फर्ज का फर्क !
फर्ज का फर्क !
"मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं किसी की बेटी भी हूं और मुझे आज एक बेटी होने का फर्ज पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता..... समझे मेरी बात इसलिए मुझे रोकने और धमकी देने की कोशिश तो तुम बिल्कुल भी मत करना अब हटो मेरे रास्ते से" रिद्धिमा ने अपने पति अनिकेत से कहा और घर से निकल कर सीधा एयरपोर्ट पहुंच गयी।
इधर अनिकेत रिद्धिमा को जाता हुआ देख चुपचाप खड़ा ही रह गया क्योंकि शादी के बाद इन पांच सालों में उसने पहली बार रिद्धिमा का ये विकराल रूप देखा था।
दअरसल रिद्धिमा अपने माता पिता को लगातार फोन लगातार किए जा रही थी लेकिन उसका फोन नहीं उठ रहा था रिद्धिमा की माँ का फोन स्विच ऑफ और पिता का फोन लगातार व्यस्त आने से रिद्धिमा का मन किसी अनहोनी की आशंका में डर रहा था। आज ऑफिस के भी किसी काम मे उसका मन नहीं लग रहा था।
फिर उसने थक कर ऑफिस के लंच ब्रेक में उसने अपनी मम्मी की पड़ोसी आंटी को फोन लगाया। लेकिन उनका भी फोन नहीं उठ रहा था। लेकिन फिर थोड़ी देर बाद ही उसके फोन की घँटी बजी उठाकर देखा तो फोन आंटी का था।
उसने तुरंत फोन वो उठाया और कहा "हैलो! आंटी नमस्ते!"
"कैसी है आप और घर मे सब कैसे है?"
आंटी ने कहा सब ठीक है बेटा तू कैसी है?? और घर में सब कैसे है?? अभी आयी तो देखा तेरा फोन आया हुआ था।
रिद्धिमा ने घबराहट में कहा," हाँ! मैंने फोन तो किया था यहाँ तो सब ठीक है। ओ आंटी! आज मम्मी पापा फोन नहीं उठा रहे है क्या हुआ सब ठीक तो है ना.....आप को पता है कुछ वो लोग कही गए तो नहीं है ना आंटी प्लीज् क्या आप एक बार मेरी बात करा सकती है।"
आंटी ने दबी आवाज में कहा- हाँ सब ठीक है कोई बात नहीं....तभी रिद्धिमा को आंटी के पीछे से उनकी बहू की आवाज आई "माँजी आप सच सच क्यों नहीं बता देती।"
रिद्धिमा ने आंटी की बहू की आवाज सुनकर कहा "आंटी सच बताइए भाभी कौन सा सच बताने के लिए कह रही है।"
तब तक फोन आंटी की बहु ने लेकर कहा "-रिद्धिमा माफी चाहूँगी सब ने तुम्हें सच बताने के लिए मना किया था लेकिन मैं अब और झूठ बोलकर अपने परिवार को किसी मुश्किल में नहीं डाल सकती। दरअसल कल तुम्हारे घर में रात को कुछ चोर घुस आए थे जिन्होंने तुम्हारी माँ को सिर में डंडे से वार किया और उनको चोट आ गयी है। अंकल जी पुलिस स्टेशन गए थे चोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने। कल रात से सब परेशान है। आज भी अंकल अस्पताल और पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा रहे है।
सबने आप को बताने से मना किया लेकिन मुझ से रहा नहीं गया आंटीजी की कंडीशन अभी ठीक है लेकिन अंकल जी अकेले परेशान हो रहे माना कि हम सब यहाँ है लेकिन कब तक? उन लोगों को देखकर कभी कभी लगता है काश उनके कोई बेटा होता तो वो आज यू बेसहारों की तरह ना रह रहे होते। बात कड़वी है पर देखो रिद्धिमा आखिर तुम उन लोगों की इकलौती सन्तान हो। तो अब तुम्हारा फर्ज बनता है कि तुम उन लोगों की देख भाल करो। अब बुढ़ापे में उन्हें सेवा और सुरक्षा की जरूरत है।
रिद्धिमा की आंखों में आंसू भर गए उसने कहा- "क्या भाभी कैसी बातें कर रही है? वो मेरी माँ पापा है उनकी बेटी अभी जिंदा है वो कभी बेसहारा नहीं हो सकते। मैं ही उनकी बेटी भी हूं और बेटा भी मैं आज ही आ रही हूँ शाम तक रिद्धिमा के कानों में भाभी की बातें शूल की भांति चुभ गयी। उसकी आंखों में ना जाने क्यों आज अनहोनी की आशंका में आंसू भी बहे जा रहे थे?"
