निकिता ने उसे उदास देखते हुए कारण पूछा।

 

"तुम्हें कुछ खाक समझ में आएगा, जो यहाँ मेरी परेशानी को और बढ़ाने आई हो, जाओ जाकर रसोई में काम करो।" राज ने बड़ी बेरूखी और गुस्से से निकिता को जवाब दिया। निकिता थोड़ा डर गई लेकिन राज की परेशानी का कारण जानने के लिए ससुर जी के पास गई तो पता चला कि बिजनेस में कुछ फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स की वजह से राज परेशान है। निकिता रात भर सो नहीं पाई और उसने तय किया कि वह राज की परेशानी को बढ़ाने की जगह उसका साथ देगी। अगली सुबह उठकर निकिता ने राज से बात की। 

"सुनो मैं सोच रही थी कि पेंटिंग का काम शुरू कर दूँ। मोहल्ले के बच्चों को पेंटिंग सिखाउँगी और अपनी बनाई पेंटिंग्स को बेचकर कुछ पैसे कमा लूँगी। आजकल महँगाई इतनी बढ़ गई है और तुम अकेले पर ही इतना भार बढ़ रहा है तो मैं भी तुम्हारी मदद कर दूँगी।"

 

"हह्ह.... तुम्हारी पाँच -सात सौ की कमाई से मुझे क्या फर्क पड़ेगा। खैर, करना है तो करो लेकिन मेरी माँ पर घर की कोई जिम्मेदारी नहीं आनी चाहिए।" राज ने बेमन से इजाज़त दी। 

अब निकिता ने घर से ही अपने शौक को अपना जज़्बा बना लिया। वह घर के सारे काम निपटा कर सुबह से शाम तक बस पेंटिंग में ही लगी रहती और शाम को मोहल्ले के बच्चों को पेंटिंग सिखा कर रात को फिर अपनी बनी हुई पेंटिंग्स की फोटो खींचकर उन्हे ऑनलाइन बेचने के लिए रख देती। देखते ही देखते, उसे पेंटिंग्स के ऑर्डर मिलना शुरू हो गये और अच्छी कमाई भी होने लगी। लोग उसकी इस कला की प्रशंसा भी करने लगे। निकिता बहुत खुश हो रही थी कि वह किसी न किसी तरह राज की जिम्मेदारीयों में हाथ बँटा रही है। लेकिन राज को कुछ तो खटक रहा था। वह खुश नहीं दिखाई दे रहा था। 

एक दिन राज और निकिता, अपने बेटे सोनू को लेकर राज के बॉस के बेटे की बर्थडे पार्टी में गये। वहां राज के बॉस के घर निकिता की बनी हुई पेंटिंग्स को देखकर सोनू चिल्लाते हुए बोला, "मम्मा, ये तो वही पेंटिंग है जो आपने बनाई थी।"

सोनू की बात सुनकर राज के बॉस ने निकिता से पूछा, "क्या वाकई में ये पेंटिंग आपने बनाई है!"

"जी, ये सब पेंटिंग्स जो आपके घर की दीवारों पर लगी है, सब मेरे ही हाथों बनी है लेकिन ये सब आपके पास कैसे! "

 

"दरअसल, ये सब पेंटिंग्स मेरी बीवी के मायके वालो ने हमें गिफ्ट की थी जब हम इस नये घर में शिफ्ट हुए थे। पर वाकई में क्या खूब पेंटिंग करती हैं आप। इतनी गहराई और इतनी शांति समाई है इन चित्रों में। भई राज, तुमसे अच्छा टैलेंट तो तुम्हारी बीवी में है।" हँसी मज़ाक करते हुए राज के बॉस ने ये बात कही और वहां मौजूद ऑफ़िस का हर एक आदमी दबी दबी सी हँसी हँसने लगा। राज से ये बर्दाश्त न हुआ और वो बिना कुछ खाये पिये वहां से निकल पड़ा। निकिता समझ चुकी थी कि राज को गुस्सा किस बात पर था इसीलिए वो बिना कुछ कहे चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो गई। 

