जाने वो कैसे लोग थे
जाने वो कैसे लोग थे
अरे भैया, थोड़ा आवाज़ तेज़ कीजिए न, हेमंत दा का गाना आ रहा है, रितु ने टैक्सी की पिछली सीट से उचक कर आवाज़ लगायी।
FM पे गाना बजा, जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला, हमने तो बस कलियाँ माँगी,,,,,,,,,,,,,,,,,। और रितु धुन के साथ गाने लगी । रितु को मश्ग़ूल होकर गाता देख टैक्सी ड्राइवर रीयर व्यू मिरर में झाँक कर बोला, "आप तो बहुत ही बढ़िया गाती हैं मैडम।" रितु मुस्कुरायी और गुनगुनाती रही। उसकी गर्दन धुन के हिसाब से हिचकोले ले रही थी।
थोड़ा झिझकते हुए ड्राइवर ने ज़बान खोली, "तबियत तो ठीक ही मालूम होती है मैडम आपकी, फिर ये अपोलो कैसे ?"
रितु चूइंगगम चबाते हुए बोली, अरे भैया डॉक्टरों के चोचले हैं सब, छोटी सी चोट लगी थी, लम्बा चौड़ा चिट्ठा थमा दिया दुनिया भर के टेस्ट का।
ड्राइवर ने सब ध्यान से सुनते हुए अचक से "ओह अच्छा अच्छा" सरकाया।
इतने में रितु का फ़ोन टिमटिमाने लगा। रितु की ख़ुशी बता रही थी कि करन उठ चुका है और सबसे पहले उसे ही याद कर रहा है । रितु ने मुस्कुराते हुए सीट पे आलती पालती मार ली और उसकी उँगलियाँ फ़ोन की स्क्रीन पे नाचने लगीं । रितु से रहा न गया और उसने फ़टाक से करन को फ़ोन मिला दिया। प्यार और कपड़ा अगर नया नया हो तो एक सलवट भी बर्दाश्त नहीं होती।
"हाय डार्लिंग, गुड मोर्निंग, उठ गये नवाब साहब ?" रितु ने छेड़ने के अन्दाज़ में पूछा।
करन ने प्यार से जवाब दिया, "अभी नहीं, तुम चाहो तो PG आकर उठा दो।"
रितु और करन कॉलेज के फ़र्स्ट ईयर में थे, हालाँकि करन दूसरे कोर्स का होकर भी रितु की क्लास के इर्द गिर्द मँडराता रहता था। रितु करन के साथ फ़ोन पे बातों में खोयी हुई थी तभी ड्राइवर ने टोका, "मैडम कहाँ रोकूँ ?"
करन से अचानक सवाल किया, "इतनी सुबह सुबह कहाँ ?"
रितु ने पहले करन को जवाब दिया, "ऊफ़्फ़ो बाबा कुछ काम था, आधे घंटे में आती हूँ कॉलेज।"
"हाँ भैया, यहीं किनारे से लगा दीजिए।"
रितु ने अपना कपड़े का डिज़ाइनर बैग समेटा, कान और कंधे से फ़ोन सम्भालते हुए टैक्सी ड्राइवर को पैसे दिए।
"थोड़ी देर रुक नहीं सकते क्या ? आ तो रहीं हूँ यार” रितु आँखें मिचकाते हुए करन से बोली ।
करन अचानक भारी आवाज़ में बोला, "सुनो आज वो पुराने मंदिर के पीछे मिलो न, कुछ बात करनी है।"
रितु भोंह उठाकर पलटकर बोली, "क्या ?"
