लाड़ो, चिट्ठी लिखना
लाड़ो, चिट्ठी लिखना
“बड़े चुपचाप बैठें हैं, क्या बात हुई खेप पाल जी से”, मालती ने सर पे साड़ी खेंची और बिमलू से बोली।
“नहीं नहीं कोई ऐसी बात नहीं है, सोच रहा हूँ कि शादी का इंतजामात दुरुस्त करने होंगे” कहकर कमर सीधी की बिमलू ने।
पूरा बिमल देव कहने में सबको बड़ा आलस आता था, वैसे भी बर्तन की दुकान पे काम करने वाले को बिमल देव कहना बड़ा मालिकाना लगता है। बिमलू नाम दुकान के नौकर के लिए ज़बान पे भी नहीं रगड़ता।
मालती ने चूला सुलगाया और साड़ी सर पे खींचती हुई बोली, “सुनिए जी, अगर कमरतोड़ लग रहा है तो कहीं और बात कर लीजिए ”
“वैसे ही अब तक कि सब पूंजी अपनी ज़मीन पे दो कमरे बनाने में चली गई, महगाई भी बहुत है”
“कोयला फूंकते फूंकते दिमाग में धुआं भर गया है क्या”, बिमलू बिगड़ गया। पास में बैठी लाड़ो भी एकाएक सहम गई।
“लड़का रेलवे की वर्दी पहनता है, पत्थर तोड़ता है तो क्या हुआ, लाड़ो की ज़िंदगी आराम से गुजरेगी, इकलौती बेटी है खाल भी बेचनी पड़ी तो पीछे नहीं हटूंगा”
बिमलू तो ज़िद पकड़ कर बैठ गया।
लाड़ो ने हिम्मत भरके ज़बान खोली, “बाबा, मैं क्या भारी पड़ती हूँ आप दोनों पे, रोटी भी दो ही लेती हूं। अभी तो गोदा, फूली, छलिया किसी की शादी नहीं हुई।”
एक सवाल सा खत्म हुआ लाड़ो के चेहरे पे जिसके जवाब में बिमलू बस नज़र भरके देख ही पाया।
थोड़ा रुक कर बोला, गोदा के बाप की खुदकी चीनी की दुकान है, फूला का बाप शहर मे काम करता है, और उस छलिया की बात मत कर, बेवक़ूफ़ है वो लड़की तो सोलह की होगी अभी तक लड़कियों जैसे कोई तैर तरीके नहीं उसके।”
“देखो तुम दोनों, आज नहीं तो कल शादी तो करनी ही है।
वैसे भी गाँव में दावत तो देनी ही है, भई बोहार भी तो निभाना पड़ेगा।”
“लेकिन बेटी का ससुराल ज्यादा दूर नहीं हो जाएगा शायद ? रेल के दो दिन और फिर तांगा भी सांझ कर लेता है चौपाल तक लाते लाते। वहां से एक कोस तो होगी ही गली अपनी।”
“तो क्या बेटियां घर में ब्याही जाती हैं, कैसी फ़िज़ूल की बात करती है कभी कभी”
“और कौन सा आना है इसे यहां रोज़ रोज़ !”
“हम्म” कहा और थाली सरकाई बिमलू की तरफ।
“आगे पढ़ना चाहती है लाड़ो, बताया न खेप पाल जी को?”
