sonal johari

Drama Horror Romance

4  

sonal johari

Drama Horror Romance

पार्ट 3-मालबन में 'वो'

पार्ट 3-मालबन में 'वो'

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आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि अर्जुन गुस्से में राहुल से उसके ऑफिस मिलने जाता है...जहां राहुल उसे बताता है..कि मंजरी खुद उसमें रुचि ले रही है..जिससे अर्जुन गुस्से में उसके आफिस से बापस चला जाता है,..दुसरीं ओर मालवन जाते हुए ..मंजरी को कुछ गुंडे मिलते है जिससे कोई उसे बचाता है.. .अब आगे..

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

वो भागे जा रही थी..डर से हलक सूखने लगी थी..लेकिन वो गुंडे उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे..अचानक किसी खड्ढे में पैर फॅसा और वो 'आह ' की आवाज के साथ औंधे मुंह गिर पड़ी..

वो दोनों उसके पास आ रहे थे...उसने उठना चांहा लेकिन पैर ने साथ नहीं दिया पैर में शायद मोच आ गयी थी ..वो कराह कर रह गयी...वो दोनो उसके पास आकर खड़े हो गए वो चीखी 'बचाओ ' और डर से उसने अपने दोनों हाथ खुद के सिर के ऊपर रख लिए..

..और अगली चीख उन दोंनो की सुनाई दी..'आह'...'अहह'

उसने हिम्मत करके सिर उठा कर देखा, उस मसीहा को अब पास से देखा जा सकता था एक लड़का ....पूरी ताकत से लात और घूँसों की बरसात सी किये जा रहा था उन गुण्डों पर..वो मन ही मन उस लड़के को धन्यवाद दे रही थी..उसके मन मे उस लड़के को देखने की इच्छा बलबती हो रही थी..

इतना पिटने के बाद अब दोनों गुंडे अचेत से हो गए थे...वो मुड़ा और उसने मंजरी की ओर देखा..

'देबू' मंजरी का मुँह खुला रह गया ...

'मंजरी ...तुम'? उसने भी आश्चर्य से पूँछा

"तुम...ओह देबू ..तुम अगर आज समय पर ना आये होते तो...तो..ना जाने क्या होता"...कहते कहते हाथों से चेहरा ढंक कर रोने लगी

"तुम मुझे देख ...मेरे कहने का मतलब.."

"ओह ये तुमने अपनी क्या हालत बना ली है..देबू" वो रोते हुए बोली

"हालत...(फिर खुद पर एक नजर डालते हुए) ओह्ह..एक बात बताओ तुम यहाँ कर क्या रही हो"?

मंजरी ने उसके मैले कुचैले कपड़े देखे..बालों पर जैसे महीनों से कंघी ना की गई हो..आंखे गड्ढे में धँसी थीं..और शरीर भी ऐसा मानो लकड़ी पर कपड़े टंगे हों..लेकिन उसने मंजरी की जान और इज्जत दोनों बचाये थे..उसके लिए वो मसीहा था, वो बोली

"...सोमेश मेरा कजिन उसकी शादी में आई थी..रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी" वो अब भी सुबक रही थी..

"तुम ठीक तो हो ना" उसने पूछा

"हाँ .."मंजरी सिर हिलाकर बोली

"हम्म..चलो गाड़ी देखते हैं तुम्हारी" वो दोनों गाड़ी की ओर गए

देबू ने गाड़ी देखी और बोनट बन्द करके उसने मंजरी को गाड़ी में बैठने का इशारा किया..जैसे ही मंजरी सीट पर बैठी..देबू ने एक तेज़ घूँसा बोनट पर दे मारा ...मंजरी ने बड़े आश्चर्य से देबू की ओर देखा ...देबू ने उसे गाड़ी स्टार्ट करने का इशारा किया

यकीन ना होते हुए भी उसने गाड़ी स्टार्ट की...और उसकी आँखें खुशी से फैल गयी..गाड़ी स्टार्ट हो गयी थी..उसने मुस्कुरा कर देबू की ओर देखा और बोली

"गाड़ी ऐसे भी स्टार्ट हो सकती है कभी नहीं सोचा था..आओ बैठो"

"नहीं...मंजरी..मुझे कुछ काम है..तुम जाओ आराम से .." वो भी मुस्कुरा कर बोला

"अगर वो ...रास्ते में ..फिर दिखे तो" उसने डरते हुए पूछा

"तो बिना संकोच ये गाड़ी उन पर चढ़ा देना..हा..हा"

"हा हा हा..(फिर एकदम गंभीर होकर) सच में तुमने जो किया है ना देबू.."

