पहली नजर

पहली नजर

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सुलोचना देहरादून से पढ़ रही थी, सर्दियों की छुट्टियों में मम्मी पापा के पास आई। वहां ब्राह्मण समिति की एक मीटिंग में जाना था। माँ ने ज़िद की "सुलोचना तू भी हमारे साथ चलना।"

सुलोचना ने कहा " माँ मैं वहां जाकर क्या करूंगी? माँ ने कहा "अरे सब से मिलना और क्या? तू बड़ी भी तो हो गई है तेरी शादी नहीं करनी है ? सुलोचना ने हँसते हुए कहा "तो तुम क्या मुझे दूल्हा पसंद करने के लिए ले जा रही हो ,अगर वहां कोई पसंद आ गया तो क्या करोगी ?  

माँ ने हँसते हुए हाथ दिखाया, "जा अब जल्दी से तैयार हो जा।"

मीटिंग में पहुंचते ही सुलोचना वीरेश से टकराई,वीरेश जो नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहा था। वह भी सर्दियों की छुट्टी में अपने माँ बाप के पास आया हुआ था। दोनों इतनी जोर से टकराए थे कि एक दूसरे को गुस्से में घूम रहे थे फिर भी शिषटतावंश सॉरी बोलना पड़ा।

दोनों अपने -अपने माँ बाप के पास जाकर बैठ गए। 

तभी थोड़ी देर में विदेश की माँ सुलोचना माँ से मिली और बच्चों के बारे में बातें होने लगी। 

सुलोचना की माँ ने, सुलोचना को वीरेश की माँ को नमस्ते करने को कहा, तभी वीरेश वहां आ गया। सुलोचना और वीरेश का परिचय दोनों की माताओं ने कराया, अब दोनों में तकरार वाली कोई बात नहीं दिख रही थी। लेकिन न जाने क्यों वीरेश सुलोचना को चुपके चुपके देख रहा था और सुलोचना भी छुप-छुप कर वीरेश की तरफ देख रही थी। 

मीटिंग खत्म होने के बाद खाना खाकर सब अपने-अपने घर चले गए, लेकिन सुलोचना अपने मन में न जाने कितने ख़्वाब बुलाई थी। 

छुट्टी खत्म होते ही सुलोचना देहरादून चली गई और पढ़ाई में में व्यस्त हो गई। सुलोचना वीरेश का चेहरा नहीं भूल चेहरा नहीं भूल पाई। उसे वीरेश का धीरे-धीरे मुस्कुराना याद आ आता था। 


हॉस्टल में 1 दिन पापा का फोन आने पर सुलोचना घबराई, पापा ने पूछा तुम्हारी शादी की बात चल रही है हमारी जान पहचान का ही एक लड़का है शायद तुम उसे ब्राह्मण समाज की मीटिंग में मिली होगीं। शर्मा अंकल का लड़का वीरेश, तुम्हें पसंद है क्या? सुलोचना के तो मानो पंख ही लग गए, जो बात वह अब तक समझ ना पाई कि उसके साथ क्या हो रहा है? मानो अब हकीक़त का रूप लेकर सामने आ गई हो। वह वीरेश को ही अपने सपनों का राजकुमार समझने लगी थी और आज सपना सच होने जा रहा था । उसने बिना कुछ कहे ही फोन का रिसीवर नीचे रख दिया और पापा समझ गए कि सुलोचना की हां है। सुलोचना अब खुद को वीरेश की दुल्हन के रूप में खुद को आईने में देखने लगी। दोनों के परिवार वालों ने सगाई तय कर दी। 

वीरेश ने एक दिन सुलोचना को फोन पर बताया कि कैसे उसे सुलोचना से पहली नजर में ही प्यार हो गया था, लेकिन सुलोचना अपने मन की बात वीरेश को बता नहीं पाई, कि उसे भी वीरेश से पहली नजर में ही प्यार हो गया था -सच्चा प्यार।                       


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