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Avinash Agnihotri

Drama Classics Inspirational

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Avinash Agnihotri

Drama Classics Inspirational

पहचान

पहचान

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आज मॉल में जब किसी के मेरे कंधे पर स्पर्श से, उस ऒर मुड़ी तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। क्योकि सामने मेरी कॉलेज की पक्की सहेली रूपा खड़ी थी। वो मुझे देखते ही बोली, क्योजी एक ही शहर में रहते हुए भी तुझे कभी मेरी याद नही आती। मैं उसके इस प्रश्न पर कुछ कह पाती,इसके पहले ही फिर उसने दूसरा प्रश्न दाग दिया। कि ओर ये क्या हाल बना रखा है अपना,खेर बता अभी किस कम्पनी में जॉब पर है। अरे जॉब कहाँ अब तो घर के कामो से खुद के लिये भी समय निकाल पाना मुश्किल होता हैं, मैंने बात को सम्हालते हुए कहा। तब रूपा बोली सच मिताली अब तुझे देखकर कौन कहेगा कि तू कभी हमारे कॉलेज की टॉपर रही है।

उसकी बात सुन अब मेरी नजरें नीचे झुक गई। तब रूपा मुझे समझाते हुए बोली कभी कभी इस घर गृहस्थी के चूल्हे में हमारे सारे अरमान झुलस से जाते है। पर भी हमे यह कभी नही भूलना चाहिए कि हम औरतों का इससे अलग भी वजूद है। कुछ सपने है जिन्हें हमे इसी जीवन मे पूरे होते देखना है।

फिर रूपा तो कुछ देर की मुलाकात के बाद विदा हो गई,पर उसकी यह बात मेरे जेहन में उतर गई। और उस वक्त मुझे यूँ लगा जैसे रूपा ने आज एक बार फिर, मुझसे मेरी ही पहचाना करवा गई हो।


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