"अरे मिलकर बतायूँगा।"
"क्या बताओगे, पहले अभी बताओ", कहते हुए रितु हँसने लगी।
रितु की हँसी सुन करन गहरी साँस भरते हुए बोला, "यही कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।"
रितु असमां पे पाँव पटकते हुए बोली, "चलो बाय आती हूँ आधे घंटे में।"
एक घंटा एक बरस जैसा बीता करन के लिए। रितु को चुपचाप छुपते छुपाते आता देख करन दौड़कर उसकी तरफ़ बढ़ा और उसे गोदी में उठा लिया। इससे पहले रितु करन को कभी इस तरह अकेले में नहीं मिली थी। बचपन में ही रितु के माँ बाप गुज़र गये थे, शायद वक़्त ने ही उसके अंदर इतनी हिम्मत भर दी थी इतने सालों में। उसकी जन्नत तो उसे कैंटीन में करन के साथ समोसा खाके ही मिल जाती थी।
करन ने पहले से थोड़ी ज़्यादा हिम्मत दिखायी और रितु को अपने क़रीब खींच लिया। रितु हमेशा से जानती थी की उसे कब और कहाँ रुकना है। करन और रितु एक दूसरे को बाहों में भरकर इस दुनिया से बहुत दूर निकल गये थे । दोनों एक दूसरे के सीने से लगे इतने बेख़बर थे कि भेड़ियों की तरह घात लगाए तीन लोगों पे नज़र ही नहीं गयी।
तीनों दबे पाँव दाख़िल हुए और टूटी दीवार के पीछे छुप गए। करन बेख़बर रितु का दुप्पट्टा हटाने लगा। रितु का चेहरा सपाट था, लकीरें बड़ी ख़ामोश थीं। उसका शरीर करन की बाज़ुओं में चाँद की तरह टंगा था और ध्यान बादलों के ऊपर हो कहीं मानो।
तभी अचानक तीनों आ धमके, एक जो गंजा था उसके हाथ में चाक़ू था, वहीं दूसरा चश्मा लगाए लोहे की सरिया थामा था। तीसरे के हाथ ख़ाली थे, शायद पहरेदार रहा होगा। करन अचानक घबरा कर ज़मीन पे गिर गया, और रितु का गला सूख गया। उसकी ज़बान लड़खड़ाने लगी और बस "प्लीज़ प्लीज़" ही निकला। करन ने उठने की कोशिश की तो गंजे ने एक ज़ोर से जड़ दिया और रितु के गले पे चाक़ू बिठा दिया। गंजे के चेहरे पे हैवानियत की लकीर ख़िंच गयी। वो चाक़ू दोनों हाथों के बीच पकड़, हाथ जोड़ के बोला, "देखो हमें कोई दिक़्क़त नहीं तुम दोनों कुछ भी करो, हम किसी को नहीं बताएँगे, पर बदले में हमारा मन भी तो लगना चाहिए", इतना कहकर ठहाका लगाया उसने।
चश्मा वाला बोला, "तुम्हारे पास दो रास्ते हैं, या तो हमारा मन बहलाओ या हमें ख़ुद बहलाने दो।" उसने बात पूरी की और तीसरे ने जेब से मोबाइल निकाल कर रिकॉर्डिंग शुरू कर दी।
रितु ने करन की तरफ़ ख़ौफ़ज़दा होकर देखा। करन के चेहरे से बेबसी टपक रही थी और गिर रहा था माथे से थोड़ा सा ख़ून। करन ने अधकुचली हालत में गुहार लगाई, "हमें जाने दो, प्लीज़ बदले में जो चाहिए मैं तुम्हें दे दूँगा।"
तीनों ने एक दूसरे को देखा और खिल्ली उड़ाकर बोले, "अबे तुझसे ही तो ले रहे हैं।"
माहौल में बेइंतेहाँ ख़ौफ़ पसर चुका था। पहला रास्ता था कि पूरी दुनिया दोनों को ज़िंदगी भर मोबाइल स्क्रीन पे देखे , और दूसरा रितु को उन तीनों को सौंप दे और सब कुछ सिर्फ़ अपनी आँखों के सामने होता हुआ देखे !
