चाँद जो तुम सा है
चाँद जो तुम सा है
“जानती हो आज क्या है”
“क्या है मुझे याद नहीं”
“आज का चाँद देख लो ज़रा याद आ जाएगा”
आज का चाँद बहुत खूबसूरत लग रहा है बिलकुल वैसा ही लगने की कोशिश में है जैसी तुम लगती हो अपनी उस गुलाबी सी जैकेट में या उस हरे रंग की स्वेटर में। जानती हो तुम मैं आजकल हर वक़्त एक दुविधा से गुजरता हूँ। कह दूँ मैं तुमसे या नहीं, तुम मुझे याद आ जाती हो हर उस वक़्त पे जब मैं अकेला होता हूँ सिर्फ अपनेआप से बातें करता हूँ तुम्हारे बारे में और कई बात कह जाता हूँ जो शायद मैं तुमसे भी नहीं कह पाता।
कभी तुमने इस ठंड के मौसम में बर्फ को गिरते देखा है, कभी बर्फ की चादर से ढका हुआ एक मैदान देखा है। उसमें अपने क़दमों के निशान बनाये है।
या उसमें से एक बर्फ का गोला बनाया है, ये सब बेहद खूबसूरत लगता है न। मेरे लिए तुम को देखना उतना ही सुखद होता है, जितना ठंड के मौसम में बर्फ देखना लगता है। या कुल्हड़ में गरमा गर्म चाय पीना लगता है,और तुम्हारी वो हाथों पे फूक मारने का तरीका दिल छू जाता है।
मेरे लिए तुम्हारा साथ जानती हो ठीक वैसा ही है, जैसा साथ दो अनजान से रास्तों में होता है एक फ्लाईओवर के साथ। जैसा साथ किसी फीकी सी सब्जी में नमक का होता है। और जैसा साथ किसी खाली से मैदान में खेलते हुए बच्चों की टोली का होता है। “बड़ा अजीब सा लगता है जब तुम मुझसे रूठ जाती हो, जानती हो ऐसा लगता है जैसे पतझड़ में किसी बाग़ को देखने से होता है।”
“तुम भी न कुछ भी सोच लेते हो, हमेशा तुम को चाहा और चाहा कुछ भी नहीं।” “अच्छा गाना है” और फिर तुम मुस्कुराने लगी। लेकिन खैर तुम जो कह दो सब सही लगता है चाहे इसे तुम कुछ भी कहो मैं बस यही कहता हूँ तुम को देख कर “तेरा कमाल तू जाने मुझे तो सब कमाल लगता है।”