बिमलू ने निवाला पूरा चबाया और गर्दन हिला दी। मालती मुड़कर चूल्हा फूंकने लगी।
“हाँ जानता हूँ बड़ा शौक है लाड़ो को पढ़ने का, कई सालों से सोच रहा हूँ, आठवीं का पर्चा भरवा दूँ, पर अब खेप पाल जी जानें”।
“चिट्ठियां लिख लिया करेगी वहां से, दीनू डाकिया को एक मुठिया का लड्डू खिला देना, हमारी लाड़ो की सारी चिट्ठी वक़्त पे पहुंचा देगा।”
कहकर धीमे से मुस्कराया, लाड़ो को भी एक जबरदस्ती वाली मुस्कान को बेलना पड़ा चेहरे पे।
“मैं कल मालिक से तनख्वाह वक़्त पे देने की गुजारिश करूँगा, हाथ में कौड़ी होगी तो दम आएगा”, कहकर थाली में छोटी लुटिया से हाथ धोये और लुंगी से मुँह पोंछकर उठ गया। लाड़ो चौखट पकड़ी सब सुनती रही।
तीन महीने ऐसे फिसले कि लुढकर सीधा शादी का दिन आ गया।
पूरा आंगन लिपा पुता साफ करके मालती रसोई में लग गई, दूसरे गांव से चचेरी बहनें आ गयीं तो थोड़ी मदद हो गयी। पकवान बना बना डलिया में चिनती रही। गांव में सारे चबूतरों पे बिमलू के घर की सजावट ही बातों का हिस्सा थी।
एक बोला, “अब बड़े घर से जुड़े हैं तो जेब तो खींचनी ही पड़ेगी”
दूजा बोला, “ये फूलों की सजावट तो नई चली है गांव में”
एक दबे स्वर में खुसफुसाया, “सुना है नई साईकल ली है बिमलू ने देने के लिए”।
“हाँ भाई, और भी जाने क्या क्या होगा” भीड़ बुदबुदाई।
चौपाल से गली तक हर पेड़ पे गेंदे की माला थी, गली में घर की दीवारों पर गेसू से शुभ चित्रकारी बनी थी। पेडों की शाख़ें जो बाहों सी लटकती थी नीचे, आज उनमें कंगन भी थे।
छोटे दरवाज़े से सर झुकाके जब अंदर दाख़िल होते, तो एक कोने में औरतें ढ़ोलक पीटती और सर ढके खिलखिलाती रहतीं।
पास में ही कच्चे का बाड़ा बनाकर दावत का इंतजाम था। गुलाब, चमेली, चंपा सारे फूल उस दिन बिमलू के घर में शामिल थे।
धूम धड़ाके से सबका स्वागत हुआ, पूरे गांव ने पहली बार शादी में लेमचूस और कुल्फी देखी। जो आता बिमलू को गले लगाता, उसके कान में एक वाह रखता और पत्तल पकड़ लेता।
सुबह के होन में विदाई हुई , महन्दी और फूल कदमों से पीस पीस कर महक रहे थे, बिमलू का हाथ पकड़े लाड़ो सुबकती रही।
रिवाज के हिसाब से लाड़ो को तांगे में पीछे बिठाया गया लाल चुनरी उढ़ाये। मालती संग पीछे खड़ा बिमलू एक हाथ हवा में उठाकर ज़ोर से बोला, “लाड़ो, चिट्ठी लिखना”। लाड़ो भरी आंखों से अब पराये लोगों को देख रही थी। पराये माँ-बाप, पराया घर-आंगन और परायी गलियां। लाड़ो के घर का फाँटक और उसपे लगा नज़रबट्टू जो उसने अपने हाथ से बनाया था धीमे धीमे उसकी आँखों में घुल गया। लाड़ो के भीतर एक रुदन बिंध गयी, वो ख़त तो लिखेगी, पर इस पते पे लौटेगी कब।
अंगौछे से आँसू पोंछता हुआ बिमलू अंदर आया, लकड़ी की पुरानी दराज़ से लाल कपड़े में लिपटे घर के कागज़ एक मूंछो वाले आदमी को थमाकर, रुंधे गले से बोला, “सेठ जी से कहना, एन वक़्त पर उनका पैसा बहुत काम आया, इस घर के...मेरा मतलब है मकान के अच्छे पैसे दिए उन्होंने... और हम.....हम शाम तक घर खाली कर देंगे,उसके बाद वो जैसे चाहे सो करें, हाँ बस एक विनती है, अगर हमारा कोई ख़त या चिट्ठी आये तो हम तक भिजवा दें।”
