पांव का कांटा !
पांव का कांटा !
किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा है
"न हमसफर न हमनशीं से निकलेगा,
हमारे पांव का कांटा, हमीं से निकलेगा।"
सचमुच यह दुनिया अजीब है ना। दुनियावी रिश्ते और भी अबूझ पहेली हैं। अब आपसे हर हाथ मिलाने वाले दोस्त नहीं हुआ करते हैं, अगर दोस्त बन भी गये तो दोस्त बनकर भी साथ नहीं निभाने वाले हुआ करते हैं, अगर आपसे मतलब निकलना है तो फेवीकोल की मानिन्द चिपक जाते हैं लोग और कोई मतलब न हो तो मुंह फेर के चले जानेवालों की तादाद ज्यादा हो चली है। यह समय है, समय की चाल है।
प्रशांत के असमय चले जाने की पीड़ा और क्षोभ से सिर्फ तीन लोग सीधे - सीधे प्रभावित थे। के.के.,कुमकुम और कनिका ..बस। कुमकुम अब रहीं नहीं, के.के. ने परिजनों से बहुत ज्यादा राग- अनुराग नहीं रखा था लेकिन कनिका...प्रशांत के न रहने की गहनतम पीड़ा से गुजर रही वह एकमात्र प्राणी है।उसको अपने इस दुख के साथ- साथ अपना कैरियर भी देखना पड़ रहा है। प्रशांत का कैरियर जब उठान पर था तो ढेर सारे लोग जुटे रहते थे। अब कनिका अकेली है..नितांत अकेली। उसके पास बहुत ज्यादा फ़िल्में भी नहीं हैं लेकिन फिर भी वह अपने वर्तमान को सहजता से जी रही है। हां, उसके स्वप्न में अब भी प्रशांत आया करते हैं, उसको ढाढस भी दिलाते रहते हैं ।..अब भी !
प्रशांत ने अपनी उत्तराधिकारी के रुप में कनिका का नामांकन बैंक आदि में करा दिया था इसलिए आर्थिक दृष्टि से कनिका के लिए कोई परेशानी नहीं थी।रहने को घर था ही। हां, करोड़ों रुपये की मालकिन बनी कनिका को इस बात की लगातार टीस बनी हुई थी कि पुलिस और जांच एजेंसियां प्रशांत के सुसाइड केस को ठीक तरह से डील नहीं कर रही हैं। उनका सारा फोकस अब ड्रग और ब्लैक मनी की ओर चला गया है।
उस शाम कनिका मुम्बई के एक मशहूर फौजदारी वकील मि.सकलानी के चेम्बर में थी।
"वकील साहब, मुझे ऐसा लग रहा है कि मुम्बई पुलिस ने अपना मन बना लिया है कि अब प्रशांत सुसाइड केस में फाइनल रिपोर्ट लगाकर उसे सुसाइड करार दे दिया जाय और मामले को रफा दफा कर दिया जाय।"
कनिका ने अपनी शंका जताते हुए कहा।
"हां, लगता तो ऐसा ही है।" मि.सकलानी ने कनिका की इस बात पर हुंकारी भरी और सोच में डूब गये।
थोड़ी देर दोनों नि:शब्द रहे। ऑफिस में एक नौकर ट्रे में दो कप चाय रखकर चला गया।
चाय की चुस्की लेते हुए मि.सकलानी ने कहा:
"मिसेज कनिका, पुलिस ने जब अपने जांच की दिशा बदली तभी यह संदेह होने लगा था कि प्रशांत का सुसाइड केस तो उनके लिए लांचिंग पैड साबित हुआ है। उनके निशाने पर अब ड्रग पैडेलर और विदेशों में बैठे उनके आका लोग आ गये हैं। लेकिन एक रास्ता मुझे दिखाई दे रहा है और वो यह कि पुलिस के फाइनल रिपोर्ट लगाने के पहले हम एक स्टे ले लें और कोर्ट से यह रिक्वेस्ट करें कि वे सरकार से एप्रूव्ड डिटेक्टिव एजेंसी से प्रशांत के परिजनों की ओर से पैरेलल जांच कर लेने की भी अनुमति दे दे। हो सकता है कि हमारे इस संदेह को कि प्रशांत ने सुसाइड नहीं किया है बल्कि उसकी हत्या हुई है डिटेक्टिव एजेंसी की जांच से कुछ बल मिल सके।"
सकलानी साहब की इस बात पर कनिका को संतोष हुआ और वह झट इसके लिए तैयार हो गई।
"वकील साहब ! आपकी राय से मैं एकदम सहमत हूं..और..और आप इस बारे में पेपर्स तैयार कराइये..जो भी खर्चा आए मैं उसे वहन करने को तैयार हूं।" एक सांस में बोल गई कनिका।
वकील साहब ने अगले दिन तक इस पर आनेवाले खर्च आदि का ब्यौरा देने के लिए समय मांगा।
कनिका अब अपने घर वापसी पर है। आज वह बहुत खुश है कि उसको प्रशांत के साथ हुई प्रभावशाली लोगों की जबरदस्ती और नाइंसाफी पर न्याय मिलने का रास्ता मिल गया है।
उधर वकील साहब ने अगले दिन मुम्बई में विश्व की मशहूर डिडेक्टिव एजेंसी की फ्रेन्चाइजी को इस काम के लिए एप्रोच किया। वकील साहब इस बात से बेहद खुश हैं कि शरलॉक होम्स और सी.चौधरी जैसे नामी जासूस भी इस एजेंसी से जुड़े हुए हैं ओर ज्यादा उम्मीद यह है कि उन दोनों को ही इस केस को सुलझाने की ज़िम्मेदारी दी जायेगी। ....कुल चालीस लाख में सौदा तय हो गया ।अब उन्होंने कोर्ट में पेपर्स दाखिला, अपनी फ़ीस आदि का इस्टीमेट बनाया और कनिका को उन्होंने लगभग साठ लाख का बजट बता दिया। कनिका ने भी हामी भर दी।
अगले दिन कनिका को फ्लाइट से लखनऊ जाना था जहां उसकी फ़िल्म की शूटिंग शुरु हो चुकी थी। वह उसकी तैयारियों में पिल पड़ी । एक हफ्ते शहर से बाहर रहना है ...कितनी कितनी तो तैयारियां करनी पड़ती हैं।
लखनऊ... नवाबों का शहर..शतरंजी चालों का शहर..भूलभुलैया वाला शहर...कुछ तो नहीं बदली है यहां की आबो हवा..हां,कल तक नवाब यहां के शासक थे अब जनता के चुने गये नुमाइंदे !इन नुमाइंदों की ज़िंदगी भी उन नवाबों से किसी भी मायने में कम नहीं है।बड़ी बड़ी सर्व सुविधा सम्पन्न आलीशान कोठियां.. जनेश्वर मिश्रा, लोहिया, अम्बेडकर, दीनदयाल उपाध्याय, लक्ष्मण जी के नाम पर बने भव्य पार्क..और उनमें लगी उनकी तथा वर्तमान युग के नेताओं की मूर्तियां..कुछ पूरी कुछ अधूरी महत्वाकाक्षाओं की प्रतिफलक दिखाती हुईं !गोमती रिवर फ्रंट.. मानो जुहू बीच हो और हजरतगंज की शाम..मानो लंदन की शाम हो..गोमती नगर के ताज पैलेस में अपने वी.आई.पी.सूट में बैठी कनिका लखनऊ को निहार रही है।कल से उसकी शूटिंग शुरु हो रही है।वह बार- बार स्क्रिप्ट रीडिंग में अपना ध्यान लगा रही है।अपने डायलॉग्स को दुहरा रही है।वह चाह रही है कि उसके शरीर में उसकी फ़िल्म की हिरोइन का समूचा कैरेक्टर प्रवेश कर जाय...वही शातिर हिरोइन जो खिलौना बनाकर प्रेम और शादी किसी से करती है, सेक्स किसी और से और अपने पति के घिनौने मर्डर की हेतुक भी बनती है।
वह इन्हीं ख़यालों में डूबी थी कि उसके मोबाइल की घंटी बज उठी।
"हेलो, मैडम मैं, सकलानी बोल रहा हूं।" फोन पर मिस्टर सकलानी थे।
"जी, वकील साहब !क्या डेवलपमेंट है?"कनिका पूछ उठी।
"आपका केस दखिल हो गया है। अब अगली सुनवाई पर बहस होगी। यही जानकारी देनी थी।" वकील साहब ने यह सूचना देकर फोन रख दिया था ।
कनिका वापस अपनी स्क्रिप्ट की दुनिया में आ गई है।