पिता की चाहत
पिता की चाहत


अनुमंडल पदाधिकारी के दफ्तर में प्रवेश करते ही जज ने कहा, “ बधाई हो वर्मा जी, आप जीत गए। प्रोविडेंड फंड से
मिले ढाई लाख रुपयों पर अब आपका अधिकार है। ”
सामने बैठे पुत्र ने अपनी नजरें नीची कर लीं जिसने पिता के सारे पैसों पर अपना अधिकार जमा लिया था।
“मुझे पैसे नहीं चाहिए,” वर्मा जी ने इत्मिनान से कहा
“फिर आपने शिकायत क्यों लिखवाई” हैरान होते हुए जज ने पूछा।
“यदि मैं यह कहता कि मुझे बेटे का थोड़ा सा समय चाहिए तो आप यह शिकायत लिखते क्या ?”
वर्मा जी ने बात जारी रखी,” आप फेसले में यह लिखें कि बेटे के चौबीस घंटों में मुझे सिर्फ एक घंटा समय चाहिए
ताकि मैं उसके दुःख दर्द जान सकूँ। साथ ही सुबह का प्रणाम चाहिए ताकि पूरे दिन के लिए मैं उसे आशीर्वाद का
कवच पहना सकूँ।”
पुत्र, पिता के कदमों में झुक गया।