फिर सुबह होगी
फिर सुबह होगी
"स्नेहा कहां है तू तूफान मेल की तरह रश्मि घर के अंदर घुसते हुए चिल्लाई।"
स्नेहा अपने कमरे में ऑफिस के लिए निकलने को तैयार हो रही थी आते ही रश्मि ने उसे कसकर अपने गले से लगा लिया और आंखों में आंसू भर कर भरे गले से बोली-
"मेरी जान तेरी मेहनत रंग लाई देख तूने यूपीएससी टॉप किया है जरा देख तो मेरी दिलरुबा की फोटो से अखबार की भी किस्मत चमक उठी।"
स्नेहा बस मौन उसकी तरफ देखती रह गई
देख ना उसे लगभग झकझोरते हुए रश्मि ने अखबार उसकी आंखों के आगे कर दिया।
"अपनी तस्वीर देखकर स्नेहा की आंखों से आंसू बहने लगे कुछ खुशी के कुछ टीस के...."
ऐसे ही तो उसकी फोटो छपी थी अखबार में जब उसने 12वीं की परीक्षा में टॉप किया था। पर इस फोटो और उस फोटो में कितना अंतर था !!
वह अतीत की उन गलियों के चक्कर लगाने एक बार फिर पहुंच गई जहां खुशियां भी थी और जिंदगी भर का गम भी..
ला्वण्यमयी चेहरा, खूबसूरत आंखें, लंबे काले घने बाल, बोलते होंठ और उन पर सजी मुस्कान.. और होंठों के एक कोने में एक छोटा सा काला तिल मानो उसकी खूबसूरती को बचाने के लिए ईश्वर ने दिठौना लगाया हो।
कुदरत ने कोई कसर नहीं रखी थी उसे खूबसूरती देने में और सोने पर सुहागा ये कि वह पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहती थी साथ ही अनेक कार्यक्रमों में भाग लेती रहती थी ईश्वर ने दोनों हाथों से कृपा बरसाई थी उस पर..
घर की लाडली, रिश्तेदारों की चहेती थी वह। कॉलेज में और मोहल्ले में उसके नाम की धूम रहती थी। खूबसूरती और स्वाभिमान के दर्प से सजी वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी। कितने ही लड़के उसके आगे पीछे इस उम्मीद में घूमते कि एक बार वो नजर उठा कर उन्हें देख ले रश्मि अक्सर उसे छेड़ती हुए कहती -
"मुझे दया आती है इन लड़कों पर काश इनमें से कोई एक भी मेरी तरफ देख ले तो मैं अपनी जान भी दे दूं और एक तू है कि कोई फर्क नहीं पड़ता !!"
स्नेहा हंसकर रह जाती।
दोनों सहेलियां स्कूल में राम लक्ष्मण की जोड़ी के नाम से विख्यात थीं। सारा समय दोनों साथ रहतीं, साथ-साथ स्कूल जाती और पढ़ाई करती थी। दोनों ही पढ़ाई में होशियार थी बस कुछ नंबरों से आगे पीछे रह जाती थी पर इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था कि कौन प्रथम आता है और कौन द्वितीय।
इस बार उनके 12वीं के पेपर थी दोनों जी तोड़ मेहनत कर रही थी उनकी मेहनत रंग लाई और स्नेहा ने टॉप किया और और रश्मि कुछ नंबरों से पीछे रह गई।
दोनों सखी सच में बहुत खुश थीं।
" तेरे पापा कितने खुश होंगे "उसकी बलैंया लेते हुए मां ने कहा। मुस्कुराती मां अपने आंसू कहां छुपा पाईं और ना चाहते हुए भी वह उनकी सूनी आंखों में झिलमिला उठे।
स्नेहा उन्हें पकड़कर पापा की तस्वीर के आगे ले गई। सर झुका कर प्रणाम किया और बोली -
"देखो ना पापा मां फिर रोने लगी अब आप ही समझाइए इन्हें मैं तो थक गई मुझसे नहीं संभाला जाता।" अचानक उसकी आवाज भरभरा उठी- " पापा आप क्यों चले गए आप तो कहते थे मेरी बेटी का अखबार में फोटो छपेगा तो सारे शहर की दावत करूंगा.. आप कहां चले गए पापा..." कहते हुए फफक पड़ी।
मां ने अपने आंसू पोंछते हुए उसे सीने से लगा लिया और गाल थपथपाते हुए बोली -
"पापा की बहादुर बेटी भला रोती है कहीं....पापा को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा होगा.. पापा का सपना याद है ना तुझे.."
स्नेहा एकदम चहकते हुए बोली "मां बहुत अच्छी तरह याद है। पापा का सपना पूरा करना ही तो मेरे जीवन का ध्येय है देखना मैं एक दिन देश की जानी-मानी सर्जन बनकर दिखाऊंगी। पापा जहां भी है उन्हें निराश नहीं करूंगी। "
पापा की परी से यही उम्मीद है मां ने उसे गले से लगाते हुए कहा।
अब स्नेहा का एक ही उद्देश्य था मेडिकल एंट्रेंस क्लियर करना।
रश्मि को प्रशासनिक सेवा में जाना था तो उसने बी..ए. में एडमिशन ले लिया।
अब दोनों सहेलियां अपनी पढ़ाई में बिजी हो गई जब भी मौका मिलता दोनों मिलती और अपनी बातों में गुम हो जाती।
स्नेहा की मेहनत रंग लाई है और उसे एक जाना माना कॉलेज मिल गया।
मां ने राहत की सांस ली अपनी निश्चित आमदनी में उसके कॉलेज की पढ़ाई का खर्चा उठा पाएंगी अब स्नेहा एक नए सफर के लिए तैयार थी।
"कब तक अखबार कोई यूं ही घूरती रहेगी किन ख्यालों में खोई है" उसे झकझोरते हुए रश्मि बोली।
"अं... हां ...कुछ नहीं...." कहते हुए स्नेहा अपनी आंखों में भर आए आंसू पोंछने लगी।
"तेरे दिल की हालत समझ सकती हूं" कहते हुए रश्मि ने उसे गले लगा लिया
"अनुराग को खबर नहीं करनी क्या? वह दीवाना कब से इस खबर का इंतजार कर रहा है।" स्नेहा को छेड़ते हुए वह बोली।
" कुछ भी कहती है ...सोच तो लिया क्या बोल रही है... वह मेरा दोस्त है शुभचिंतक है कोई दीवाना नहीं ...। "
रश्मि उसके हाथ को अपने हाथों में लेकर बोली "मैंने अनुराग की आंखों में वह प्यार देखा है स्नेहा वह भले ही कुछ नहीं कहता पर जो दिखता है उसकी दोस्ती से कहीं ज्यादा है ...। जो या तो तुझे नजर नहीं आता या तू नजरंदाज करना चाहती है।"
"हां रश्मि नजरंदाज ही तो करना चाहती हूं उन सारी भावनाओं को जो मेरे दिल में उठती है... जो अनुराग की नजरें बयां करती हैं... हम बस अच्छे दोस्त हैं और यही रिश्ता मैं उसके साथ उम्र भर रखना चाहती हूं।"
"किसे धोखा दे रही है तू स्नेहा ...? "
"तू खुद से झूठ बोल सकती है पर तेरे दिल को समझने में मैं कभी भूल नहीं कर सकती मैं जानती हूं तू अनुराग को कितना चाहती है पर कहने से डरती है। "
"हां रश्मि मैं अपने दिल में उठे हर ख्याल को, हर भाव को मार देना चाहती हूं मैं अनुराग की जिंदगी कभी खराब नहीं कर सकती। उसकी दोस्ती ही मेरे लिए बहुत है मैं अपनी पूरी जिंदगी इसी के सहारे काट दूंगी पर उसे कभी यह एहसास नहीं होने दूंगी कि मेरे दिल में उसके लिए क्या है...!"
सूनी नजरों से बाहर सड़क की ओर देखते हुए उसने कहा।
"अच्छा मेरी मां ! "
"चल अब उसे फोन करके बता तो दे उसे क्यों खुशी से वंचित रख रही है।"
"हां ...करती हूं..." कहते हुए स्नेहा ने अनुराग का नंबर डायल किया।
पूरी रिंग जाने से पहले ही अनुराग ने फोन रिसीव कर लिया।
"अनुराग मैं..."
"जानता हूं अभी देखा मैंने। बस तुम्हें ही फोन लगा रहा था" चहकता हुआ वो बोला।
"आज बहुत खुश हूं मैं ...यू आर जीनियस यार ...तुम्हारी मेहनत रंग लाई ....आई एम सो हैप्पी... आई कांट एक्सप्लेन ...।"
"टेक इट इजी डॉक्टर अनुराग।"
मुस्कुराती हुई स्नेहा बोली.... "आई कैन अंडरस्टैंड वेरी वेल..."
"यह बताओ कब मिल रहे हो पार्टी ड्यू है तुम्हारी ..."
"स्नेहा कल मेरी कॉन्फ्रेंस है उसके बाद में आता हूं तुम्हारे घर साथ खाना खाएंगे।"
"ठीक है अनुराग आ जाओ मैं इंतजार करूंगी "कहते हुए स्नेहा ने लंबी सांस लेते हुए फोन रख दिया।
"मुझे भी भूख लगी है इतनी देर से आई हूं और तूने पानी के लिए भी नहीं पूछा" रश्मि मचलती हुई बोली।
"आ जा बेटा तेरी पसंद का पास्ता बनाया है .."स्नेहा की मां ने आवाज लगाते हुए कहा।
"मां को मेरा कितना ख्याल है और एक तू है ..."कहती हुई रश्मि मां के गले लगती है।
"आंटी इसने यूपीएससी टॉप किया है ये देखो अखबार में फोटो छपी है इसकी ... "
" इतनी अच्छी खबर लाने के लिए मुंह मीठा करना तो बनता है" मिठाई का टुकड़ा उसके मुंह में घुसाते हुए मां ने कहा।
स्नेहा ने मां के पैर छुए तो उन्होंने उसे गले से लगा लिया बेटी के संघर्षों को याद करके उनकी आंख भर आई है आंसू पोंछते हुए उन्होंने दोनों सहेलियों को खाना परोसा और प्यार से खिलाने लगी।
कुछ देर बैठ कर रश्मि अपने घर चली गई और मां आराम करने...
स्नेहा अकेले अपने कमरे में पलंग पर आकर बैठ गई ऑफिस से तो छुट्टी ले ही ली थी उसने।
जून के महीने की दोपहर चिलचिलाती धूप ने हर जगह अपना कब्जा जमाया हुआ था... पूरा रास्ता सुनसान पड़ा था...
स्नेहा खिड़की के शीशे से बाहर देखती हुई सोचने लगी उसकी जिंदगी भी तो इस सड़क की तरह सुनसान और वीरान हो गई थी.. वह तो न जाने कहां से अनुराग उसकी जिंदगी में उम्मीद के बादल की तरह आया और उसकी जिंदगी की उदास वीरानियों की तपिश को अपने स्नेह की वर्षा से भिगोकर खुशनुमा बना गया...।
एक बार फिर वह अतीत के गलियारों में विचरने से खुद को नहीं रोक पाई पूरे जोश उत्साह और आत्मविश्वास से उसने एमबीबीएस में एडमिशन लिया। बहुत खुश थी वह।
कॉलेज के पहले दिन जब क्लास में इंट्रो करवाया गया तो उसकी एकेडमिक रिकॉर्ड को देखकर सभी बहुत प्रभावित हुए उसकी सुंदरता बुद्धिमता और मृदुल व्यवहार ने सभी को अपनी तरफ आकर्षित किया क्या टीचर और क्या सहपाठी...।
जल्द ही उसकी वहां भी दोस्त बन गई थी।
हंसते खेलते एक बार फिर कमर कस कर नई जंग के लिए तैयार हो गई।
"क्या सारे दिन किताबों में सिर घुसाए बैठी रहती है लाइब्रेरी में" उसके हाथ से किताब लेते हुए मान्या ने कहा। "चल कैंटीन में कॉफी पिएंगे। "श्रुति भी उसकी हां में हां मिलाने लगी अब वह कैसे मना करती भला। तीनों सखियां कैंटीन की तरफ चल पड़ी.. कॉफी आर्डर करके बातें करने लगी।
स्नेहा को एहसास हुआ कि एक जोड़ी आंखें उसे देखी जा रही है उसने पलट कर देखा सामने कुछ सीनियर लड़के बैठे थे। एक हैंडसम सा लड़का उसकी तरफ देखे जा रहा था स्नेहा को अपनी तरफ देखता देख उसने अपनी आंखें नीची कर ली।
पहली बार स्नेहा को अपने दिल में कुछ महसूस हुआ और ना चाहते हुए भी उसका ध्यान बार-बार उस लड़के की तरफ जा रहा था और वह भी तो छुप छुप कर उसे देख रहा था।
नजरों की लुका छिपी के बीच दोनों के दिल शायद कुछ इकरार कर रहे थे।
कैंटीन से वापस आकर अपने कमरे पर भी स्नेहा उन आंखों की तपिश को महसूस करती रही।
अगले दिन कॉलेज में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम था। स्नेहा को गाने का शौक था उसे स्टेज पर परफॉर्म करना था और उसकी बैंड में गिटार बजाने वाला लड़का किन्हीं कारणों से नहीं आ पाया था वह बहुत परेशान थी क्या करें ...तभी वही कैंटीन वाला लड़का आया और बोला -
"क्या मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं मेरा नाम अनुराग है फाइनल ईयर में पढ़ता हूं गिटार बजाना मेरा शौक है और अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारा साथ दे सकता हूं।"
स्नेहा को मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई।
उन दोनों ने मिलकर जो समा बांधा तो पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया।
स्नेहा और अनुराग में दोस्ती हो गई दोनों अक्सर मिलते साथ कॉफी पीते हंसते मुस्कुराते। उन दोनों की दोस्ती परख बर्दाश्त न कर पाया।
परख एक दबंग किस्म का लड़का ...अनुराग का सहपाठी था। अनुराग से वैसे ही चिढ़ता था। स्नेहा से उसकी दोस्ती ने उसे और भी अधिक चिढ़ा दिया था। स्नेहा की खूबसूरती पर वह अपना हक समझता था।
एक दिन कॉरिडोर में उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया और बोला "क्या सारा दिन किताबों में रहती हो यह खूबसूरत आंखें किताबों में गडाए रखने के लिए नहीं बनाई गई चलो तुम्हें दिखाता हूं दुनिया कितनी खूबसूरत है...मेरे साथ चलो..।"
स्नेहा उसे नजरंदाज कर वहां से निकल गई परख तिलमिलाकर रह गया।
एक दिन वह कैंटीन में अनुराग के साथबैठी थी और कॉफी के साथ अपना कोई टॉपिक डिसकस कर रही थी। तभी प्रखर आया और बदतमीजी से बोला -" अनुराग में कोई हीरे जड़े हैं जो इसके साथ घूमती हो ..मेरे साथ चलो तुम्हें ऐश कराऊंगा यह फटीचर तुम्हें क्या देगा।"
अनुराग की आंखें गुस्से से सुलगने लगीं पर स्नेहा ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया। वह शांति से खड़ी हुई उसकी आंखों में देखकर एक भरपूर तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और बोली
"आगे से किसी भी लड़की से बदतमीजी करने से पहले यह थप्पड़ जरुर याद कर लेना ..."और अनुराग का हाथ पकड़ वहां से चली गई।परख तिलमिलाकर रह गया अपना अपमान उसकी बर्दाश्त से बाहर था उसने निश्चय कर लिया कि वह स्नेहा को सबक सिखा कर रहेगा...।
"स्नेहा चल ना बाजार से कुछ सामान लाना है "मान्या बोली
"नहीं यार मन नहीं है आलस आ रहा है आराम करूंगी..।"
" चल ना गोलगप्पे खा कर आएंगे।"
मान्या अच्छी तरह जानती थी कि गोलगप्पे की शौकीन स्नेहा उसे कभी मना ना कर पाएगी। हुआ भी ऐसा ही।
दोनों सखियां तैयार होकर निकल पड़ी थोड़ी ही दूर बस स्टैंड था शहर जाने के लिए ..!
दोनों पैदल ही निकल पड़ीं तभी तेजी से एक बाइक उनके पास आकर रुकी दो लड़के उस पर बैठे थे दोनों का चेहरा ढका हुआ था जब तक दोनों कुछ समझ पातीं एक लड़के ने खींचकर मान्या को पीछे धकेल दिया और दूसरे ने एक बॉटल को स्नेहा के चेहरे पर उड़ेल दिया।
स्नेहा दर्द से चीख उठी दोनों लड़के वहां से फरार हो चुके थे। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कोई कुछ समझ ही नहीं पाया। मान्या दौड़कर स्नेहा के पास आई उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ।
तब तक आसपास के लोग इकट्ठा होने लगे भीड़ में से कोई बोला कि अरे वो लड़के तेजाब डाल कर चले गए उसके चेहरे पर...!!
किसी तरह मान्या लोगों की मदद से उसे अस्पताल लेकर पहुंची।
सबसे पहले उसने अनुराग को फोन लगाया ..
"हेलो अनुराग... "आगे के शब्द उसकी हिचकियों में डूब गए
"रो क्यों रही हो मान्या ..क्या हुआ ?"
अनुराग घबराकर बोला
" किसी ने स्नेहा के ऊपर एसिड डाल दिया है सिटी हॉस्पिटल में है" हम उसने सुबकते हुए कहा और फोन काट दिया
कुछ ही मिनटों में अनुराग वहां पहुंच चुका था स्नेहा का चेहरा 70% तक झुलस चुका था उसकी हालत बहुत खराब थी उसकी मां का तो रो रो कर बुरा हाल था रश्मि उन्हें चुप कराने की कोशिश करती और खुद भी फूट-फूट कर रोने लगती।
" आंटी आप इस तरह टूटेंगी तो स्नेहा को कौन संभालेगा ?"
"आप शांत हो जाइए प्लीज... "अनुराग स्नेहा की मां को समझाते हुए बोला।
"रश्मि तुम उसकी बेस्ट फ्रेंड हो ना संभालो खुद को स्नेहा के लिए.."
" हकीकत जानकर वो टूट जाएगी हमें उसे टूटने से बचाना है उसे जिंदगी की ओर वापस लाना है ..."
"बोलो साथ दोगी मेरा ??"
कहते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया रश्मि और मान्या ने बेबस नज़रों से उसकी तरफ देखा और अनुराग की आंखों में विश्वास देखकर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
" तुम सही कह रहे हो बेटा अब हम सब स्नेहा की ताकत बनेंगे "कहते हुए मां ने भी अपना हाथ उनके हाथ पर रख दिया।
पुलिस अपनी कार्यवाही कर रही थी और डॉक्टर्स अपनी .. कुछ दिनों में स्नेहा अपने घर आ गई उसके तन के घाव भरने लगे थे पर मन के घावों का क्या ...वो नासूर बनकर उसे पीड़ा देते रहते थे।
जब भी वो शीशा देखती घबराकर आंखें फेर लेती हर बार अनुराग आकर उसे संभाल लेता। जब भी उसकी आंखें बरसती तो वह आंसुओं को अपनी हथेली में समेट लेता।
मां की प्यार और दोस्तों के साथ से वह धीरे धीरे अपनी जिंदगी में फिर लौटने लगी अपने आंसुओं को उसने अपने अंदर दफन करना सीख लिया।
शरीर के घाव भरने में साल भर लग गया उसकी सारी पढ़ाई खत्म हो चुकी थी वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें ..
उसकी अधूरे सपने की याद उसे पर कटी पंछी की तरह तड़पा जाती थी रश्मि और अनुराग की लाख कोशिशों के बाद भी स्नेहा सामान्य नहीं हो पा रही थी ये दोनों ही अच्छी तरह जानते थे।
उसकी सूनी आंखें और नकली मुस्कुराहट उसके दिल का हाल बयान कर जाते थे ...!
"आंटी देखिए मैं क्या लाया हूं" एक दिन अनुराग चहकते हुए घर में दाखिल हुआ।
"आज बड़े खुश नजर आ रहे हो ऐसा क्या है हम भी तो जाने ... "मां ने कहा।
"नहीं ...पहले स्नेहा को बुलाइए तभी बताऊंगा। "
"स्नेहा जरा यहां आओ "मां की आवाज सुन वह बाहर आई
"स्नेहा देखो मैं तुम्हारे लिए ग्रेजुएशन फॉर्म लाया हूं इसे भर दो। "
"नहीं अनुराग अब मैं पढ़ाई नहीं कर पाऊंगी हिम्मत ही नहीं है... "स्नेहा दयनीय स्वर में बोली।
" जानता हूं स्नेहा तुम्हें सपना पूरा ना होने का दुख है जरा सोचो अगर पापा होते तो तुम्हें इस तरह हताश होते देखते तो कितना परेशान होते।"
"यह सही है कि तुम सर्जन नहीं बन पाओगी पर और भी तो रास्ते हैं जिंदगी में... मां पापा अपने बच्चों को खुश और सफल देखना चाहते हैं रास्ता चाहे जो भी हो ..."
"तुम एक बार फिर से पढ़ाई शुरू करके तो देखो। रश्मि भी चाहती है कि तुम यूपीएससी एग्जाम दो।वह तैयारी कर रही है तुम्हारी पूरी मदद करेगी।"
"बेटा रास्ता चाहे जो भी हो मां बाप अपने बच्चों को सफल देखना चाहते हैं। हमें पता है हमारी बेटी बहुत समझदार है और मेहनती भी ,सफलता जरूर मिलेगी तुम्हें। "
सबके समझाने से वह फॉर्म भरने को तैयार हो गई रश्मि और अनुराग जब तब अपनी किताबें लेकर आ जाते और तीनों जमकर पढ़ाई करते। अब स्नेहा को भी पढ़ना रास आने लगा और वह फिर एक बार अपनी पढ़ाई के लिए कमर कसकर तैयार थी ....।
दोस्तों का प्यार मां का आशीर्वाद और उसकी मेहनत रंग लाई आज वह उस मुकाम पर खड़ी है जहां उसे देख कर उसके पापा भी जरूर खुश हो रहे होंगे ...।
सोचते सोचते उसकी कब आग लग गई उसे भी पता ना चला।
सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से उसकी नींद खुली एक नई खुशनुमा सुबह उसके स्वागत में बाहें पसारे खड़ी थी।
उसका अनुराग भी तो आने वाला था वह जल्दी से अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर मां के साथ किचन में जाना चाहती थी ताकि अपने हाथों से उसके लिए खाना तैयार कर सकें।
अभी वह किचन में घुसी ही थी की रश्मि आ टपकी और कहने लगी - " आज स्पेशल गेस्ट के लिए स्पेशल खाना बनाने की तैयारी चल रही है मैडम।" उसकी चुहल स्नेहा को अच्छी लगी ऊपर से गुस्सा करती हुई बोली "और तू तो खाएगी नहीं ना, पानी पीकर रह जाएगी... " "चल अब मेरी मदद कर "दोनों सखियां हंसते खिलखिलाते हुए खाना तैयार करने लगीं ज्यादातर चीजें अनुराग की पसंद की थी पूरी, आलू की सब्जी ,बूंदी का रायता और स्पेशल काजू कतली जो उसे बहुत पसंद थी....!
दोपहर को अपने सही समय पर अनुराग आया।
हाथ में रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता लिए नेवी ब्लू कलर का सूट ,वाइट शर्ट में वह गजब का सुंदर लग रहा था।
स्नेहा उसे एक आह भरकर देखती रह गई गुलदस्ता स्नेहा को पकड़ा थी उसे एक बार फिर उसे बधाई दी।
अनुराग मां के पास गया जो सोफे पर बैठी थी अनुराग उनके पैरों के पास बैठ गया और उनका हाथ अपने हाथ में लेती हूं बोला
"मैं आज आपसे कुछ मांगने आया हूं आप मना तो नहीं करोगी ना"
"अरे बेटा ऐसा क्यों कह रहे हो इस घर में आज जो भी खुशी है तुम्हारी ही तो बदौलत है। बताओ ऐसा क्या है जो तुम्हें मुझ से मांगना पड़ रहा है ...।"
"मैं आपसे स्नेहा का हाथ मांगना चाहता हूं मैं उसे जीवनसाथी बनाना चाहता हूं।"
"क्या कह रहे हो सब कुछ जान कर भी तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो ? "
"अब मैं वो स्नेहा नहीं हूं ..एक बदसूरत और बदनुमा दाग़ हूं
जो तुम्हारी जिंदगी को भी दागदार कर देगा।" कहते हुए स्नेहा की आंखें बरसने लगी।
स्नेहा के पास जाकर उसके आंसू पौंछता हुआ अनुराग बोला -" ना..ना मेरी स्नेहा इतनी कमजोर नहीं है और ना ही बदसूरत। "
"तुम तो मेरा चांद हो और अगर चांद पर दाग ना हो तो ऐसा कैसे हो सकता है।"....
"स्नेहा मैं चाहता तो डॉक्टर बनने के बाद ही तुम्हारा हाथ मांग सकता था पर मैं चाहता था कि तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ और फिर से उसी आत्मविश्वास से दुनिया का सामना करने को तैयार होजैसा पहले करती थी बस इसीलिए इतना इंतजार किया "
"अब तो हां कर दो ना प्लीज अब तो अपने दीवाने को और मत तड़पाओ स्नेहा नहीं तो यह देवदास बन जाएगा।"
हंसती हुई रश्मि बोली और स्नेहा का हाथ अनुराग के हाथ में रख दिया स्नेहा की आंख शर्म से झुक गई और मां की आंखों से आंसू दुआ बन कर दोनों की सुखद भविष्य की कामना कर रहे थे।
दूर कहीं दिन ढल रहा था इस उम्मीद के साथ कि कल फिर सुबह होगी....