अब तो ये जैसे रोज का किस्सा हो गया कि कोई भी घर पर आता या ऑफ़िस में राज से मिलता, निकिता के टैलेंट की तारीफ़ किये बिना न रहता। और राज, घर पर आकर बात बेबात निकिता पर गुस्सा हो जाता। 

जल्द ही निकिता ने अपनी पेंटिंग्स की एक छोटी सी प्रदर्शनी भी शहर में आयोजित करवाई जिससे निकिता को और भी ऑर्डर मिलने लगे। अब निकिता एक और नई शुरुआत करना चाहती थी तो उसने राज से बात की। 

"सुनो राज, मैं सोच रही थी कि क्यूँ न अपनी एक आर्ट गैलरी खोल लूँ, बड़ी न सही एक छोटी मोटी शौप के जैसी" निकिता ने कहा।


"तुम क्या साबित करना चाहती हो, क्या मेरी कमाई से ये घर अच्छे से नहीं चल रहा जो तुम बीच बाजार में अपनी दुकान खोलकर बैठोगी। दुनिया को दिखाना चाहती हो कि तुम मुझसे ज्यादा कामयाब हो, है न।" 

"राज, हर इन्सान अपनी कामयाबी का सपना देखता है, अगर मैने भी देख लिया तो क्या गलत किया"

"ये तुम्हारा सपना नहीं, ये तुम्हारा घमण्ड है। मुझसे ज्यादा पैसा और नाम कमाकर अब तुम मुझे नीचा दिखाना चाहती हो"

"अगर तुम्हारा बिजनेस अच्छे से नहीं चल रहा तो क्या इसमें मेरी क्या ग़लती है तुम और मेहनत करो तो तुम्हारा भी नाम होगा।" निकिता के इतने कहने की ही देर थी कि राज ने गुस्से के चलते निकिता को थप्पड़ मार दिया। 

"बहुत जबान चलने लगी है न, बहुत उड़ने लगी हो हवा में। आज मैं तुझे बताता हूँ कि तेरी औकात क्या है।" कहते हुए राज ने निकिता का गला दबा दिया। उसके बाल नोंचते हुए उसे ज़मीन पर पटका और बिना कुछ सोचे समझे जानवरों की तरह उसे बेरहमी से पीटने लगा। 

निकिता दर्द के मारे रो रही थी, तड़प रही थी पर तो भी गेट के बाहर खड़े अपने बेटे सोनू को वहाँ से जाने का इशारा करने के लिए उसने हाथ उठाया तो उसके हाथ का नाखून जाकर राज की आँख से टकरा गया। 

"ओह, तो तू अब मुझे मारेगी। ये यही हाथ है न जिनसे तू पेंटिंग करती है, यही तेरे पंख है इनसे ही तू हवा में सरर् सरर् उड़ रही है, आज मैं तेरे ये पंख ही काट दूंगा"और इतना कहते हुए राज ने सामने टेबल पर रखे हुए चाकू से निकिता के दोनो हाथ बुरी तरह ज़ख़्मी कर दिये । इतने में सोनू वहां आ गया और "मम्मा.. मम्मा" कहकर रोने लगा। राज तो वहां से चला गया, मगर निकिता ने अपने दर्द को भुलाकर, अपने बेटे को गले लगाया और अपने मन में सोचने लगी,  

"एक मर्द, अपनी बीवी की प्रशंसा तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन एक नाकामयाब मर्द, अपनी बीवी की कामयाबी बर्दाश्त नहीं कर पाता और आज तुमने ये साबित कर दिया राज। तुमने मेरे जिस्म को तो घायल कर दिया लेकिन मेरे जज़्बे को घायल नहीं कर पाये।" इसके बाद निकिता अपने ज़ख्मों पर मलहम लगाती है और बैंक में फोन करती है, 

"हैलो, क्या मुझे आपके बैंक से लोन मिल सकता है! अपनी आर्ट गैलरी खोलने के लिए।"

"क्या घायल करेगी दुनिया उस पंख को 

जो हौंसलो की उड़ान भरता है 

कामयाबी उसके कदम चूमती है 

जो लड़खडाकर भी चलने का दम रखता है।''



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