Bhawna Kukreti

Drama

5.0  

Bhawna Kukreti

Drama

फायनल फेयरवेल

फायनल फेयरवेल

7 mins
327


मैं लौट आया था लेकिन दिमाग में उसी का अक्स ठहरा हुआ था ,धीरे-धीरे कॉफी पीते रुमाल से आंखों के कोनों को पोछती नजर आती । कई दिनों तक सपनो में भी मैं उसे देखता रहा। वो मुझे हाथ हिलाती सड़क के उस पार दिखाई देती।जैसे ही मैं सड़क पार कर उसके पास जाता वह मुझे वहां नहीं दिखती और मेरी नींद टूट जाती।


"तुम सपनो मे आना बन्द करो।"


मैने एक दिन उसे शरारती मैसज किया । मालूम था की इसका बहुत करारा जवाब 10-12 दिन मे मिलेगा। मगर मेसेज भेजे 1 महीना हो गया , मैं भी व्यस्त हो गया था। मैने फिर उसका FB प्रोफाइल चैक किया ।मेरी नजर एक पोस्ट पर पड़ी जो उसने एक दिन पहले डाली थी। उसकी अपनी खिलखिलाहट भरी तस्वीर "लव यू जिंदगी" । उसको उसकी तस्वीर का स्नैप शॉट ले कर मेसेज किया " क्या बात है, मज़ा आ गया " 


कुछ महिने बाद ऑफिस मे लंच हावर मे उसका रिप्लाई आया " कहां हो ?" मैने अपनी ऑफिस कि पिक क्लिक की और भेज दी


" खाना खा रहा हूँ, आ जाओ।" 

"आ गई 😊"


आ गयी?!! मैने लिखा "कहां?" ," बाहर देखो " 

मुझे लगा कहीं सच मे तो नहीं , मैने केबिन से बाहर आकर देखा।सब जूनियर अपनी डेस्क पर खाना खा रहे थे।मुझे बाहर आया देख कुछ खड़े हो गए।" प्लीज, सिट ", मैं भी क्या बच्चों सी हरकतें करने लगा हूँ सोच कर वापस अपने केबिन मे चला आया । मेसँजर मे देखा झल्ली ने बहुत सारे लाफिंग इमोटिकॉन भेजे थे। मेरे होंठों पर हँसी तैर गई। 


" देखने निकले थे न !?"

"हाँ , हो कहां तुम " 

" तुम्हारे शहर मे "

"कहां "

"होटल क्लार्क "

"ओके, शाम को आता हूँ "

"ग्रेट"


वो एज ए टीम लीडर अपनी संस्था की टीम को लेकर आई थी। मैं जब पहुंचा तो पता चला वो सबके के साथ कहीं गई हुई थी अभी लौटी नही थी। मैं वहीँ रिशेप्शन पर बैठा उसका इन्तज़ार करने लगा। "सर क्या आप मिस विजया से मिलने आये हैं?" रिशेपशनिस्ट ने आकर पूछा।मैने रिशेपशनिस्टे को हामी भरी तो उसने इशारा किया ।कुछ देर मे मेरे सामने मेरी पसंद की एस्प्रेस्सो विद सिनेमन बिस्किट थे। 


"वॉव!" 

"येस सर, मिस विजया टोल्ड अस टू ग्रीट यू इन केस उन्हे आने मे देर होती है तो।"


उसने हाल मे म्यूज़िक भी लाईट इंस्ट्रुमेंटल कर दिया। मैं मुस्कराने लगा , झल्ली को ये याद रहा ।मैं कॉफी पीते हुए कॉलेज के दिनो मे चला गया।


" ये मैडम जी तो....कभी अचानक मिलेंगी .. तो भाव ही नही देगी" मैं कॉलेज कैन्टीन मे खड़ा चहक रहा था। आज सब फेयरवेल पार्टी से पहले आखिरी दिन इकट्ठा हुए थे। झल्ली सुनकर मुस्करा रही थी " कितना अच्छा जानते हो न तुम मुझे !", झल्ली ने मेरे कान मे कहा । जतिन बोला " हाँ यार, तुझे तो पक्का नही देगी। " ," ऐसा भी नही है " वो थोड़ा आवाज बढ़ा कर के बोली " दोस्त को भाव देने का क्या मतलब?...हक होता है दोस्त का।" कह कर वह कैन्टीन वाले को बिल पे करने चली गईं। जतिन को मेरे मन मे उसके लिये क्या है ये पता था इसलिये उसने वैसे बोला था।मगर उसके मन की किसी को खबर नही थी।सबको एक डर सा भी लगता था उससे। मुझसे खुल कर बोलती थी मगर बाकी सबसे थोड़ा कम बोलती थी।