रिद्धिमा ऑफिस से अर्जेट छुट्टी लेकर घर के लिए निकल गयी। रास्ते मे उसके पापा का फोन आया। वो रिद्धिमा को बात करके ऐसे जता रहे थे जैसे सब कुछ सामान्य है। लेकिन तभी रिद्धिमा ने रुंधी हुई आवाज में कहा "क्या पापा? अपनी बेटी को इतना पराया कर दिया आप ने की मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा अगर कल रात आप दोनो को कुछ हो जाता तो मैं खुद को जीवन भर कभी नहीं माफ कर पाती। अच्छा छोड़िये इन बातों को बताइए माँ कैसी है अब आप चिंता मत कीजिए मैं शाम तक पहुंच जाऊंगी "
पापा-" अभी सब कुछ ठीक है बेटा तू ये सब जानकर खामखा परेशान होती। इसलिए तुझे नहीं बताया।"
ठीक है पापा मिलकर बात करती हूं।
रिद्धिमा अपने माता पिता की इकलौती संतान थी जिसे बड़ी मिन्नतों के बाद पाया था उसके माँ पापा ने। रिद्धिमा एक आत्मनिर्भर महिला थी लेकिन कहते है ना कि ससुराल में चाहे बहू नौकरी करती हो चाहे ना करती हो। ससुराल वालों को बहू का मायके वालों से लगाव रखना बिल्कुल नहीं भाता। वैसे तो सब कुछ ठीक था रिद्धिमा की ससुराल में। लेकिन जब भी बात मायके जाने की होती तो मायके के नाम से ही उसकी सास गीताजी बखेड़ा खड़ा कर देती।
क्योंकि गीताजी को रिद्धिमा का मायके जाना या ज्यादा देर फोन पर बातें करना बिल्कुल भी पसन्द नहीं था ये सिर्फ सास की ही समस्या नहीं थी रिद्धिमा के पति का भी वही हालत था माँ बेटे बिलकुल एक सी ही भाषा बोलते। परिवार में सास ससुर और रिद्धिमा अपने पति और दोनों बेटों के साथ रहती थी। गीताजी बात बात में रिद्धिमा को ताना देते हुए कहती देख बेटा हमने तो गलती कर दी। एकलौती बेटी को अपनी बहू बनाकर लेकिन तू भविष्य में ऐसा बिल्कुल भी मत करना। मैं तो सबको यही कहती समझाती हूँ। ऐसी बहुएं सिर्फ माता पिता की ही सगी हो पाती है क्योंकि उनका सारा ध्यान अपने मायके पर जो होता है। एकलौती बहु होने के कारण ये जुल्म कुछ ज्यादा ही उस पर होते।
अपने पापा से बातकर के रिद्धिमा ने फोन रखा और घर आयी तो देखा कि अनिकेत भी घर पर ही है। अनिकेत को घर पर देखकर रिद्धिमा ने कहा "अच्छा हुआ अनिकेत तुम ऑफिस से जल्दी आ गए। माँजी मैं आज अपने मायके जा रही हूँ और सोच रही हूँ माँ पापा को साथ लेकर आऊंगी इस बार"
गीताजी ने कहा-"ये क्या नया नाटक है तुम्हारे माता पिता का बहु कोई जरूरत नहीं कही जाने की समझी ....वो यहाँ हमारे साथ मेरे घर में नहीं रह सकते।"
"बहु! बुरा मत मानना लेकिन तुम्हारी माँ के पिछले जन्म के कर्म ही अच्छे नहीं रहे तभी तो वो एक बेटे को भी जन्म नहीं दे पायी जो बुढ़ापे में उनका सहारा बन सके। वैसे भी तुम्हारी अब शादी हो गयी है तो तुम्हारा पहला फर्ज ससुराल की तरफ होना चाहिए मायके की तरफ नहीं अब तुम मायका भूल जाओ समझी"
तभी पीछे से रिद्धिमा के पति ने अपनी माँ का साथ देते हुए कहा "माँ बिल्कुल ठीक कह रही हैं रिद्धिमा .... जरूरत ही क्या है तुम्हे उन्हें यहाँ लाने की।"
"तुम्हारे माँ पापा इतने भी बूढ़े नहीं हुए जो अपना ख्याल खुद ना रख सके पागल मत मनो क्यों तुम उन्हें यहाँ रखकर अपने और हमारे सिर पर मुसीबत खड़ी करनी चाहती हो? अगर फिर भी तुम्हे लगता है तो उनको बोलो की एकाध नौकर रख ले। वैसे भी उन्हें पैसों की कोई कमी तो है नहीं"
पति और सास की बाते सुनकर रिद्धिमा के सब्र का बांध टूट गया क्योंकि उसको उम्मीद थी कि अनिकेत तो उसकी तरफ से बोलेगा क्योंकि उसने तो अनिकेत से शादी ही इसी शर्त पर की थी कि वो कभी उसके माता पिता के प्रति उसके फर्ज को निभाने से नहीं रोकेगा लेकिन हमेशा की तरह वही हुआ जो होता था अनिकेत ने इस बार भी अपनी मां का ही साथ दिया। लेकिन आज रिद्धिमा को अपने माता पिता का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ।
