पीना छोड़ दिया
पीना छोड़ दिया
"दामाद जी, आप पवित्र नदियों की त्रिवेणी के बीचों बीच खड़े हैं। अभी आपको यहां, एक वस्तु का दान करना है। जो भी वस्तु आपको प्रिय हो।"
हमारी सासुजी ने मुझे सलाह दी थी। बात सितम्बर 1992 की है। हम बहुत से रिश्तेदार, इलाहाबाद की त्रिवेणी में, हमारे ससुर जी की अस्थि विसर्जन का कार्यक्रम गंगा जी में कर रहे थे।
मैं कुछ सोच पाता, उससे पहले ही हमारे साले साहब ने मुझे सलाह दे डाली, "आप सिगरेट बहुत पीते हैं, क्यों ना आप, अभी यहीं, सिगरेट का त्याग कर दो, हमेशा के लिए।"
मेरी पत्नी को सुअवसर मिल गया।उन्होंने भी पुरजोर तरीके से अपनी पुरानी सलाह, सभी के सामने कही, “यह अच्छा अवसर है, आप सिगरेट हमेशा के लिए गंगाजी को अर्पित कर दो। आपकी सेहत और पैसे सुरक्षित हो जायेंगे।आखिर सिगरेट से कैंसर होता ही है। यह जहर कई वर्षों से पी ही रहे है। आगे निर्णय आपको ही करना है।"
ये पत्नियां चालाकी से अवसर को भूनाने में माहिर होती है। बुद्धिमत्तापूर्ण अपनी बात मनवाने में, उनका कोई सानी नहीं होता।
मैं निर्णय में पहुँच ही रहा था कि मुझे, अपने ज्येष्ठ पुत्र, जो कि मेरे बाजू ही खड़ा था, उसकी आवाज सुनाई दी, "क्या पापाजी, सभी बोल रहें है तो, डन कर दीजिये।"
मैंने सोचा लड़का भी यही चाहता है तो क्यों ना, हो ही जाये। आखिर कभी तो सिगरेट छोड़नी ही होगी।
मैं निर्णय ले चुका था। पुत्र से कहा, "ओ के बेटा डन। अभी से हमेशा के लिए, मैंने सिगरेट छोड़ दी। अब मैं कभी सिगरेट नहीं पीऊंगा। माता गंगा को मैंने अर्पित कर दिया।"
सभी के चेहरे प्रफुल्लित हो उठे। मैं अपने लड़के को देखने लगा। वह खुश होकर ताली बजा रहा था। ऐसा करता देख सभी लोग तालियां बजाकर, मेरे निर्णय का स्वागत कर रहे थे।
आज 27 वर्षों से अधिक बीत गए। मैं अपने संकल्प पर अब भी कायम हूँ। अजी सिगरेट की बात जाने दीजिए, मुझे तो सिगरेट के धुएं से भी परहेज है!!