"हे..कुछ भी नही कर दिया ऐसा..वो अब तुम्हें दिखेंगे भी नहीं फिक्र मत करो...और जब भी जरूरत हो..बस्स मुझे आवाज देना..हाजिर हो जाऊँगा"

"ऐसे कैसे हाजिर हो जाओगे "उसने आश्चर्य से पूँछा

"आजमा कर देख लेना" वो मुस्कुराया और जाने लगा..अंधेरा होने लगा था..मंजरी उसे जाता देख रही थी..और देबू थोड़ी देर में ही आंखो से ओझल हो गया...मंजरी ने गाड़ी ताऊ जी के घर के लिए बढ़ा दी ....

उसके चेहरे पर मुस्कुराहट ठहर गयी थी...देबू से पहली बार मिलना उसे याद आ गया...उनके इलाके में उस वक़्त एक ही इंग्लिश मीडियम स्कूल था जो को-एजुकेशन था (जिसमें लड़के-लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं) ..जब वो पहले दिन अपनी क्लास में पहुँची..सबसे पीछे वाली सीट पर देबू सिकुड़ा बैठा था..बेतरतीब बाल बने थे उसके ..निश्चित ही उसने अपने आप बनाये होंगे..पूरी क्लास छोड़कर वो वहीं जाकर बैठ गयी और उससे बोली "मंजरी"....बदले में वो अपना नाम बताने के बजाय शर्माते हुए बस्स हल्का सा मुस्कुरा दिया..और उसे ऐसा करते देख बहुत कोशिश के बाद भी मंजरी अपनी हँसी नहीं रोक सकी...उसे नौंवी क्लास के लड़के से इतना शर्मीला होने की उम्मीद नही थी...

उसके बाद उसने लगातार डाँट डाँट कर ना सिर्फ देबू की हेयर स्टाइल बल्कि व्यवहार में भी काफी परिवर्तन ला दिया था..नौंवी से दशमी..फिर ग्यारहवीं ...हमेशा मंजरी ही अब्बल आती रही और देबू खुश होता रहा..पूरा स्कूल उनकी दोस्ती का कायल था...लेकिन बारहवीं में आश्चर्यजनक रूप से देबू ने अधिक नम्बरों से मंजरी से बाजी मार ली थी ..और जब  मंजरी को ये पता लगा तो उसे यकीन नहीं हुआ,उसने जब देबू से उसका रिपोर्ट कार्ड मांगा तो देबू ने नजरें झुकाते हुए बहुत शर्मिंदगी से उसकी ओर अपना कार्ड ऐसे बढ़ाया जैसे बहुत भारी गलती कर दी हो..मंजरी को उसका अधिक नम्बर लाना अच्छा नही लगा था..और गुस्से में देबू से कई दिनों तक बात नहीं की थी उसने.......

**

'हा हा हा ' अपनी इस नादानी पर वो जोर से हँसने लगी ..और 'ओह्ह' की आवाज के साथ उसने तेज़ी से कार में ब्रेक लगाए .."हे ईश्वर आज का दिन ही बुरा है.." बोलती हुई वो नीचे उतरी.." एक उम्रदराज आदमी उसकी कार से टकराने से बाल बाल बचते हुए गिर गया था...

"आप ठीक तो हैं"? मंजरी ने पूछा

"हाँ हाँ" वो उठते हुए बोला..मंजरी ने उसे सहारा देकर उठाया

उससे माफी मांगी और आगे बढ़ गयी

....'ओह कितनी बेबकूफ़ थी मैं..." बोलती हुई वो फिर अतीत की यादों में खो गयी थी.

देबू, मंजरी से बात करने के कितने जतन करता ...लेकिन वो नाराज ही रहती...वो ये तक बोलते हुए माफी माँगता "माफ कर दो मंजरी...तुम ही कहती थी पढ़ो-पढ़ो ...मै बस्स पढ़ा...लेकिन तुमसे ज्यादा नम्बर लाने का इरादा नहीं था मेरा..." दस से बारह दिन बाद बातचीत शुरू हुई दोनो के बीच

फिर मंजरी के पिता ने गोवा में घर बना लिया और वो परिवार सहित वही बस गयी ..मंजरी ने वहीं जाकर आगे की पढ़ाई पूरी की..और फिर जॉब...कुछ टाइम तक दोंनो कॉन्टेक्ट में रहे फिर धीरे -धीरे अपनी दुनिया मे सिमट गये....

