यादों का सिंदूरी रंग
यादों का सिंदूरी रंग
"कितनी कोशिश की, लेकिन बाऊजी ने कमरे का दरवाजा नहीं खोला। हर साल, होली के दिन बाऊजी यही करते है। अपने आप को कमरे में बंद कर लेते है। बच्चो का कितना मन होता है कि वो भी अपने दादाजी को रंग लगाएं।"
"तुम तो जानती हो न, बाऊजी को रंग खेलना शुरू से ही पसंद नही। और फिर ....माँ के गुजरने के बाद तो बाऊजी को लाल, पीले, नीले रंगों से नफरत सी हो गई है।"
लेकिन ऐसे कब तक चलेगा ! आखिर कभी तो बाऊजी को माँ जी की यादों से बाहर निकलकर वक़्त के साथ आगे बढ़ना होगा। "
पति पत्नी की वार्तालाप के बीच मे ही बच्चे के चिल्लाने की आवाज आई।
बाहर जाकर देखा तो बच्चो की टोली अपने दादाजी की खिड़की के बाहर हाथों में पिचकारी लिए खड़ी थी। पति पत्नी ने अंदर झाँका तो बाऊजी हाथों में सिंदूर मल रहे थे और पलँग पर उनकी शादी की तस्वीर थी। जिसे देख उनकी बहू ने कहा,
"कैसे भूल गए आज की तारीख! आज तो बाऊजी और माँ जी की शादी की......।"