पाप का घड़ा
पाप का घड़ा
सखि,
कहते हैं कि पाप का घड़ा कभी न कभी तो फूटता जरूर है । वैसे तो इस घोर कलयुग में इन कहावतों और लोकोक्तियों का कोई मूल्य नहीं हैं मगर जब कुछ बड़ी अजीब सी घटनाऐं घटती हैं तो ऊपर वाले पर विश्वास और भी दृढ़ हो जाता है । ऐसा लगता है कि उसकी लाठी एक न एक दिन तो जरूर चलती है ।
सखि, आज मैं कितना खुश हूं , बता नहीं सकता हूं । तुमने नाम तो सुना ही होगा एक आतंकवादी , पाकिस्तानी एजेंट यासीन मलिक का । वही, जिसने वर्ष 1988 से काश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार करवाया था । उन्हें काश्मीर से भाग जाने के लिए विवश किया था । यासीन मलिक, फारुख अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे , सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर वगैरह ने किस कदर जम्मू-कश्मीर में आतंक मचाया था । एक समुदाय की सरेआम हत्याऐं की थीं । सामूहिक बलात्कार किये थे । और इस देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारों ने इन दुर्दांत अपराधियों को "दामादों" की तरह पाला पोषा था । जिन्होंने वायु सेना के चार अधिकारियों को सरेआम गोलियों से भून दिया था , उन राक्षसों को हमारी मनमोहिनी सरकार ने इनकी "सुरक्षा" में दर्जनों सुरक्षा बल तैनात कर रखे थे । जिनसे दुनिया डरती थी उन्हें किस बात का डर ? मगर ये तो "दामाद" थे न । तो इनके लिए सरकार "पेट के बल" भी चल सकती थी और चली भी ।
तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग, धर्मनिरपेक्ष, बॉलीवुड, लिबरल्स ने इन जैसे दुष्टों की प्रशस्ति गाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । हमारे देश का बिका हुआ मीडिया इन्हें "हीरो" साबित करने में जी जान से जुटा हुआ था । वो "जनता की अदालत" लगाने वाला तथाकथित राष्ट्रवादी पत्रकार ने अपने चैनल पर इसे बुलाकर कैसा महिमामंडन किया था इसका , तुम्हें याद होगा सखि, । ये पत्रकार कितने बिके हुए हैं ? हैं न सखि ।
अब इसके पाप का घड़ा भर गया लगता है । तुम पूछती थी न कि क्या बदल गया पिछले आठ सालों में ? तो ये सबसे बढिया उदाहरण है । ये यासीन मलिक जो प्रधानमंत्री का विशेष मेहमान हुआ करता था और आतंकवाद पर बड़ा "ज्ञान" बांटता फिरता था । आज अपने गुनाह खुद कुबूल कर रहा है । यदि यह सरकार नहीं होती तो यासीन मलिक जैसे हत्यारे, अपराधी आज भी सरकारी मेहमान होते जिनकी सुरक्षा सेना के वे जवान करते जिन पर इस जैसे आतंकवादियों ने पत्थर , गोली, बम क्या क्या नहीं बरसाये थे । इनको न केवल पाकिस्तान से मदद मिलती थी अपितु लश्करे तोइबा जैसे आतंकी संगठनों से भी पैसा, हथियार और दूसरी मदद भी मिलती थी । सबसे बड़ी बात यह थी कि इनके बचाव में भारत के कुछ राजनीतिक दल जिन्हें तुम अच्छी तरह जानती हो, लिबरल्स, सेकुलर्स, पूर्व नौकरशाह, जज, वकील , मीडिया , तथाकथित कलाकार , शायर सब कूद पड़ते थे । वे सब आज किसी बिल में दुम दबाये पड़े हुए हैं । वैसे एक बात बताऊं सखि, सिस्टम आज भी "इन्ही" का ही है ।
मगर ये जरूर है कि अब इनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है और अब ये "प्रधानमंत्री" के नहीं "जेल" के मेहमान बन रहे हैं । काश्मीर फाइल्स ने इनकी पोल खोलकर रख दी है । इसके साथ ही सिस्टम की भी । एक अदालत में इसने अपने गुनाह कबूल कर लिये हैं और उन पर 19 मई को सजा सुनाई जायेगी । अभी तो वह केस मनी लॉडरिंग का है मगर हमें उम्मीद है कि इसके सारे केसों पर कार्यवाही होगी । न्यायपालिका की प्रतिष्ठा भी दांव पर है ।
आज के लिये इतना ही काफी है सखि, शेष कल ।