गुस्से में रिद्धिमा ने बोला "मिस्टर अनिकेत मैं अपने माता पिता के स्वाभिमान से समझौता नही करूँगी समझे।" और जो तुम मुझसे कह रहे हो फिर तो ये बात तुम्हारे माँ बाबूजी के साथ भी लागू होती है। फिर तुम आज ही अपने माँ बाबूजी को गांव छोड़कर आ जाओ। क्योंकि इतने बूढ़े तो ये भी नहीं हुए की वो अपना ख्याल खुद ना रख सके और मान लो ना रख पाए तो कह दो नौकर रख लेंगे हमारे सिर पर हमने ये मुसीबत क्यों रखी है,वैसे भी तुम तो अपने ही मातापिता को अपने साथ नही रखना चाहते थे लेकिन बाबूजी की तबियत की वजह से मेरे मनाने पर लेकर आए।"
और माँजी मायका भूल जाऊं क्योंकि मेरी शादी आपके बेटे से हो गयी है तो मैं एक बात आप सब को याद दिला दूँ की मेरे माता पिता से ही मेरा वजूद जुड़ा है जिसको भूलना मेरे लिए तो नामुमकिन है जिस तरह आप लोगों ने अनिकेत को पढ़ा लिखा कर आत्मनिर्भर बनाया है उसकी तरह मेरे माता पिता ने भी मुझे पढ़ाया लिखाया इस काबिल बनाया की मैं खुद के बलबूते पर उनका ख्याल रख सकती हूं। हाँ लेकिन एक बार खुद के गिरेबान में झाँकर देखिए कि क्या अनिकेत आपकी सेवा कर पायेगा।
"जबान सम्भाल कर बात करो रिद्धिमा तुम मेरे सामने मेरे माता पिता का अपमान नहीं कर सकती वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।" अनिकेत ने गुस्से में चीखते हुए कहा
चिल्लाओ मत मिस्टर अनिकेत चिल्लाना मुझे भी आता है खुद के मां बाप पर बात आयी तो गुस्सा आ गया। क्या बात है? और मेरे माता पिता का कोई सम्मान नहीं क्यों क्या जान सकती हूं मैं जिस तरह तुम्हें अपने माता पिता के लिए बुरा लगता है उसी तरह मुझे भी बुरा लगता है।
और दूसरी बात ये अभी जो ज्ञान तुमने मुझे दिया ना फिर कभी किसी को मत देना वरना लोग तुम्हारे साथ साथ तुम्हारी परवरिश पर भी सवाल खड़े कर देंगे। तुम शायद अपने माता पिता के साथ ऐसा कर सकते हो लेकिन मैं अपने माता पिता के साथ कभी ऐसा नहीं कर सकती।
रिद्धिमा ने अपने कमरे में जाकर अपना बैग पैककर और अपने दोनों बेटों को साथ लेकर निकलने लगी तो सास ने कहा रिद्धिमा अगर आज तुमने मेरे घर से बाहर बिना हमारी इजाजत के कदम निकाला तो फिर इस घर से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं होगा फिर पड़ी रहना जिंदगी भर अपने मायके अपने माता पिता की सेवा करती हुई समझी और दूसरी बात तुम्हे जाना है तो तुम जाओ मेरे पोते तुम्हारे साथ कही नहीं जाएंगे।
रिद्धिमा ने घर से निकलते हुए गुस्से में कहा माँजी पहली बात की ये घर आपका नहीं मेरा है क्योंकि ये घर मैंने अपनी मेहनत की कमाई और अपने पिता के सहयोग से लिया है। विश्वास ना हो तो अपने बेटे से पूछ लीजिए। दूसरी बात मेरे बेटे हमेशा मेरे साथ रहेंगे। इन्हें मैं आप लोगों के साथ छोड़कर आप लोगों जैसा मतलबी नहीं बनाना चाहती।
इसलिए इस घर से जाने और घर में आने के लिए मुझे किसी के इजाजत की जरूरत नहीं और ना ही मुझे इस घर में आने से कोई रोक पायेगा और हाँ एक बात औऱ आप मेरी मां के पिछले जन्मों के कर्मों की चिंता ना करें क्योंकि मेरी माँ को बेटे की जरूरत नहीं। उन्होंने अपनी बेटी को इस काबिल बनाया है कि मैं उनका ख्याल रख सकूँ। उनकी बेटी ही काफी है उनके लिए।
वैसे अच्छा होता अगर आप एक नजर अपने कर्मों पर भी डाल लेती तो....
उसकी नजर अनिकेत की निगाहों पर पड़ी जो उसको गुस्से से घूर रहे थे
रिद्धिमा ने अपने आंसू पोछते हुए अनिकेत से कहा "अनिकेत भूलो मत भले ही तुम दो बेटों के बाप हो.....तुम्हारे पास बेटियां और बहने दोनों ही नहीं इसलिए शायद तुम्हे मेरे और मेरे माता पिता के दर्द का एहसास भी नहीं लेकिन वक्त सबका आता है समझे। कही ऐसा ना हो जहाँ आज मेरे माँ पापा खड़े है कल तुम बेटे होने के बावजूद वही खड़े रहो" कहकर रिद्धिमा घर से निकल कर अपने मायके पहुंच गयी। रिद्धिमा और बच्चों को देखकर उसके मम्मी पापा बहुत खुश हुए।
अगले दिन अनिकेत भी सुबह सुबह वहाँ पहुंच गया। अनिकेत को देखकर रिद्धिमा को आश्चर्य हुआ कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो अनिकेत यहाँ आ गए।
अगले दिन रिद्धिमा अपने माँ पापा को अपने साथ ले जाने की जिद करने लगी। तो रिद्धिमा के पापा ने कहा "अनिकेत बेटा तुम इसको समझाओ की ये अपनी जिद छोड़ दे हम दोनो यहाँ ठीक है।"
तब अनिकेत ने कहा "समझना रिद्धिमा को नहीं बाबूजी आपको है। अगर उस रात भगवान ना करे कोई अनहोनी हो जाती तो। इसलिए जिद छोड़िये और हमारे साथ चलिए।"
रिद्धिमा और अनिकेत माँ बाबूजी को मनाकर अपने साथ घर ले आए। लेकिन रिद्धिमा ने अपने माता पिता को अपने साथ घर ले जाने की बजाय वहीं उसी बिल्डिंग के दूसरे फ्लैट में लेकर गयी। तो अनिकेत ने रिद्धिमा को अकेले में बुलाकर कहा "रिद्धिमा ये सब क्या है? तुम माँ बाबूजी को घर क्यों नहीं ले चल रही?"
तब रिद्धिमा ने कहा "देखो अनिकेत मैं अपने माता पिता के स्वाभिमान से समझौता नही कर सकती। मैं उन लोगों के सामने कोई तमाशा नहीं करना चाहती। ना ही उस घर मैं उनका अपमान बर्दाश्त कर पाऊंगी। तुम्हारा और माँजी का स्वभाव तुम बहुत अच्छी तरह से जानते हो इसलिए एक ही बिल्डिंग में दो अलग अलग जगह रहना ही बेहतर होगा। जिससे मैं अपना काम और माँ पापा का ख्याल दोनों रख पाऊंगी। ये सब व्यवस्था मैंने पहले ही कर ली थी अपने सहेली से बात करके।"
इस तरह मां पापा भी खुलकर अपने हिसाब से रह पाएंगे। वरना उनको हमारे साथ रहने में संकोच होगा। और वो अपने मन की बात भी नहीं कह पाएंगे। खैर तुम अब घर जाओ।
अनिकेत ने सोचते हुए कहा "और तुम?? क्या तुम भी यही रहोगी? देखो! रिद्धिमा मुझसे गलती हो गयी मैं भूल गया था कि मैंने तुमसे शादी करने से पहले ये वादा किया था कि तुम्हे तुम्हारे कर्तव्यों को निभाने से कभी नहीं रोकूंगा। लेकिन मैं उसे पूरी तरह नहीं निभा पाया। लेकिन अब आगे से कभी ऐसा नहीं होगा।चलो घर चलो प्लीज"
तब रिद्धिमा ने कहा "अनिकेत तुम्हे अपना वादा याद आ गया ये अच्छी बात है। लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा था फिर से कह रही हूँ कि मैं सिर्फ तुम्हारी पत्नी ही नहीं अपने माता पिता की बेटी भी हूं। इसलिए आज अभी मैं इनके साथ ही रहूंगी। क्योंकि ये जगह और घर दोनो नए है। सबकुछ माँ पापा के हिसाब से सेट कर लेने के बाद मैं आती हूं।"
जाते जाते अनिकेत ने रिद्धिमा को गले लगाते हुए कहा "रिद्धिमा काश भगवान ने मुझे भी तुम्हारी तरह एक बेटी दी होती।"
प्रियपाठकगण उम्मीद करती हूं कि मेरी रचना आप सबको पसन्द आएगी।कहानी का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं है। किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि लोग जब बहू को ससुराल के प्रति फर्ज बताते है तो वो ये क्यों भूल जाते है। कि एक औरत पत्नी और बहू होने से पहले किसी की बेटी भी है। जिनके प्रति भी उसके कुछ कर्तव्य है।