तेज़ बैंड बाजों की आवाज से उसे ध्यान आया..कि वो पहुँच गयी है ताऊ जी के घर..

"बारात जाने को तैयार खड़ी है..बड़ी जल्दी आ गयी मंजरी" ताऊ जी ने उसे देखते ही ताना कसा...

"ताऊ जी बस्स 10 मिनट... अभी तैयार होकर आई" बोलते हुए वो बैग लेकर सीधे अंदर दौड़ गयी...

नीले रंग का लहँगा पहने,खुले बाल और हाथ भर-भर चूड़ियां पहने शीशे के सामने तैयाए खड़ी थी और खुद को अर्जुन की नजर से देख रही थी ...

"कैसी लग रही हूँ तुम्हारे पसंद की ड्रेस में " उसने शीशे में देख कर ऐसे पूछा जैसे अर्जुन उसके पीछे ही खड़ा हो

"बहुत सुंदर..बहुत ही खूबसूरत मंजरी" वो अर्जुन के स्टाइल को कॉपी करती हुई खुद ही बोली और शरमा गयी..फिर बाहर निकल कर बारात में शामिल हो गयी....

खूब बैण्ड बाजों का शोर ...बहुत से रिश्तेदार ...और घोड़ी पर बैठा सोमेश ....आगे बढ उसने ताऊ जी का हाथ पकडा

वो "अरे अरे " करते रहे...और मंजरी उन्हे सबके बीचोबीच लाते हुए नाचने लगी..ताऊ जी हँसते हुए उसपर पैसे न्यौछावर करने लगे.....

अगले दिन मंजरी शादी से लौटकर रात भर सोचती रही कि उसे जॉब करनी चाहिए या नहीं ..और तय किया कि अगले दिन जाकर वो अपना रिजाइन राहुल को सौंप देगी..

***

राहुल ने मंजरी को जब अपने केबिन की ओर आता देखा तो अपने बालों की स्पाइक स्टाइल को फिर से सेट किया उसके क्लीन शेव्ड चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी फिर अपनी फिटेड सर्ट को ठीक किया... उसकी चमकीली काली आँखे और चमक उठी..खुशी की एक गुलाबी रंगत.. जो छोटी नाक से शुरू होते हुए, उसके चौड़े होंठो को और गुलाबी कर गयी...वो अपनी कुर्सी से उठा और फिर कुछ सोचते हुए बापस बैठ गया..खुद को अतिरिक्त व्यस्त दिखाते हुए उसने निगाहें कम्प्यूटर स्क्रीन पर गढ़ा दी और कनखियों से केविन के दरवाजे की ओर देखने लगा.. मंजरी गुलाबी सूट पहने खुले बालों में ऊँगलियाँ फिराते हुए केबिन के गेट पर आकर रुक गयी फिर मन ही मन कुछ सोचते हुए उसने अपना सिर हिलाया जैसे खुद को तैयार किया हो किसी निर्णय के लिए..और तेज़ी से दरवाजा खोल वो अंदर आयी...

"अररे..मंजरी...बहुत अच्छा किया जो आ गयी तुम..ये देखो (उसे दिखाकर एक फाइल मेज़ पर रखते हुए) पूरी तैयारी हो चुकी है बस्स काम पर लग जाओ..." राहुल ने मुस्कुराते हुए बड़े संयत भाव से कहा

"राहुल ..वो ..मुझे कुछ जरूरी बात कहनी थी" उसने राहुल को टोकते हुए कहा

"मंजरी अब सब बातें बाद में ..ये देखो (लैपटॉप की स्क्रीन उसकी ओर मोड़ते हुए) ये देखो कौन कहेगा कि ये वही रिसॉर्ट है ...महज तीन महिनो में मैंने इसका पूरा नक्शा ही बदल दिया है...तो लग रहा है ना 5 स्टार लग्जरी रिसॉर्ट ?" उसने मंजरी से पूछा

"हम्म..शानदार है.. राहुल सच में तुमने तो इतने कम वक्त में सच में कमाल कर दिया " वो प्रभावित होकर बोली