लौटते समय औटो स्टॉप पर उस से पूछा "अच्छा ... बताया नही तुमने , क्या पेश करोगी जब मिलोगी?" ,"तुम बताओ क्या पसंद है तुम्हे ", " मैडम जी मुझे तो....एस्प्रेस्सो विद सिनेमन बिस्किट , वो भी 5 स्टार हॉटल मे चाहिये", "ओके, जीनियस साहब और बैकग्राउंड मे भी कुछ बजना चाहिये होगा न?!" उसने भवे उठाते हुए हल्की शरारत भरी मुस्कान से पूछा। "हाँ.. हाँ.क्यूँ नही। लाईट इंस्ट्रुमेंटल हो तो क्या समा बंधेगा।"," ओ हेल्लो साहब जी, जरा सपनो की झाड से नीचे उतर आओ, मेरा औटो आ गया।" और वो उसमे बैठ कर चली गईं।


"सर, आप और कुछ लेंगे?" वेटर ने पूछा। मैने देखा 8 बज गये थे । वो अभी तक नही आई थी। मुझे देर हो रही थी । आज बॉस के घर पर पार्टी भी थी और 9 बजे का समय था। मैने होटल रिशेप्शन से उसका नम्बर लिया और उसे कॉल किया ।"बिज़ी हो तो बाद मे मिलते है। ","सॉरी, जीनियस। यहां से निकलना अभी पॉसिबल नही लगा रहा । मैं फिर कॉल करूंगी, ओके?! " कह कर उसने फोन डिसकनेक्ट कर दिया। 


मैं पार्टी से घर पहुंचा। फोन को चार्जिंग पर लगाया देखा 2 मिस्स कॉल थे हॉटल क्लार्क अवध से । फोन शायद सुन नही पाया था । आखिरी कॉल 10:35 पर थी ,घड़ी देखी अभी 10:45 हो रहा था । देख ही रहा था की हॉटल के नम्बर से कॉल आई। "हेल्लो, शिखर जी बोल रहे हैं?"," जी बताईए", "सर विजया मैम ने आपका नम्बर इमरजेंसी कॉन्टैक्ट मे लिखाया था "


मैं वापस हॉटल क्लार्क मे था। वो और उसकी पूरी टीम मेरे पहुंचने से कुछ देर पहले ही हॉस्पिटल के लिये निकल गयी थी। वहां मौजूद नाइट स्टाफ ने बताया की विजया को इमरजेंसी मे ले गये हैं। मेरे मन मे एक वैक्यूम सा बन गया। ना कुछ सोच ही पा रहा था न कुछ महसूस कर पा रहा था। कुछ ही मिनट मे मैं हॉस्पिटल मे था। 


उस की संस्था 'भोर ' की टी शर्ट पहने लड़के लड़कियों का झुंड आई सी यू के बाहर था। मैं उनके बीच से होता हुआ आई सी यू की विंडो के पास गया। अन्दर झांका, डॉक्टर बैड पर मरीज को वेंटिलेटर पर ले रहे थे । मैं झल्ली को एक बार देख लेना चाह रहा था। तभी पीछे से नर्स ने आकर सबको कॉरिडोर से बाहर जाने को कहा। मैने पूछा " सिस्टर पेशेंट की कंडीशन...?","क्रिटिकल है, देर से ले आये आप लोग..लेट्स सी" कह कर वह अन्दर चली गयी। 


मेरे पैर अब खड़े रह्ने की ताकत खो रहे थे, मैं पास रखी कुर्सियों की तरफ बढ़ गया।


"मैं तुम्हे कॉल करूंगी"

"दोस्त को भाव देने का क्या मतलब? हक होता है दोस्त का। "

"मुझसे दूरी बना कर बात किया करो।"

" सब भूलो आगे बढ़ो।"

"क्या बेवकूफी है।"

"ज्यादा लोग क्यूँ चाहिये तुम्हे ? " 

" लेक्चर कितने बजे शुरु होता है ?" 


