Dr. santosh vishnoi

Tragedy Classics Inspirational

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Dr. santosh vishnoi

Tragedy Classics Inspirational

पिता का आखिरी सच

पिता का आखिरी सच

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मानसी अपने पिता की लाडली बेटी थी। उसके पिता कैलाशचंद्र जी जिले के विकास खंड अधिकारी थे। उनके दो लड़के भी थे। जब मानसी थोड़ी बड़ी हुई थी तब से ही उसके पिता ने एक कमरे में उसके लिए थोड़ा थोड़ा करके समान सहेजना शुरू कर दिया था। उनकी पत्नी उनका अक्सर मज़ाक करती ये आप अभी से क्यो इक्कठा करने लगे। अभी तो बिटिया कॉलेज में आयी है। मानसी के पिता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वो तो अपनी बेटी की शादी का सामान धीरे धीरे कर के जमा करते जाते। उनका मानना था जीवन का क्या भरोसा कब साँस साथ छोङ जाए। बेटी की शादी में मैं कोई कोर - कसर नहीं छोड़ने देना चाहता। उनकी पत्नी उनकी इस बात से उन्हें पागलपन की हद करार देती। 

मानसी की स्नातक की पढ़ाई पूरी होने को आ रही यी। उसके पिता ने दिल्ली के एक परिवार में उसका रिश्ता तय कर दिया। लड़का रोहित इंजीनियरिंग कर रहा था। मानसी के पिता बड़े खुश थे और जल्द विवाह करना चाहते थे। लेकिन अभी मानसी की एक साल की पढ़ाई और बाकी रह रही थी। उधर रोहित की भी इंटरनशिप बाकी थी। 

एक दिन कैलाश चंद्र जी की तबियत बिगड़ी और उन्हे दफ़्तर से ही अस्पताल भर्ती करवाया गया। उनकी रिपोर्ट आयी तो पता चला उन्हे लंग कैंसर है। डॉक्टर ने उन्हे आगे उपचार की सारी प्रक्रिया समझा दी। उस हॉस्पिटल का डॉक्टर राकेश उनका खास दोस्त भी था। दोस्त होने के नाते डॉक्टर ने ये बता दिया कि आपकी जिंदगी और मौत के इस खेल में आखिरी जीत किसकी होगी ये नहीं कह सकते।

मानसी के पिता ने ये बात अपने घर पर किसी को नहीं बतायी। यहाँ तक की अपना भी ट्रांसफर घर से दूर करवा लिया। उनकी बीवी और बच्चे अभी साल के बीच में होने के कारण उनके साथ जा नहीं सकते थे। कैलाशचंद्र जी यही चाहते थे। वो आने वाले कल की काली परछाई अपने परिवार पर पड़ने देना नहीं चाहते थे। उन्होंने अपनी कमाई का एक एक हिस्सा अपने परिवार की सुरक्षा मे ख़र्च करने लगे। उनके पास अपनी जिंदगी का बहुत कम हिस्सा बाकी था। 

अब उन्हें कुछ कठोर फ़ैसले करने की घड़ी आ गयी थी। उन्होंने जल्द ही मानसी के विवाह की तारीख तय कर दी। मानसी को बहुत बुरा लगा। पिता को इतनी क्या जल्दी है अपने घर से विदा करने की। उसने नाराज़गी व्यक्त करने हुए पिता से बातचीत तक बंद कर दी।

 मानसी के पिता के पास समय कम था और वो इस बात की भनक मानसी तक नहीं पहुंचाना चाहते थे। शादी के लिए मानसी हॉस्टल से घर आ गयी। उसने पिता से सीधे मुँह बात तक नहीं की। मानसी के पिता उसकी नाराजगी की वजह समझते थे। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस मुस्कुराते हुए शादी की तैयारियों में जुटे रहे। 

चार दिन के शादी के कार्यक्रम में उन्होंने एक बार भी चैन से बैठ कर साँस नहीं ली। शादी में कोई कौर कसर न रहे इस बात का खास ख्याल रखा गया। मानसी को खूब दान दहेज़ के साथ उसे विदा किया। उसके ससुराल वाले भी बड़े खुश हुए। इतनी अच्छी खातिदारी के साथ साथ सबका मान सम्मान भी रखा। मानसी ससुराल चली गयी। 

कुछ दिनों बाद उन्होंने दोनों बेटों के लिए भी अलग अलग सम्पति का हिस्सा कर के एक घर पत्नी के नाम कर दिया।

मानसी के पिता अब घर में किसी से प्यार से बात नहीं करते थे। हर समय उखड़े रहते। उनकी पत्नी और बच्चे तक उनके इस व्यवहार से तंग आ रहे थे। बच्चे दबी जुबान से कहते मम्मी इससे अच्छा तो पापा दूर ही सही है। एक ही घर में रहना तो बहुत मुश्किल है। पूरे हिटलर जैसे हैं पापा। मानसी की माँ भी इस बात में समर्थन करती। 

हनीमून से लौटने के बाद मानसी पगफैरे में फिर मायके लौट कर आयी थी। उसके पिता बैठक में बैठे थे । मानसी को आया देख कर बहुत खुश हुए। 

मानसी की नज़र भी जब पिता पर पड़ी तो अपनी सारी नाराज़गी भुला कर उनकी और प्यार से आगे बढ़ी। 

