पितरों को नमन
पितरों को नमन


मैं बहुत छोटी थी जब मेरी माँ इस संसार से विदा ले गई। पिता ने माँ-बाप दोनों बनकर हमारा पालन किया, बहुत प्यार दिया। कब बड़ी हो गई, जब मेरी विदाई की घड़ी आ गई।
मैं ससुराल आ गई। भगवान की कुछ कृपा थी छोटा परिवार मिला साथ ही सास -ससुर का अपार स्नेह और प्यार मिला। और मैं अपने मायके को भुलाकर ससुराल में सम्पूर्ण रम गई।
अपनी ओर से मैं भी ससुराल में सब का आदर करती थी सब बहुत खुश थे।
मेरी सास ने मुझे सब कुछ सिखाया। काम सब करते हैं पर घर को सुव्यवस्थित रूप से कैसे सम्भालते है ये मुझे सिखाया। हर काम का तरीका बताती थी ताकि पूरा परिवार खुश रहे। उस जमाने में भी मुझे पर्दा नहीं करने दिया। सबके साथ बैठ कर खाना भी टेबिल पर ही खाते थे। मैं सास को माँ कह बुलाने लगी बाकी सब मम्मी कहते थे, पर मुझे उनमें एक का रूप ही दिखता था। वो बहुत खुश होती थी माँ शब्द सुनकर। इसी तरह हम सब का जीवन चलता रहा और एक दिन वो हम सब का साथ छोड़ कर उस दुनिया से चली गई और उनकी सारी यादें सहेज कर अपने मन में रख ली। आज भी मैं अपने पिताजी के साथ साथ अपने सास-ससुर की बहुत कमी महसूस करती हूँ ।
इसके बाद पति का भी देहावसान हो गया। दो बच्चे और एक नन्द का भार आ गया। बैंक में नौकरी करके दोनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया शादी की आज दोनों अपने परिवार में ठीक है नन्द भी अपने ससुराल मै ठीक है।
आज याद आता है कि कैसा भरा पूरा परिवार था। अब तो बस इस संसार से विदा होने का समय है।
अब तो बस पुरानी यादें ताज़ा हो गईं हैं ।