पहचान सामाजिक
पहचान सामाजिक
उमा चाची की अंत्येष्टि में आने वालों का सिलसिला शुरू हुआ। अधिकांश लोग शोक व्यक्त करते, सहानुभूति जताते, सांत्वना दे रहे थे। उनके चिर परिचित शब्द "भला ऊपर वाले के आगे भी किसी के चली है ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे परिवार को सहन शक्ति दे '। कानों में गूंज उठे मन में द्वंद मचा हुआ था। जीवन भर तो शांति अशांति बिचारी नहीं, अब पार्थिव शरीर से यह लगाव क्यों कैसा ?
तभी माहौल ने करवट बदली और मैं स्तब्ध सी हो गई। नारी जिसे कभी मायका, अबला, सहयोगी, पालना, गृह लक्ष्मी यहां तक कि नदी, वृक्ष पर्वत, गगन इत्यादि कुछ ना कुछ उपलब्धियां मिलती ही रही हैं। जीवन भर इन्हीं बदलते नामों को परछाई की तरह साथ लिए सत्तर वर्ष की उम्र में वह गुम हो गई।
जैसे ही यह खबर आस-पड़ोस परिजन व अन्य लोगों को मिली तो सभी के बीच सही पहचान के संबंध में कानाफूसी शुरू हो गई। फलाने की दादी फलाने की मां चाची, ताई, नानी, बेटी, बाई जी, मेम साहब, मालकिन पर किसी की जुबान पर उनका नाम नहीं आया किसी ने जब उनका नाम पूछा तो सभी निरुत्तर एक दूसरे का मुख देखते हुए सोच में पड़ गए
उन दो घंटों का घटित वार्तालाप जहन से निकलता ही नहीं है आज भी मैं व्यथित हूं यह सोच कर, कि जगत में सर्वोपरि आदर्श महिमामयी कहलाने वाली उस नारी का अपना भी कोई अस्तित्व, पहचान थी भी या नहीं ?
