पानी और रेत मिलते हैं
पानी और रेत मिलते हैं
“सुनो न, चलो न आज अपनी उसी पसंद की जगह पर जहां पानी और रेत मिलते है।”
“क्या हुआ आज बहुत उदास लग रही हो।”
“कुछ नहीं आज बस तुम्हारा साथ चाहिए चलो जल्दी से।”
हम निकल पड़े अपने उस गुमनाम से सफ़र पर जहाँ मिल जाते है पानी और रेत। अभी हम बैठे ही थे की अचानक एक लहर दौड़ते हुई आई तुम्हारी तरफ, तुमने भी बाहें खोल कर उसको गले लगा लिया। तुम फिर आ के बैठ गयी मेरे पास, अपने हाथ से थाम लिया हाथ मेरा और फिर तुमने मेरे कंधें पे अपना सर रख लिया।
“एक बात पूछूं तुमसे?”
“क्या? पूछ लो।”
“क्या सोचते हो तुम मेरे बारे में, जब मैं वो नहीं चाहती जो तुम चाहते हो।”
“अरे सोचना क्या, यहीं सोच लेता हूँ की तुम खुद को नहीं चाहती।” और मैं हंसने लगा।
“तुम मुझे जितना भी वक़्त देती हो उससे मैं खुश हूँ और जब भी मिलती हो तुम मुझसे मेरी सारी शिकायतें दूर कर देती हो। तुम्हारी एक मुस्कुराहट मेरे अंदर वो सभी बातें वापस ला देती है जिससे मुझे ख़ुशी मिलती है। कई कप वो महंगी वाली कॉफ़ी का स्वाद भी तुम्हारे साथ बैठ के उस एक कप नींबू चाय की बराबरी नहीं कर सकती जिसकी चुस्कियां लेते वक़्त तुम ख़ुशी से भर जाती हो। हमेशा मेरे पास तुम होती हो कभी मेरा साया बनकर और कभी मेरा एक हसीन सा ख्वाब बनकर।
9 बज गए है चलो तुमको घर छोड़ दूँ!”
“कुछ देर और बैठो न यही पर और इस चांदनी रात में बरस रही ठण्ड को अपने अन्दर समेट लो।”
तभी पीछे से एक रेडियो पे बज रहा गीत सुनाई देने लगा,
हो चांदनी जब तक रात देता है हर कोई साथ तुम अगर अँधेरे में न छोड़ना मेरा हाथ...
तुम मेरे और करीब आ गई मुस्कुराते हुए।
आज जैसे तुम मिली मुझसे शायद कोई किसी को बस ख्वाबों में मिलता है या शायद ये मेरा ख्वाब ही होगा।