मेरे भारत की मिट्टी
मेरे भारत की मिट्टी
विदेश में रहने वाली मुग्धा शर्मा अपने पति और बच्चो के साथ रहती। पैसे, ऐश ओ आराम से जिंदगी कट रही थी ।बेटे के जन्मदिन की पार्टी में मुग्धा ने अपने और पति के ऑफिस के सभी लोगो को बुलाया। एक विदेशी महिला, जो कि मुग्धा के ऑफिस में काम करती थी उसने मुग्धा के घर मे एक धातु का बना छोटा सा महल देखा तो आश्चर्यचकित होकर पूछ बैठी, "ये क्या है मुग्धा !"
"ये हमारे घर का मंदिर है।"
"मंदिर ......!"
"मंदिर वो जगह होती है जहाँ हम अपने आराध्य को याद करते हैं, जहाँ से हमें सकारात्मक शक्ति मिलती है।"
"लेकिन ....यहाँ तो बस ये थोड़ी सी मिट्टी है.. तुम्हें इस मिट्टी से क्या मिलता है !"
"ये सिर्फ मिट्टी नहीं है लिज़ा... ये मेरे देश की पहचान है, मेरे वतन का आशीर्वाद है जो हमेशा मेरे साथ रहता है। जब भी मुझे इस परदेश में कोई मुसीबत आई या कभी अकेलापन महसूस हुआ तो मैं इस मिट्टी के सामने बैठ जाती हूँ मानो उस वक़्त ये मिट्टी मुझसे बात करती हो, मुझमें एक नया उत्साह, नयी उम्मीद जगाती हो। मुझ से कह रही हो, 'तू क्यूँ फ़िक्र में है ,मैं जो तेरे साथ हूँ।' इस मिट्टी की ओर खुशबू मेरे घर को, मेरे बच्चों को अपनेपन का पाठ पढ़ाती है।
हमें जड़ से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करती है। संस्कारो में रहना सिखाती है।"
और इतना कहते हुए मुग्धा की आँखें नम हो गई।