"हम्म अब बस्स कुछ अच्छा सा नाम मिल जाये "

"इसका पुराना नाम है तो सही"

"नहीं मंजरी..मैं नहीं चाहता जब गेस्ट इस होटल में चेक इन करे उसे कुछ भी पुराना एहसास हो"

"तो कोई नाम है क्या दिमाग मे"

"नहीं मंजरी..टीम ने पूरी लिस्ट पकड़ा दी है..लेकिन कुछ जम नहीं रहा इस दिल को (उसने मुट्ठी बना अपने दिल पर धीरे से मारते हुए कहा) तुम कुछ सुझाओ ना मंजरी..आखिर ये प्रोजेक्ट है तो तुम्हारा ही ना.."

"हाँ ...राहुल ..मुझे इसी बारे में कुछ कहना है"

"मंजरी नाम सुझाओ..."

"राहुल रिसॉर्ट्स एन्ड स्पा" वो झट से बोली

"ना...ना..बकवास ..कुछ ऐसा जो अंदर तक महसूस हो"

"अ अ ..अंदर तक ..(एकाएक उछलते हुए) अंतस...अंतस कैसा रहेगा"?

"(खुशी में अपनी कुर्सी से उठते हुए) येह ...देखा..तुम प्रोजेक्ट की हेड इसीलिए हो मंजरी..इसीलिए..बहुत ही अच्छा नाम... यही नाम होगा ..."अन्तस् रिसॉर्ट्स एन्ड स्पा"..वाह"

जब राहुल ने ऐसे कहा तो मंजरी अपने दोनों हाथ आपस मे फंसा खुद के चेहरे पर रख लिए और मुस्कुराते हुए राहुल की ओर कुछ पल देखती रही फिर एकाएक गंभीर हो गयी

"अब जल्दी से स्टाफ की ड्रेस फाइनल करो..और हां शेफ भी फाइनल करने हैं और रूम की सजावट ,कैटेगरी ..और उसके बाद टेरिफ ..उफ्फ अब भी कितना कुछ बचा रहता है..मंजरी अब ये सब जल्दी से निपटाना तुम्हारा काम ..टीम के साथ लगकर बस्स शुरू हो जाओ .."

"राहुल ..वो .." मंजरी ने कुछ कहना चाहा

"मंजरी जाकर अपना केबिन तो देखो..तुम्हारा मन खुश हो जाएगा...सब तुम्हारे पसंद का..प्रोजेक्ट हेड जो हो तुम" राहुल खुश होकर बोला

"राहुल...मैं जॉब छोड़ने आई हूँ" वो कुर्सी पर निढाल सी गिरती हुई बोली

"क्या ...पता भी है क्या कह रही हो" ? राहुल गुस्से में बोला

"अच्छी तरह ..."

" इतनी अच्छी अपॉर्चुनिटी ..छोड़कर ?..तुम इस प्रोजेक्ट में इंट्रेस्टिड थी.. ...आखिर हुआ क्या है मंजरी ? जान सकता हूँ"

तल्ख लहज़े में राहुल बोला

"मेरा अर्जुन से ब्रेकअप हो गया है.. " वो आँखे बन्द करते हुए बोली ...लाख रोकने के बाबजूद भी दो आँसू आँखों के किनारे से लुढक गए

"बाऊ ....(राहुल के मुंह से निकल गया जिसे सुनकर मंजरी ने उसकी ओर देखा ..राहुल ने फौरन अपनी बात सम्भाली और बोला )

.."वो ..आह ...मेरा मतलब कैसे ..कब..क्यों ?"

"अर्जुन नहीं चाहता..कि मैं जॉब करुँ..बस्स इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना ..मुझे माफ़ कर दो " इतना बोल वो कुर्सी से उठी और जाने लगी

"जो हमें प्यार करते हैं वो हमें दुख नहीं देते..मंजरी..हमारी प्रगति से दुखी नहीं होते बल्कि खुश होते हैं..ये कैसा प्रेम है जो आजादी छीन रहा है तुम्हारी"

मेज पर झुका राहुल बहुत संयत होकर बोला तो मंजरी रुकी और राहुल की ओर देखने लगी..राहुल ने बोलना जारी रखा

"या फिर उसे.. तुम्हारी काबलियत पर यकीन नहीं ?