तभी उसके पिता का व्यवहार और मिजाज पलभर में बदल गया।

 मानसी को अपनी आँखों से दूर जाने का संकेत दिया और खुद उठ कर अपने कमरे में चले गए। मानसी पिता के इस बदले व्यवहार से परेशान सी हो रही थी। 

घर में किसी ने ये ध्यान नहीं दिया कि उसके पिता एकदम से परिवार से अलग थलग क्यों रहने लगे। सबसे चिढ़ कर बात करते। 

थोड़े दिनों बाद मानसी के पिता वापस आपने काम पर लौट गए। घर में सबने राहत की साँस ली। किसी ने उनकी कमी महसूस नहीं की। 

समय के साथ मानसी के पिता ने अपनी बीमारी के आगे घुटने टेकना शुरू कर दिया। वो एक बार फिर हॉस्पिटल के बिस्तर पर आ गए। डॉक्टर ने उन्हे बताया कि अब उनका कठिन समय निकट आ गया है। घर वालों को बुला लेना चाहिए। मानसी के पिता ने डॉक्टर से कहाँ मेरी एक आखिरी इच्छा है राकेश।

" आप मेरी बीमारी के बारे में मेरे परिवार से कुछ नहीं कहेंगे। मेरे मरने के बाद भी नहीं।...मैं नहीं चाहता मेरे जाने के बाद मेरा परिवार मुझे याद करे। क्योंकि यादें बड़ी कड़वी होती है। व्यक्ति को हमेशा दुःख देकर जाती है। जब मुझे मालूम है मैं ठीक नहीं हो सकता तो इस गम का असर मेरे परिवार पर नहीं पड़ने देना चाहता। मैंने उनके लिए इतना तो कर दिया है कि इस जन्म में उनको मेरे बिना भी कोई कष्ट या अभाव नहीं देखना पड़ेगा। "

राकेश एक डॉक्टर के साथ उनका दोस्त भी था। उनकी भावनाओं को समझ सकता था। उन्होंने उनसे वादा किया कि वो ऐसे ही करेंगे। 

मानसी के पिता का आखिरी दिन करीब आ गया था। आज उनकी साँसे धीमी होती जा रही थी। डॉक्टर राकेश ने घर पर सूचना देना उचित समझा। घर से सब लोग आ गए। मानसी भी अपने पति रोहित के साथ आ गयी थी। सबने पहली बार पिता को इतना थका हुआ और बीमार देख रहे थे। वो समझ ही नहीं पा रहे थे उन्हें क्या हो गया था। 

 एक आखिरी बार कैलाश चंद्र जी ने धीमी होती साँसों और बंद होती आँखों को उठा कर एक नज़र परिवार को देखा और हमेशा के लिए अपनी आँखे बंद कर ली। 

हॉस्पिटल की तमाम औपचारिकता के बाद जब उन्हें घर ले जाने तैयारी कर रहे थे। हॉस्पिटल के काउंटर पर बिल बकाया पता किया तो कहा गया उन्होंने मरने से पहले ही सब चुका गए थे। 

उनको घर लाकर सब रीति रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार करवा दिया। 

मानसी पिता के जाने के बाद एक बात समझ नहीं पा रही थी। पापा ने जाने से पहले उनके हिस्से में न कोई सलाह दी, न कोई बकाया छोङ कर गए। ऐसे कैसे हो सकता है। 

उसने डॉक्टर से मिल कर एक बार पिता के बारे में पूछने का फैसला किया। 

वो डॉक्टर के पास गयी। पूछा -"क्या हुआ था उन्हें। डॉक्टर बोले मैं किसी के आखिरी बार किये वादे से बंधा हुआ हूँ। लेकिन तुम्हारे पापा ने एक बार अपनी ये डायरी दी थी। कहाँ था जाने के बाद नष्ट करवा देना। लेकिन मैं कर नहीं सका। आज तुम्हारा चेहरा देखा तो सोचा ये अन्याय होगा। कैलाश की ये डायरी आपको सौंपना मेरे लिए जरूरी हैं। 

मानसी डायरी ले घर आयी। डायरी को पढ़ना शुरू किया। इसमें मानसी को हर उस बात का जवाब मिलने लगा जिसे वो एक राज बना कर जाने की तैयारी कर गए थे। 

अपने कठोर होने के पीछे की वजह अपनी बीमारी को छुपाना था। 

मानसी का गला रुन्ध गया। उन आखिरी पलों को याद करने लगी जब उसने पिता से बात नहीं की। नाराजगी में उसने अपने पिता के साथ के कुछ सुनहरे पलों को भी खो दिया। पिता की उस जीवंतता को मान गयी। ये सच है एक पिता के कितने रूप होते हैं। वो अपने सुख दुःख की परवाह किये बिना अपने बच्चों के लिए लिए क्या कुछ नहीं करते। धन्य है ऐसे पिता। उनके त्याग कभी कोई नहीं समझ सकता।

जाने के बाद ही एक पिता की असली भूमिका पता चलती है। पिता के कठोर हृदय में प्रेम की अलग ही परिभाषा होती है। 

मानसी इससे से ज्यादा पढ़ न सकी। पिता की आखिरी इच्छा थी उनका अपना सच परिवार तक नहीं पहुँचे। जिसे उसको पूरा करना था। डायरी को अपनी याद में हमेशा के लिए संजोकर उसके मूल रूप को नष्ट कर दिया। ये एक पिता को एक बेटी की अंतिम आहुति थी।


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