फुटबॉलर
फुटबॉलर
रजत जब घर पहुंचा तो अंत्य उदास सा सोफे पर बैठा हुआ था।
रजत को कुछ अलग सा लगा क्योंकि जब भी वह ऑफिस से घर आता था तो अंत्य खुशी से उससे चिपक जाता था लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ।
रजत (हँसते हुए)- क्या हुआ अंत्य ?आज पापा को वेलकम नहीं करोगे ?
अंत्य (गम्भीर होकर) -सॉरी पापा,आज मेरी फुटबॉल मैच की प्रैक्टिस थी।
रजत- तो क्या हुआ ? आपने प्रैक्टिस नहीं की ?
अंत्य- मैंने प्रैक्टिस की लेकिन टीचर ने कहा है कि मुझे घर पर भी प्रैक्टिस करनी होगी।
रजत सोच में पड़ गया। क्या करेगा अब वह ?ऑफिस के काम के बीच कैसे करवाएगा फुटबॉल प्रैक्टिस ? उसे अपना बचपन याद आ गया जब उसने अपने मन के की इच्छा को एक कोने में दबा कर अपने परिवार की इच्छा पूरी करने की जिम्मेदारी ली थी। रजत का बचपन एक मध्यम वर्गीय परिवार में बीता था।उसके माता-पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे लेकिन वह एक खिलाड़ी बनना चाहता था, एक फुटबॉलर। उसके परिवार ने उसके सामने एक शर्त रख दी कि या तो वह क्रिकेटर बने या इंजीनियर, क्योंकि भारत ही वह देश है जहाँ जितना पैसा क्रिकेट में है उतना किसी और खेल में नहीं।
एक तरह से रजत के पास कोई अन्य विकल्प था ही नहीं। उसने किसी और खेल को चुनने की बजाय इंजीनियरिंग को चुना और जी-जान मेहनत की।
अपनी मेहनत के बल पर वह इंजीनियर तो बन गया लेकिन अपनी उस इच्छा को नही भुला पाया। आज भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि अंत्य को रजत का सहाारा है, रजत को नहीं था।
रजत ने तय कर लिया था कि जो उसने छोड़ा था, अंत्य नही छोड़ेगा।वह एक सफल फुटबॉलर बनेगा।
रजत (वर्तमान में लौटते हुए)- तो क्या हुआ ? हम दोनों है ना प्रैक्टिस करने के लिए,आज शुरू करते हैं।
अंत्य (खुशी से)- थैंक्स पापा।
आज रजत खुश था कि उसे अपना बचपन वापस जीने का अवसर मिल रहा था।