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Uma Vaishnav

Drama Tragedy

3.6  

Uma Vaishnav

Drama Tragedy

फटी कंबल

फटी कंबल

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सर्दीया शुरू हो गई थी। संध्या कंबल और स्वेटर बाहर निकाल रही थी। घर में दो कंबल ही थे। उस में से एक फटा हुआ था। पति के गुजर जाने के बाद संध्या दुपट्टो की सिलाई का काम कर के घर का खर्च चलाती थी। उसके पास इतने पैसे नहीं होते थे। के नये कंबल खरीद सके.

पर इस बार उसने कुछ पैसे बचा रखे थे। नई साड़ी खरीद ने के लिए पर अब संध्या का मन बदल गया था। उसने सोचा क्यू ना साड़ी के बजाय कंबल ले आऊ।

शहर में बहुत भारी तूफान आने की चेतावनी भी थी। ऐसे में घर में उस के और बच्चे के लिए एक ही कंबल बचा था। संध्या ने जल्दी से पर्स उठाया। बिना कुछ सोचे बाज़ार की ओर निकल पड़ी। जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती हुई, बाज़ार पहुँच गई. कुछ दुकानों पर मोल भाव करने के बाद एक फेरी वाले कुछ दाम कम करवाके कंबल खरीद लीया।

 कंबल खरीद के वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती हुई घर की ओर लौटने लगी। बच्चो के स्कूल से छुटने का समय भी हो गया था और तूफान के आने में कुछ ही वक्त बाकी था। ऐसी चेतावनी बार-बार शहर में घूमने वाले लॉउड स्पीकरो से दी जा रही धी। जिससे संध्या थोडी हडबराहट में भी थी।

अभी संध्या आधे रास्ते तक ही पहूँची थी के सड़क के किनारे एक औरत को बहुत बूरे हाल में देखा उस औरत की साड़ी फटी हुई थी और हाथ में एक छोटा बच्चा भी था उसके भी कपड़े फटे थे।

वह औरत एक गाडीवाली औरत के सामने हाथ फैलाकर अपने बच्चे को तूफान से बचाने के लिए कंबल के लिए भिख मॉग रही थी। पर उस औरत पर कुछ असर नहीं हो रहा था। वह उस औरत को पीछे धकेल कर अपनी कार में बेठते हुए कहती हैं-, पता नहीं कहॉ-कहॉ से आ जाते हैं खुद कमाने की तो ताकत नहीं बस भिख मागते रहेगे। पता नहीं खुद क्यू नहीं कमाते? उस औरत की ऐसी बात सुन कर उस गरीब औरत ने अपने आसू पूछते हुए कहा-जो दिन भर काम कर के कमाते हैं उन पैसो से सिर्फ़ पेट की भूख मिटा पाते है तन ढकने के लिए तो पैसे बचते ही नहीं क्या करे मैमसाब ? आप जैसे बडे लोग हम गरीब को अपनी मेहनत का पूरा पैसा कहाँ देते हो तभी तो आप लोगों के आगे हाथ फैलाते हैं।

उस औरत पर उस गरीब औरत की बातो का कोई असर नहीं पडा. वो औरत अपनी कार में बैट कर चली जाती है। और दूसरी ओर वह गरीब औरत अपने बच्चे को सीने से लगाकर वही सड़क के किनारे बैठ जाती हैं और आते जाते लोगों के आगे हाथ फैलाती हैं।

संध्या सब देख रही थी। संध्या से उस औरत की हालत नहीं देखी गई. वह उस औरत के पास जा कर बोली-लो बहन ये कंबल लेलो और अपने बच्चे का खयाल रखना। शहर में बहुत भयकर तूफान आने वाला हैं तूम अपना और अपने बच्चे का ख्याल रखना।

ये कह कर संध्या वहा से निकल जाती हैं संध्या ने बहुत मुसकील से कंबल के लिए पैसे जमा कीये थे। पर उसे लगा की उस कंबल

की ज़रूरत उससे ज़्यादा उस औरत को हैं। क्यू की उस के पास रहने को घर तो है कमसे कम..., उसने इस बार की सर्दी उस फटे कंबल में ही गुजार ने का तय की।


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