अब रितु और करन को कुएँ और खाई में से किसी एक को चुनना था। रितु बेबस होके रोने लगी और चिल्लाते हुए बोली, "नहीं प्लीज़ हमें छोड़ दो, मेरी बात सुनो ,,,, मेरी बात।"
लड़की को चिल्लाता देख तीनों बेचैन हो उठे और झपटकर ज़मीन पे गिरा उसका दुपट्टा उसके मुँह में फँसा दिया और तीनों के अंदर का हैवान सामने आ गया । अब सिर्फ़ दर्द रिसता रहा और बड़ी बड़ी आँखों से गिरे बेहिसाब काले आँसू।
वाक़ये के दो दिन बाद तक भी रितु की पलक न झपकीं और वो बिलकुल ख़ामोश हो गयी थी, बस सोचे जा रही थी , लेकिन अब आँसू न थे । वो करन से बहुत कुछ कहना चाहती थी पर बस अपनी गोदी में अपना बैग सीने से लगाए चुपचाप बैठी रही एक कुर्सी पर। करन के कमरे में उसका पसंदीदा कोना था वो।
करन ने दूर से ही खड़े होकर कहा, "तुम हॉस्टल जाना चाहो तो चली जाओ, मैं नहाने जा रहा हूँ।" रितु ने कोई जवाब न दिया, करन नहाने चला गया।
रितु के ख़यालों का भँवर फ़ोन की आवाज़ से टूटा। sms की टोन थी। उसने आसपास देखा, करन का फ़ोन था, उसने उठाकर उलटा कर अपनी गोदी में रख लिया। मेसिज की टोन लगातार बढ़ने लगी, उसने फ़ोन पलट कर स्क्रीन की तरफ़ देखा तो जैसे बहिस्स जम गयी। उसकी आँखें फटी रह गयीं, मुँह खुला रह गया, साँस सीने में ही थक गयी ; कोई बहुत ज़हरीला डंक लगा हो जैसे।
स्क्रीन पे उसी चश्मे वाले लड़के के मेसजेज़ थे, नम्बर भी विशाल के नाम से मौजूद था। फ़ोन खोलकर देखा तो उसकी ब्लैक होल जैसी ज़िंदगी में भूकम्प आ गया ।
"साले, ग़लत बात की तूने॰
साढ़े बारह बजे आने की बात हुई थी॰
तू दोनों को लेकेर बारह बजे आ गया॰
मैं कुछ कर भी नहीं पाया ॰ प्लान ये नहीं था॰"
"अबे गंजा माना ही नहीं, जल्दी मचा दी उसने ॰
कोई न तू तो कभी भी कर सकता है "
"लेकिन सुन ले, अब पैसे डबल लगेंगे
मुझे कुछ नहीं मिला, पिछले छह महीनों से पटाने की सारी मेहनत बेकार हो गयी।"
"डबल पैसे ? अबे पागल है क्या?
गंजे से बात करनी पड़ेगी
अच्छा सुन, वो कम्प्लेंट तो नहीं करेगी न पुलिस में ?
अबे ओ
कहाँ मर गया ?
हेलो? are you there ?"
रितु के हाथ से फ़ोन छूटकर गिर गया। उसकी साँस उखड़ने लगी, माथे पे पसीना रिसने लगा। उसका अब इस दुनिया में कौन था जिसके कंधे पे टिककर वो जी भर रो ले । वो अब करन से क्या कहे ? कुछ कहे भी या नहीं ? किसे बताए ? उसका चहरा सफ़ेद पड़ने लगा। आँसूँ तो जैसे आग में जल गये हों।
अचानक बाथरूम का दरवाज़ा खुला और करन बाहर आ गया। रितु को बुत बना देख उसके क़रीब गया, पूछा "रितु ?"
रितु ने उसे गले लगा लिया, उसकी दुनिया का जहाज़ डूब चुका था। उसके सामने से मेसजेज़ के वो लफ़्ज़ हट नहीं रहे थे: "प्लान ये नहीं था, मैं कुछ कर नहीं पाया, सारी मेहनत बेकार हो गयी "
रितु को लगा जैसे उसके बदन को चीरके दिल और रूह को तराज़ू के एक पल्ले पे रखा हो और दूसरे पल्ले पे उसकी चमड़ी । और तराज़ू एक तरफ़ा चमड़ी की तरफ़ झुका है।
रितु की बाहों की जकड़ में इतना ज़ोर कभी नहीं था। करन को यक़ीन नहीं हो रहा था इन हालातों पर। थोड़ी ही देर में वो हुआ जिसका अरमान उसे छह महीने से था। एक बोल नहीं फूटा रितु के मुँह से, सन्नाटा था हर दीवार पे बिखरा। उठीं तो बस दो कराह : एक करन के इरादों की जीत की और दूजी रितु के दर्द, धोख़े और रूह छिल जाने की।
वो चुपचाप उठी, दांती भींच कर कपड़े पहने और फ़ौरन वहाँ से चली गयी। बिस्तर पे पड़ा करन करवट लेकर उठा और बिस्तर पे पड़े काग़ज़ों को ग़ौर से देखा।
रितु का सारा दर्द, जिसे वह कब से करन को बताना चाहती थी मगर अब सिर्फ़ बदला का रूप लिए चार काले अक्षरों में उसकी रिपोर्ट्स में छपा था : एच आई वी पॉज़िटिव !