उसकी-मेरी, पिछली बहुत सारी बातें मेरे कानो मे धड़कनों की तरह बहुत तेजी से रिवर्स मे सुनाई पड़ रहीं थी। मैने आँखें बन्द कर लीं।वो गेंहूँवी, मरियल सी, हर्बेरियम फ़ाईल पकडे, यूनिवर्सिटी मे लाइब्रेरी की सीढियों पर खड़ी, इशारे से जल्दी आने को कहती दिख


"कहां थे तुम, जब भी तुम्हारी जरूरत होती है मुझे , तुम कभी नहीं होते"


ये आवाज सामने से सुनाई पड़ी। मैने आँखें खोली , वो नाराजगी मे सामने कुछ कागज लिये खड़ी थी।



"थैंक गॉड तुम ठीक हो ....!!! " कह कर मै उसके गले से लग गया । उस वक्त मैं मानो आसमान से जमीं पर गिरता , हौले से बीच मे थाम लिया गया था ।


" ओह!" कह कर उसने मुझे खुद से अलग किया " सॉरी.... एम सॉरी...शिखर " वो सारा माजरा समझ गई थी । मैं कुर्सी पर निढ़ाल सा गिर गया।अब मेरी दोस्त , मुझे बच्चे की तरह दुलार रही थी , मेरी पीठ सहलाती मुझे पानी पिला रही थी। यही असल झल्ली थी, उसकी प्यारी सी दोस्ती थी । मेरे दिल मे दबा फितूरी प्यार उसकी दोस्ती और परवाह की आंच पा कर काफूर हो गया। उसकी दोस्ती मे ममता की बारिश, मेरे डरे हुए मन को भिगो रही थी। वो किस तरह से मुझे दोस्त मानती थी , अब गहराई से महसूस हो रहा था।


"सॉरी, शिखर मुझे सिर्फ तुम्हारा नम्बर पता था यहां, इसलिये दे दिया, तुम इतने परेशान हो जाओगे अन्दाजा होता तो...... "


" मगर ये विजया...?", मैने खुद पर काबू पाते पूछा।

" ओह.. वो ?! अरे, मेरे नाम की एक लेडी हैं टीम मे ,उसके हार्ट प्रॉबलम थी पर उसने अपने पेपर्स मे मेनशन नही किया था ,उसके हस्बैंड आते होंगे।" 

" हम्म " कुछ देर वो पास बैठी मेरा हाथ सहलाती रही ।

"तुम अब ठीक हो ?" 

" हाँ ... फाईन।" 

"अच्छा एक मिनट, पेपर वर्क निपटा के आती हूँ ,तुम हो न अभी?" 

मैने हामी मे सर हिला दिया। वो हॉस्पिटल के काऊंटर पर जा कर कागज पूरे करने लगी।


मै अब भी आधे सेन्स मे उसे सब करते देख रहा था । दिल अब भी घबराया हुआ था "आज अगर ये ही वो विजया होती तो ? "। मैं उठ कर खडा हो उसके पास चला गया। उसने साइन किया , "विजया सम्यक पटेल " ,"सम्यक पटेल , तुम तो शर्मा हो ?" , " हो गई थी यार, मई 2000 मे " उसने मुस्करा कर मुझे देखा। मैं हैरानी से उसे देखे जा रहा था ।


कुछ देर बाद हम दोनो हॉस्पिटल के केफेटेरीया मे बैठे थे।" अब नफरत हो रही होगी न मुझसे ?" उसने कहा, "नही...सच कहूँ तो खुद पर और तुम पर गुस्सा आ रहा है " मैने शब्दों को बहुत चबा कर कहा ।उसने मेरे दोनो हाथों को अपने हाथों मे लिया ।

"यार... मैं समझती थी तुम्हारी भावना को, इसीलिये तुमसे ज्यादा सम्पर्क मे नही थी " 

"पर अपना मन बता तो सकती थी?!" 

" क्या बताती?! और बताती तो क्या तुम कुछ समझ सकते थे तब .... फिर दुबारा जब तुम मिले उस समय जिस सिचुएशन मे पड़ी थी तुम नफरत करते कि कैसी दीवानी सी हो गयी हूँ मैं।


" तुम जानती हो मैं कभी तुमसे नफरत नही कर सकता।"



" अच्छा सुनो फिर, नैनीताल मे तुम्हारे बातों ने उस दिन मुझे सही रस्ता दिखाया था ।जानते हो न .....मन सब सच जानता है मगर ....जब तक कोई अपना, आइना नही दिखाता ....वो मानता नही।"


मैं बहुत गौर से उसे देख सुन रहा था।


" तुम उस दिन न मिलते तो शायद मैं उसी मरीचिका मे भटकती रह्ती। मेरी दुनिया मे सम्यक जैसे बेहद समझदार पति थे मगर बेहद व्यस्त। तुम सुन, समझ रहे हो न ?! "


" हाँ , कहो सुन रहा हूँ। मतलब, सब समझ रहा हूँ पर फिर भी सच बताऊँ तुम्हे ले कर मैं हैरान हूँ , तुम और इस तरह के रिश्ते मे , इतनी कमजोर कब से हो गई तुम ?!" 


