एडजस्ट कीजिये
एडजस्ट कीजिये
"कितना दूर और चलना पड़ेगा अभी", डॉक्टर ने हाँफते हुए पूछा और धीमे से बड़बड़ाया, "उफ़्फ़ ! गर्मी से सड़क का कोलतार खौल रहा है ।"
"बस वो सड़क किनारे से वैन खड़ी है, पहुँच गए समझो, थोड़ी हिम्मत रखो, तुम्हें कौन सा कहीं दूर गाँव जाना है", आदमी ने मूँछों पे ताव देते हुए ठिठोली ली।
"और फिर लॉक डाउन है डॉक्टर साब, इतने दिन तो परेशानी उठाये ही हो, थोड़ी और सही, वरना मैं तो अपनी गाड़ी आपके घर के अंदर ही ले आता आपको अकेले बैठा के ले जाता।"
"हम्म ठीक है, ठीक है"
गाड़ी का पीछे वाला दरवाज़ा खोलते ही डॉक्टर बिगड़ गया,"अर्रे, ये क्या बात हुई, गाड़ी में जगह ही कहाँ है।"
बाक़ी कुचे-पिचे से बैठे पाँचों यात्री एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई इंच भर भी सरकने को तैयार न था। गोद में बच्चा लिए औरत ने पहले ही आँखों से नामंजूरी बिखेर दी। अधेड़ उम्र वाले ने सामने बैठे लड़के को इशारा किया कि उठ जाए तो लड़के ने मुँह बनाया और अपनी एक्स-रे रिपोर्ट्स आगे कर दी। कोने वाला एक बुज़ुर्ग हाथ में से रुद्राक्ष माला छोड़कर आँख खोले, तब तो कोई कुछ बोले भला। तभी उनमें से अस्सी साल के बुजुर्ग ने अपनी कंपकपाती छड़ी टिकाते हुए कहा, "बेटा तुम बैठो, मैं आगे चला जाऊँगा। तुम डॉक्टर हो, अपनी जान लगा देते हो हमारी जान बचाने में।"
डॉक्टर सूखे गले से कुछ बोला नहीं, मगर हाथों के इशारे से संकोच जताया।
तभी ड्राइवर सीट पे बैठकर, दरवाज़ा 'धडाक' से लगाते हुए मूँछों वाले आदमी ने फटकार लगायी, "क्या लगा रखा है ये सब। ओये डॉक्टर ! तू आगे आ मेरे पास, यहाँ बैठ चल। देख नहीं रहे हो कितनी देर हो गयी है, अभी दूसरा चक्कर भी लगाना है। अब तो, एडजस्ट करो यार !"
बस इतना कहते-कहते मूँछों वाले यमराज ने आत्माओं से भरी गाड़ी आसमाँ की तरफ़ मोड़ ली।
