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Prashant Beybaar

Tragedy

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Prashant Beybaar

Tragedy

फ़ुरसत में बादल

फ़ुरसत में बादल

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सुरमई रंग पुती दीवार में दो बाई चार की एक खिड़की थी। जिसमें से आठ नंबर बिस्तर पे लेटा ज़हीर हमेशा बाहर तकता रहता था। छठी मंज़िल से बस आसमाँ ही दिखेगा, सो ज़हीर पूरा-पूरा दिन, पूरी-पूरी रात उसी खिड़की से बादल देखता रहता।


नर्स ने कुछ पूछा तो बोला नहीं, बस नज़र बाँधे महीन सुर में बड़बड़ाता रहा। नर्स ने बताया, "हालत सुधर रही है तुम्हारी, जल्दी ही ठीक हो जाओगे।" पल भर के लिए रुक कर ग़ौर से बात सुनी और फिर बादलों की तरफ़ देख बड़बड़ाता रहा, झाँकता रहा दो बाई चार की खिड़की से बाहर।


महीने भर से बादल मँडरा रहे थे, बस बरसते नहीं, ज़मीन तो आग उगल रही थी। अस्पताल में आधुनिकीकरण चल रहा था। एक दिन सुपरवाइज़र ने ए.सी फिटिंग की वजह से खिड़की बंद करवादी ।


उस रात मूसलाधार मेंह बरसा। 


सुबह ज़हीर की रिपोर्ट्स से डॉक्टर हैरान थे कि बिना किसी निशान के दम घुटने से मौत ! कैसे ? सीने में ऐसा क्या अटका रहा रात भर ? 


बादल टूट के बरसा, मगर बादलों की आपबीती अब किसी ने न सुनीं। शहर कहानियों से लबालब था, मानो बाढ़ आयी हो जैसे।


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