" ...यार सब सुख था मगर मन बाँटने को पास न कोई दोस्त था न सहेली। उसी से उलझ गई । सरल सा लगा था वो, कुछ-कुछ मेरे जैसा भी तो उससे गहरा लगाव और इमोशनल डपेंडेंनसी हो गयी , फिर पता ही नही चला कब कैसे उस से मन जुड़ गया ।"



"यार मगर फिर भी ?!! अच्छा छोड़ो फिर.... ये सब कहां तक पहुंचा? " मैं अपना सर धुनने लगा था।


" कहीं भी नहीं...वो एक ऐसा उलझा सा रिश्ता था जिसमे शुरु मे बहुत अटेशन और परवाह थी मगर कुछ समय बाद ही उसका परिवार बढ़ा, जिम्मेदारियां भी तो फिर मेरे लिये सिवाय आँसू , इन्तज़ार और रुसवाई के कुछ नही था । मैं , मेरा पारिवारिक जीवन, सब अस्त व्यस्त । मेरा मन , किसी खिलौने सा हो गया था । अपनो का प्यार जीवन मे होते हुए भी उस एक वजह से खुद को एकदम अलग थलग महसूस करती थी, मन बाँटने को चली थी खुद ही टुकड़ों मे हो गयी थी। मैं समझ तो आ रही हूँ न तुमको ?"



मैं अब उसकी सिचुएशन समझ रहा था।उसे कोई ऐसा दोस्त चाहिये था जो उसे बस सुन ले, जैसे मैं कभी उसे घण्टों सुना करता था ।


उसने गहरी साँस ली, और फिर मुझे मुस्कराते हुए देखा। 


" आय एम सॉरी यार, शायद कहीं मैं भी जिम्मेदार हूँ "

" नही, तुम कैसे? कोई जिम्मेदार नही, ये मेरी कमी थी। "

" खैर , तुम नही समझोग । और अब क्या है ?!" 

" अब ?! अब सब दुरुस्त"

"मतलब तुम्हारा भी फेयरवेल मोमेंट ओवर।" 

वो मुस्कराई और मेरे गाल पर एक हल्की सी चपत लगाई।

"औक तो डीयर झल्ली जी ऐसा है की अच्छी खासी चोट पड़ी तुम्हें। "

वो अपने हाथों की लकीरों पर उंगलियाँ फिराने लगी।

"वैसे सच बताओ, अब तो कोई गडबड़ नही करोगी न? एसा न हो कहीं वो तुम्हारा ट्विन तुम्हे फिर मुस्कराता मिले ... और तुम फिर उसके लगाव मे । ", मुझे उसे ऐसे चिढाने मे शुरु से ही बहुत मज़ा आता था। वो बिलबिला उठती थी ,अब भी वही हुआ , उस ने आँखें तरेरी।

"तुम फिर शुरु हो गये ?! "

"अरे चिल , मैं मजाक कर रहा हूँ ।"

"अच्छा सुनो ,19 मई को घर आना, ऐनिवर्सरी है"

"ओके झल्ली मैडम !! सॉरी, विजया सम्यक पटेल मैम, पक्का आऊंगा" 

"नही, तुम्हारे लिये ये झल्ली का ही इनविटेशन है , सम्यक जी भी तुम्हे कॉल करेंगे।"

"ओके जी, अच्छा ये तो बताओ वो ट्विन था कौन और तुम्हारे उनको पता है तुम्हारे फ्लिन्ग का ? " मैने उसको फिर से छेड़ा। मगर इस बार वह थोड़ा स्थिर थी।


"सम्यक बहुत सुलझे ,मेच्योर इन्सान हैं , उनसे मन नही छिपाया मैने और रही फ्लिन्ग की बात तो फ्लिन्ग मत कहो उसे ,उसमे फ्लिन्ग जैसा कुछ नही था, मेरी ओर से मन का रिश्ता था ,बाकी ट्विन के लिये मैं मन बह्लाव ही थी .. खैर .. अब जाने दो। " 


सुबह तक मैं अपनी दोस्त के साथ हॉस्पिटल मे बैठा


उसे काफी देर सुना और समझाया की मर्दों की असल दुनिया कैसी होती है


, और भी बहुत सी बातें हुई। आज कोई अधूरी , अनकही, अनसुनी बात नहीं थी और ना ही हम दोनो के बीच कुछ भी उलझा था। मुझे अब झल्ली के खोने का कोई डर नही था और उसे भी उसका जीनियस वापस मिल गया था,शायद अब झल्ली फिर नही भट्केगी।


बहरहाल,आज बेहद नाटकीय मगर शानदार फेयरवेल हुआ था,एक बहुत पुरानी कॉलेज की कहानी का। 








Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama