जरूरत

जरूरत

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"भैया... ओ भैया.... मेरी मदद कर दो। मुझे मदद की जरूरत है। दंगेबाजो ने मेरे पापा को घायल कर दिया है। उनके पाँव से खून बह रहा है। प्लीज मेरी मदद करो। आपकी गाड़ी में हमें हॉस्पिटल तक लिफ्ट दे दीजिए भैया।"

सलवार कमीज पहनी, लम्बी चोटी वाली एक लड़की मुकेश की गाड़ी के आगे हाथ जोड़े खड़ी थी। गाड़ी में मुकेश की बीवी और माँ भी थे। मुकेश इन दंगाई माहौल से निकलकर जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था। मदद की गुहार लगाती इस लड़की को देख मुकेश की बीवी बोली, "रहने दीजिए जी।

हमें किसी के पचड़े में पड़ने की क्या जरूरत! आप सीधा सीधा घर चलिये।" मुकेश ने बेबसी दर्शाते हुए उस लड़की को देखा और गाड़ी आगे बढ़ाई। अगले ही पल, दंगाईयो ने मुकेश की गाड़ी पर हमला किया और गाड़ी का काँच टूट गया। मुकेश की बीवी और माँ के सर से जबरदस्त खून बहने लगा। मुकेश घबरा गया कि तभी वो लड़की, जो पहले मदद मांग रही थी अब मदद के लिए आगे आई। अपने पिता की पगड़ी उतारकर मुकेश को दी और कहा, "ये पगड़ी हमारा मान है लेकिन इस वक़्त आपके घरवालो के सर से बहते हुए खून को रोकने के लिए बहुत काम आ सकती है ये पगड़ी। भैया... मान और जान में से पहले जान बचाने की जरूरत है।"

जरूरत लफ्ज़ जो चंद पल पहले स्वार्थ को जता रहा था अब वही शब्द इंसानियत को बयां कर रहा था।


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