Piyush Goel

Inspirational

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पितृ भक्ति का महत्व

पितृ भक्ति का महत्व

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पुरातन काल में एक बहूँ त ही बड़े ब्राह्मण थे, उनका नाम शिवशर्मा था, उन्हें समस्त वेदों व शास्त्रों का अध्यन कर रखा था। उनके पाँच पुत्र थे, जिनके नाम थे - यज्ञशर्मा, वेदशर्मा, धर्मशर्मा, विष्णुशर्मा व सोमशर्मा। एक बार शिवशर्मा के मन मे इस बात का सन्देह हूँ आ कि उनके पांचों पुत्र में अपने पिता को लेकर पितृ भक्ति है कि नहीं तब शिवशर्मा ने अपने पुत्रों की एक परीक्षा लेने का निश्चय किया और शिवशर्मा ने अपने पुत्रों के समक्ष एक घटना उत्पन्न करी, वह घटना थी कि शिवशर्मा ने अपनी माया से अपने पुत्रों को दिखाया कि उनकी माता मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है। यह देखकर शिवशर्मा के समस्त पुत्र शिवशर्मा के पास गए और बोले - " पिताश्री ! हमारी माता का स्वर्गवास हो चुका है, अब आप हमें आज्ञा दे कि अब हमें क्या करना है "? तब शिवशर्मा ने अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि "बेटा ! तुम अपनी माता के अंगों को बाट दो।" पुत्र ने वैसा ही करा। यह देख शिवशर्मा को सन्तोष हूँ आ। 

ततपश्चात शिवशर्मा ने अपने दूसरे पुत्र वेदशर्मा की पितृ - भक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय करा। तब शिवशर्मा ने वेदशर्मा को अपने पास बुलाया और कहा - " बेटा ! तुम्हारी माता का तो देहांत हो गया परन्तु मैं बिना स्त्री के नहीं रह सकता इसलिए तुम शीघ्र जाकर मेरे लिए कोई नवयुवती ले आओ।" पिता की आज्ञा सुनकर वेदशर्मा शीघ्र ही एक स्त्री के पास गए और उनके समक्ष विवाह प्रस्ताव रखा, वह स्त्री माया से उत्पन्न थी। उस मायावी स्त्री ने वेदशर्मा को कहा - " मैं तुम्हारे उन वृद्ध पिता का क्या करूंगी ? मैं तो तुम्हारे शरीर से मोहित हूँ । मैं तुम्हें अपना वर बनाना चाहती हूँ । तुम मेरे साथ सहवास करो।" यह सुनकर वेदशर्मा ने कहा - " मैं यहां अपने पिता की आज्ञा से आया हूँ व तुम उनका विवाह प्रस्ताव स्वीकार करो।" यह सुनकर उस युवती ने वेदशर्मा से वेदशर्मा का शीश मांगा तब वेदशर्मा ने सहर्ष अपना शीश उस युवती को दे दिया। इससे वह युवती अति प्रसन्न हूई ओर शिवशर्मा के पास गई और सारा वृतांत कह सुनाया तब शिवशर्मा को वेदशर्मा की पितृ - भक्ति पर भी पूर्ण विश्वास हो गया। 

अब शिवशर्मा ने अपने तीसरे पुत्र धर्मशर्मा की परीक्षा लेने का निश्चय किया। शिवशर्मा ने अपने तीसरे पुत्र धर्मशर्मा से कहा कि वह अपने भाई वेदशर्मा को जीवित कर दे। तब धर्मशर्मा अपने भाई वेदशर्मा का मस्तक लेकर कहने लगा -" हे महापंचभूत ! यदि मैंने सदैव धर्म का पालन करा है, यदि मेरी पितृ - भक्ति में कोई भी दोष नही है तो इस ही क्षण मेरे भाई वेदशर्मा जीवित हो उठे।" तब वेदशर्मा जीवित हो उठे। इस प्रकार धर्मशर्मा की भी परीक्षा पूर्ण हूँ ई।

अब चौथे पुत्र विष्णुशर्मा की बारी थी। शिवशर्मा ने विष्णुशर्मा को स्वर्ग से अमृत लाने का आदेश दिया। विष्णुशर्मा भी पिता की आज्ञा से स्वर्ग की ओर चल पड़े। जब देवराज इंद्र को ज्ञात हूँ आ कि विष्णुशर्मा यहां किस प्रयोजन से आए है तब देवराज ने विष्णुशर्मा को ब्रह्मित करने के लिए मेनका नामक अप्सरा को भेजा। मेनका दिखने में अति सुंदर थी। वह विष्णुशर्मा के पास गई और विष्णुशर्मा को अपनी कामवासना में फंसाने लगी परन्तु विष्णुशर्मा अत्यंत ज्ञानी थे, वह समझ चुके थे कि यह देवराज का ही कृत्य है। मेनका विफल हूँ ई, तब देवराज अनेको विघ्न उत्तपन करने लगे। इससे विष्णुशर्मा को देवराज पर ही क्रोध आ गया। तब देवराज इंद्र स्वयम प्रकट हूँ ए और विष्णुशर्मा को अमृत का घड़ा देकर अपनी भूल के लिए क्षमा - याचना करने लगे। विष्णुशर्मा भी परीक्षा भी सफल हूँ ए तब शिवशर्मा ने अपनी माया का प्रभाव खत्म करा व अपनी अर्धांगिनी को जीवित कर दिया। पितृ - भक्ति का पालन करने वाले उन चारों पुत्रो को विष्णु लोक की प्राप्ति हूँ ई। 

शिवशर्मा ने अब अपने सबसे छोटे पुत्र की पितृ - भक्ति की परीक्षा लेने का निर्णय करा। शिवशर्मा ने अपने पुत्र को अमृत की रक्षा करने का दायित्व दिया और स्वयम तीर्थ की ओर चले गए। सोमशर्मा ने लगातार दस वर्सो तक उस अमृत की रक्षा करी। जब वह वापस आए तब शिवशर्मा अपनी माया से कोढ़ी बन गए। जब शिवशर्मा व उनकी पत्नी अपने पुत्र के समक्ष आए, सोमशर्मा उन्हें देख अति आश्चर्यचकित रह गए। तब सोमशर्मा ने अपने पिता व माता की सेवा करी। इससे अति प्रसन्न होकर शिवशर्मा ने अपनी माया का प्रभाव खत्म करा। और सोमशर्मा भी विष्णुलोक में गए।


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