"राहुल ..अर्जुन प्यार करता है मुझसे." वो कड़क आवाज में बोली

"खुद को यकीन दिला रही हो मंजरी ...या.. मुझे ? जाना है तो बेशक जाओ..मगर मै सलाह दूँगा कि उसकी गलत बात को मानकर तुम उसकी गलती को ही और बल दोगी...ये जॉब छोड़कर तुम उसे सही और खुद को गलत साबित करोगी ..ये मत भूलो ....यहाँ तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है तुमनें"

बात पूरी कर वो 'धम्म ' से कुर्सी पर बैठ गया और यूं ही लेपटॉप के कीबोर्ड पर उंगलियां चलाने लगा, मंजरी कुछ देर चुपचाप खड़ी रही फिर बाहर निकल गयी..राहुल उठकर अपने केबिन के दरवाजे से बाहर की ओर ताकने लगा...मंजरी चलते-चलते अपने केबिन के पास रुक गयी ...कुछ देर खड़ी रही ..फिर केबिन में जाकर बैठ गयी...

ये देख राहुल के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी ...उसने जल्दी से लैंडलाइन का रिसीवर उठाया और बोला "सुनो बाँके.. एक कॉफी, भुने पिस्ते और काजू, मंजरी मैम के केविन में जल्दी लेकर जाओ ..सुना जल्दी.."

मंजरी केबिन में अपनी सीट पर बैठ आँखे बंद करते हुए बुदबुदायी "क्या करूँ..किससे पूछूँ ..देबू..हम्म शायद देबू मेरी मदद कर पाए..कहाँ हो देबू?"..कुछ पल बाद जब उसने आँखे खोली तो पूरे केबिन में धुप्प अंधेरा था..बड़ी तेज़ आँधी आ गयी थी 'खटक -खटक 'की आवाज से खिड़कियाँ बजने लगीं थी...वो उठ कर खिड़कियां बन्द करने लगी.."तुमने मुझे याद किया मंजरी "? ये सुन वो पीछे पलटी..'ईss' उसकी चीख निकल गयी.. अंधेरे में देबू ही खड़ा था उसने अंदाजे से पहचाना ...तभी केबिन का दरवाजा धड़धड़ाने लगा

"मंजरी..मंजरी ..दरवाजा खोलो" बाहर से राहुल की आवाज आ रही थी.....मंजरी ने अपना पैर आगे बढ़ाया केबिन के दरवाजे की ओर जाने के लिए..और हड़बड़ाहट में उसका मुँह मेज के कोने में जा लगा...

अगले ही पल उसने खुद को कुर्सी पर बैठे हुए पाया.

तभी केबिन में लाइट आ गयी ..दरवाजे पर अब भी राहुल के हाथों की थाप पड़ रही थी..उसने आगे बढ़ कर जल्दी से दरवाजा खोल दिया...

"क्या हुआ ...तुम दरवाजा क्यों नहीं खोल रही थीं..बाँके कबसे नॉक कर रहा है.. ...तुम ठीक तो हो " राहुल ने चिंता से पूछा...

"वो आँधी गयी थी ना..लाइट भी कट हो गयी थी " वो माथे पर हाथ रखते हुए बोली

"आँधी...कब..?..और ये चोट कैसे लगी मंजरी" राहुल ने मंजरी के माथे पर लगी हल्की सी चोट को देखते हुए हैरानी से पूछा

"ओह समझी ..मुझे शायद झपकी आ गयी थी..शायद सपना देखा था ..सॉरी राहुल" वो माथे पर लगी चोट पर हाथ रखते हुए हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बोली

"ओह .. कोई बात नहीं... कॉफी पी लो अच्छा लगेगा तुम्हें .और ये तन्वी ( एक लड़की की ओर इशारा करके) ये तुम्हारी मदद के लिए"

मंजरी के 'हां' में सिर हिलाते ही राहुल वहाँ से चला गया और तन्वी वहीं बैठ गयी और मंजरी को कुछ ड्रेस कोड की डिजाइन दिखाने लगी..नए रिसॉर्ट के लिये...मंजरी ड्रेस देखने लगी..उसका ध्यान अभी अभी हुई घटना पर ही था....नजरें रह रह कर खिड़कियों की ओर ही चली जाती थी...उसे खिड़की पर फिर कुछ परछाईं सी दिखी वो तेज़ी से उठी और उसने खिड़की खोल दी

. ..........................क्रमशः.................


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