Manpreet Makhija

Inspirational

5.0  

Manpreet Makhija

Inspirational

अनमोल राखी

अनमोल राखी

6 mins
927


किंजल आज बहुत खुश थी। सुबह से ही राखी की तैयारियों में लगी हुई थी। आज तीन साल के बाद वह अपने भाई हितेश को अपने हाथों से राखी बांधने वाली थी। चार साल पहले राखी के दिन ही हितेश, किंजल से राखी बंधवाकर अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चला गया। किंजल अपने भाई को सप्रेम राखी भिजवाया करती। आज जब वह एक सम्मानित नौकरी पाकर वापस लौट रहा था तो उसके वापस आने की ख़बर से ही किंजल की आँखें छलक रही थी। झटपट अपने घर का सारा काम निपटाया। सास ससुर का खाना बनाया और चली गई अपने मायके, अपने भाई हितेश को राखी बांधने। सारे रास्ते किंजल अपने बचपन के दिनों को याद करती रही। कैसे वे दोनों भाई बहन बगीचे मे आम के पेड़ पर बैठकर बतियाते थे। किंजल बड़ी थी सो हितेश का ध्यान एक बड़ी बहन की भांति बराबर रखती। एक दिन यूं ही दोनों भाई बहन बगीचे में खेल रहे थे। 

`दीदी, तुम हर बार मुझे अपने कंधों पर बिठाकर पेड़ पर चढ़ने में मदद करती हो आज मैं बाद में चढूंगा, पहले तुम पेड़ पर चढ़ जाओ। ''

`नहींं नहींं हितु, मेरे भाई। अगर मैं पहले चढ़ गई तो तुम्हें कौन ऊपर चढ़ायेगा तुम अभी बहुत छोटे हो, खुद से नहींंं चढ़ पाओगे। '

`नहींं दीदी,,, मैंं बड़ा हो गया हूँ। देखो कितना लम्बा हो गया हूँ। मैं बाद मे ही चढूंगा। तुम जाओ न दीदी। '

`अच्छा मेरे भाई,,, लेकिन संभलकर चढ़ना। '

किंजल अपने लाड़ले छोटे भाई को नाराज नहीं करना चाहती थी। सो पहले पेड़ पर चढ़ गई। मगर ज्यों ही हितेश पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके पैर फिसल गये और वह नीचे गिर गया। हितेश के सर पर चोट लगी थी और खून भी बहने लगा किंजल बहुत घबरा गयी। फटाफट नीचे उतरकर अपने भाई को संभाला। मगर छह साल का लड़का, किंजल कहाँ उठा पाती। उसे वहां छोड़ घर के अन्दर मदद के लिए भागी। किंजल के पिता वहाँ पहुँचे और हितेश को लेकर अस्पताल गये। हितेश का खून काफी बह चुका था। डॉक्टर ने कहा कि जान बचाने के लिए खून की जरूरत होगी। हितेश के पिता अपनी बीमारी के चलते खून देने मे असमर्थ थे और हितेश की माँ का खून, हितेश से मैच नहीं हुआ। ऐसे मे किंजल ने आगे बढ़कर अपने भाई को खून देने की बात कही। यूं तो किंजल भी ग्यारह साल की थी मगर परिस्थिति को देखकर डॉक्टर ने किंजल का खून, हितेश को चढ़ाया। थोड़ी देर मे पूरा परिवार अस्पताल पहुंचा। हितेश की दादी ने जब देखा कि किंजल का खून, हितेश को चढ़ाया गया है तो वे गुस्से से चिल्ला उठी। 

``इस मनहूस का खून मेरे लाड़ले को चढ़ाने की क्या जरूरत थी। मेरे पोते की ये हालत इसी की वजह से हुई है। एक तो पहले ही न जाने कौन से कुटुंब, परिवार से रही होगी इसकी माँ जिसने बेशर्मो की तरह मेरे बेटे से प्रेम विवाह रचाया और फिर ये मनहूस भी हमारे ही घर आनी थी दहेज में।''

`चुप करो अम्मा। ये कोई जगह और माहौल है ये सब बाते करने का। आख़िर किंजल, हितेश की ही बहन है।'

`बहन नहीं सौतेली बहन है। न जाने कौन सी घड़ी रही होगी जब तुमने इसकी माँ से विवाह रचाया। ये भी न सोचा कि एक बेटी की माँ है वो। बस, तुम पर तो प्रेम का भूत सवार था तो एक विधवा माँ से ब्याहने मे भी संकोच न किया तुमने। हे राम, जाने हमारे पोते पर कैसा असर होगा इस मनहूस के खून का !'

उस दिन पहली बार किंजल को पता चला था कि वो अपने पिता की सौतेली बेटी है और हितेश की सौतेली बहन। हितेश के पिता ने किंजल की विधवा माँ से विवाह किया था ये जानते हुए कि वे एक बेटी की माँ है। फिर किंजल की माँ के देहान्त के बाद किंजल के सौतेले पिता ने दूसरा विवाह किया। हितेश उनका अपना बेटा है। ग्यारह साल की किंजल ये सच्चाई जानकर अपने आप को हितेश की हालत के लिए जिम्मेदार मानने लगी। जब हितेश को होश आया तो किंजल ने तय किया कि अब से वह अपने भाई पर कोई आंच न आने देगी। हर पल उसकी छाया बनकर उसके साथ रहेगी। अपनी जान से भी ज्यादा उसका ध्यान रखेगी। वक्त बीतता गया। किंजल के पिता बीमारी के चलते मर गये। घर की हालत भी ठीक नहीं थी। ऐसे मे किंजल ने पंद्रह साल की उम्र मे हितेश की परवरिश, पढ़ाई और घर खर्च की खातिर अपनी पढ़ाई को छोड़कर, लोगों के कपड़े सिलने का काम शुरू किया। अपनी मेहनत से किंजल ने हितेश को पढ़ाया और इस काबिल बनाया कि अब वह पढ़ाई के साथ साथ छोटी मोटी नौकरी करके अपनी बहन का हाथ बंटा पाये। भाई बहन के बचपन, प्यार और गुजरे वक्त के पन्ने पलटते दो घण्टे का सफर बीत गया। किंजल अपने भाई के पास पहुंच चुकी थी। हितेश को देख किंजल के आँसू यूं ही बह चले। कोई तो रिश्ता, कोई तो डोर थी जो आपस में इन दोनों को बिना खून के रिश्ते के भी जोड़े हुए थी। किंजल ने अपने भाई को कुर्सी पर बिठाया और राखी की थाल मे चावल, कुमकुम सजाकर अपने भाई का मनपसंद हलवा भी अपने हाथो से बनाकर लाई। ये देखकर हितेश की दादी बोली, ``हुह्ह, हमारे हीरे जैसै पोते के लिए जाने कैसे सूती धागा उठाकर ले आयी है।'

`बस अम्मा,, इससे पहले कि आप कुछ और कहे, मैं कह दूँ कि मुझे ये राखी बहुत पसंद है। वैसे भी दीदी मेरे लिए जो भी लाती है बड़े प्यार और दुलार से लाती है। मुझे उनके आशीर्वाद, स्नेह और अपनेपन से बढ़कर कोई चीज प्यारी नहीं। ये सूती धागा ,ये डोर मेरे लिए बड़ी अनमोल है। क्योंकि राखी की डोर न सस्ती होती है, न सौतेली होती है ये तो बस अनमोल होती है।''  

हितेश की ये बात सुन किंजल बड़े अचरज से उसका चेहरा देख रही थी और पढ़ने की कोशिश भी कर रही थी। हितेश ने अपना दीदी के पैरो के पास बैठकर कहा, ``दीदी, इस शब्द का जिक्र करके मैं आपकी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता था। ये शब्द उस दिन से मेरे दिमाग मे बसा है जब मैं इस शब्द का मतलब भी नहींं समझता था। उस दिन जब पेड़ से गिरकर मैं बेहोश हो गया था तब अस्पताल मे मेरी आंख खुली तो अम्मा के मुँह से ही ये शब्द मैंने पहली बार सुना। मेरी बढ़ती उम्र के साथ, मैंने आपके चेहरे पर एक डर भी पाया, मैं जान न सका कि ये डर किस बात का है। मेरी परवरिश और पढ़ाई के लिए जो भी त्याग आपने किए, दिन रात मेहनत की, खुद भूखी रहकर भी मेरा पेट भरने के लिए काम किया। इतना ही नहीं, मेरी पढ़ाई की खातिर आपने बिना दहेज की मांग रखने वाले पुरूष से अनमेल विवाह किया। अपनी इच्छाओं, अधिकार और खुशियों का हमेशा बलिदान दिया है। मैं ये कड़वी सच्चाई कभी न जान पाता अगर आप की शादी वाले दिन आपके पति और हमारी अम्मा की बातों को न सुना होता। अम्मा ने थोड़े से पैसों की खातिर आपका विवाह, उस अधेड़ उम्र के पुरूष के साथ तय किया लेकिन जितनी कड़वी ये सच्चाई है कि हमारा रिश्ता सौतेला है उतनी ही ये बात भी सच है कि मेरा और आपका खून एक ही है। और मेरे लिए इससे फक्र की बात नहीं हो सकती कि मेरी रगों मे मेरी आदर्श, मेरी दीदी का खून है। अगर मैं पूरी ज़िन्दगी आपके चरणों को धोकर पियूँ तो भी आपके उपकार को चुका नहीं सकता। दीदी, इससे प्यारा और अनमोल रिश्ता मेरे लिए दूजा और कोई नहीं।''


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational