मां आखिर मां होती है
मां आखिर मां होती है
मोबाइल की स्क्रीन पर चमकते मां के नाम को देखकर सौम्या आश्चर्य में पड़ गई। इतनी सुबह मां का फोन वह दिन में एक बार उससे बात जरूर करती हैं, पर इतनी सुबह कभी फोन नहीं करती।
फोन रिसीव करते ही उधर से मां की रोती हुई आवाज सुन वह सतर्क हो गई।
"क्या हुआ मां परेशान क्यों हो ?"
वो घबराई आवाज में बोली।
"बेटा तेरे पापा ...." इतना कहकर मां फफक पड़ी।
"क्या हुआ पापा को बोलो ना मां ...कल ही तो मेरी उनसे बात हुई है... कितना खुश थे वो ...!!
"बेटा वो सुबह दूध लेकर लौटते वक्त एक बेकाबू कार ने...!! और आगे के शब्द उनके गले में ही घुट कर रह गए।
अब सौम्या के लिए खुद को संभालना मुश्किल हो गया, वह सोफे पर गिर गई। आवाज सुन सुगंधा जी दौड़ती हुई आईं, और सौम्या को बदहवास देखकर घबरा गईं अपने बेटे अमित को आवाज देकर बुलाया।
सारी स्थिति मालूम करने पर सभी दुख में डूब गए। सौम्या के पापा का एक्सीडेंट हुआ था, और वह गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती थे।
किसी तरह सबने मिलकर सौम्या को संभाला और गाड़ी लेकर कानपुर के लिए निकल पड़े।
आगरा से कानपुर दूरी ही कितनी थी पर सौम्या के लिए मानो एक लंबा सफर बन गई थी, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
रह-रहकर उसका ध्यान अपने पापा की ओर चला जाता, और आंसुओं की लड़ी लग जाती सुगंधा जी अमित और उसके पापा उसे बहलाने की भरसक कोशिश कर रहे थे।
सीट की बैक पर सिर टिकाए वो खिड़की से बाहर देख रही थी।
नवंबर की गुलाबी ठंड थी शाम के वक्त पंछी अपने घर की ओर लौट रहे थे। आसमान बिल्कुल साफ था।
आसमान के गुलाबी पटल पर बचपन के कई अक्स, पापा के साथ गुजारे पल रह-रहकर उभर रहे थे और उसका मन भी पंछियों की भांति अपने सुनहरे दिनों में लौट जाने को व्याकुल था।
सौम्या ने धीरे से अपनी आंखें बंद कर ली और साल दर साल पीछे छोड़ते हुए अपने घर के आंगन में पहुंच गई जहां उसके पापा पेड़ पर डले झूले पर उसे झोटा देते हुए पेंग बढ़ाना सिखा रहे थे।
अचानक वह झूले से गिर जाती है और पापा दौड़ते हुए उसे गले लगा लेते हैं चोट बहुत मामूली थी, पर उसके मन में डर बैठ गया था।
पापा ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा "बेटा जिंदगी में हम न जाने कितनी बार गिरते हैं पर हम फिर उठकर चल देते हैं हम गिरने के डर से चलना तो नहीं छोड़ देते गिरना, उठना, संभलना फिर गलतियों से सबक लेकर आगे चल देना यही तो जिंदगी है बेटा ...।
ऐसे ही न जाने जिंदगी के बड़े-बड़े पाठ पापा ने खेल खेल में सिखा दिए थे।
तितलियों की पीछे भागना हो, पेड़ से आम तोड़ने हो पंछियों को दाना खिलाना हो या नदी किनारे बैठ कर उगते सूरज को देखना हो ....कब पापा उसके साथ नहीं थै उसे याद भी नहीं।
मां पापा की वह इकलौती संतान थी और उनकी जिंदगी बस सौम्या के आसपास ही सिमट कर रह गई थी। पापा तो उसकी नींद सोते और उसके साथ जागते।
मां कई बार कहती भी "क्यों इसे इतना सिर चढ़ा रहे हो पराए घर जाना है वहां भी इसके साथ जाओगे क्या ?"
पापा हंसते हुए कहते" मेरी बेटी जहां जाएगी मैं भी साथ जाऊंगा तुम अपना सोचो"
और मां भी हंसते हुए बाप बेटी की इस अनोखे प्यार को देखती रहती।
उसकी जिंदगी के हर फैसले में पापा उसके साथ थे। यौवन की दहलीज पर जब उसने कदम रखा तो पापा पूरी तरह उसके दोस्त बन गए।
अपने मन की हर बात पापा के साथ शेयर करती बिना किसी झिझक के... अंकुर से दोस्ती हो या प्यार की ओर बढ़ते कदम से लेकर ब्रेकअप तक पापा हर कदम उसके साथ एक मजबूत आधार बनकर खड़े थे।
उन्होंने उसे निर्णय लेना सिखाया एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के निर्माण में उन्होंने हमेशा उसका साथ दिया। वह उसके सखा थे हमराज थे तो मार्गदर्शक भी थे।
अचानक कार रुकी सौम्या अपने अतीत सी वर्तमान में लौट आई। सुगंधा ने प्यार से कहा चलो थोड़ी चाय पी लो कुछ अच्छा लगेगा।
मां की सौम्य ममता भरे स्पर्श से उसके मन की पीड़ा आंसू बनकर बहने लगी। सुगंधा ने उसके माथे को चूम लिया। उनके स्नेह की गर्मी से उसके मन को कुछ सुकून मिला।
अंधेरा होने लगा था सड़क पर खड़ी लैंप पोस्ट अंधेरे को चीरकर रास्ता दिखाने की कोशिश कर रहे थे। ठीक इसी तरह सौम्या भी अनिश्चय के अंधेरों में विश्वास के पथ पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी ...!!
भरोसा ...कि पापा को कुछ नहीं होगा वह बिल्कुल ठीक होंगे।
कल क्या होने वाला है यह तो कोई नहीं जानता सौम्या की नजरें आसमान की और उठ गई शांत दुआ बन कर ....
उन लोगों ने चाय मंगवाई और हल्की फुल्की बातें करके सौम्या का मन बहलाने की कोशिश की पर उसका मन तो पापा के पास से कहीं हटने को तैयार ही नहीं था।
अब उनकी कार वापस अपने गंतव्य की ओर दौड़ रही थी। जल्दी ही वह सिटी हॉस्पिटल पहुंच चुके थे।
मां कॉरीडोर में बदहवास सी बैठी थी बुआजी उनके पास बैठकर सांत्वना दे रहीं थीं सौम्या को देख मां अपनी रुलाई रोक ना पाईं उसके गले लगकर फूट फूट कर रो पड़ी।
पापा ऑपरेशन थिएटर में थे उनकी हालत बहुत बुरी थी सिर पर गंभीर चोट होने से उनकी जान बचा पाना डॉक्टर्स के लिए चुनौती पूर्ण काम था ।
" मां पापा को कुछ नहीं होगा आप चिंता मत करो " वह खुद को संभालते हुए बोली।
करीब 2 घंटे वह सब बेचैनी से बैठे रहे। इक इक पल भारी था उनके लिए तभी ओटी का दरवाजा खुला डॉक्टर बाहर आए बोले -
"हमने अपनी पूरी कोशिश की पर उन्हें बचा पाना आसान नहीं है होश में आने पर ही कुछ कहा जा सकता है "
पापा को वहां से आई सी यू में शिफ्ट कर दिया गया। तमाम उपकरणों से लैस पापा को देखकर खुद को रोक पाना बहुत मुश्किल था सौम्या के लिए।
उसको मां की भी चिंता हो रही थी सुबह से कुछ नहीं खाया था उन्होंने।
अमित कैंटीन से चाय बिस्किट ले आया था। बहुत मुश्किल से मां को थोड़ा सा खिलाया।
पूरी रात कयामत की तरह गुजरी उन सब पर।
अमित मां पापा और बुआ जी को घर छोड़ आया था। सौम्या की मां जाने को तैयार ही नहीं हुई।
सौम्या अमित और मां तीनों हॉस्पिटल में ही रुके थे।
सौम्या को अच्छी तरह याद आ रहा था अमित से रिश्ता पक्का होने के बाद पापा मां कितने खुश थे एक योग्य वर मिलना बेटी के लिए, मां बाप की खुशी और सुकून का बहुत बड़ा पल होता है।
सौम्या भी खुश थी पर एक चिंता उसे खाए जा रही थी। उसके जाने के बाद मां पापा अकेले रह जाएंगे। उसे उदास पाकर पापा ने उसके सिर पर हाथ फेर कर प्यार से पूछा
" बेटा क्या बात है कोई परेशानी है तो कहो क्या रिश्ता तुम्हें पसंद नहीं?"
" नहीं पापा ऐसा नहीं है अमित बहुत सुलझे हुए इंसान है। पर पापा आप दोनों को छोड़कर मैं कहीं जाना नहीं चाहती। आप तो कहते थे कि आप अपनी बेटी के साथ उसके ससुराल भी जाएंगे ऐसा नहीं हो सकता क्या.?? आंखों में आंसू लिए सौम्या बोली।
"नहीं बेटा रोते नहीं एक दिन तेरे साथ ही रहना है और जाएंगे भी कहां हम पर अभी तू अपनी जिम्मेदारियां संभाल मेरा भी अपना काम है यहां जब भी लगेगा अब नहीं हो सकता तो तेरे पास ही तो आएंगे हम" कहकर पापा ने उसे गले लगा लिया।
सौम्या की शादी धूमधाम से हो गई। जल्द ही वह अपने घर में रच बस गई। अभी एक साल ही तो हुआ था उसकी शादी को। अब यह हादसा ....!!
सब कुछ उलट पलट हो गया।
अचानक से कराहने की आवाज़ से सौम्या की विचार श्रृंखला टूटी पापा होश में आ रहे थे अमित डॉ को बुलाकर लाया डॉ ने चेक किया और निराशा से बोले कुछ वक्त ही बाकी है इनके पास ...!!
वह तीनों एक दम स्तब्ध रह गए तभी सौम्या को अपने हाथ पर पापा का स्पर्श महसूस पापा कुछ कहना चाह रहे थे सौम्या पापा की तरफ झुकी लंबी सांसो और टूटती आवाज में पापा ने कहा
" बेटा अपनी मम्मा का खयाल रखना "
और यह कहते हुए उनका सिर एक तरफ लुढ़क गया।
सौम्या पापा पापा कह कर रोने लगी मां का भी रो रोकर बुरा हाल था अमित ने किसी तरह उन्हें संभाला घर फोन कर बताया और अस्पताल की फॉर्मेलिटी पूरी करनी के लिए चले गए। होनी को कौन टाल पाया है ?
पापा अपनी अनंत यात्रा पर जा चुके थे सारे मोह के बंधन तोड़ कर...!!
रिश्तेदारों ने जरूरी रीति रिवाज करवाए। तेरहवीं की रस्म के बाद सभी रिश्तेदार अपने-अपने घर चले गए।
सौम्या भी रस्म पूरी कर अपनी मां के पास ही रुक गई।
दोनों दिन भर पापा को याद कर कभी रोती... तो कभी मुस्कुराती ....यादों के सिवा अब बचा ही क्या था उन दोनों के पास...!!
लाख बुलाने पर भी पापा वापस तो आने से रहे।
सौम्या भी कब तक रुकती एक दिन उसे घर लौटना पड़ा।
मां कैसे अकेली रहेगी यह सोचकर वो परेशान थी। पर किसी से कुछ कह नहीं पा रही थी। वह अपने घर पहुंच गई।
सौम्या को घर आए दो दिन हो गए थे। चुपचाप घर के काम कर रही थी। तभी लगा दरवाजे पर कोई है एक जानी पहचानी आवाज महसूस हुई। काम छोड़कर बाहर गई तो देखा सुगंधा जी और अमित मां के साथ अंदर आ रहे थे।
वो दौड़कर मां से लिपट गई "मां यहां कैसे ...??
हैरान होते वो बोली।
सुगंधा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली "बेटा अब से तुम्हें दो दो मांओं का ध्यान रखना है। अब ये हमारे साथ ही रहेंगी हमेशा। "
सौम्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसने अमित की ओर देखा अमित ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई।
सुगंधा जी ने बिना कहे उसके मन की बात समझ ली थी। सौम्या उनके गले लग रो पड़ी।
सौम्या खुद को धन्य महसूस कर रही थी कि सुगंधा जैसी मां मिली ....। उसका मन बोल उठा -
मां तो आखिर मां होती है....