पाँच का दम

पाँच का दम

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कद साढ़े चार फिट, वजन १५० कुंतल का झम्मन लाल गुलफाम नगर की मजनू वाला रोड पर लुढ़कता चला जा रहा था। उसकी उम्र ४० के पार होने के बाद भी उसकी ख़राब आदतों और कद काठी की वजह से कोई लड़की उससे शादी को तैयार नहीं थी। लेकिन इस बात का उसपर कोई असर नहीं था, मौका मिलते ही वो बिना अपनी उम्र का लिहाज किये लड़कियों पर डोरे डालने से बाज नहीं आता था। अपनी इसी गन्दी आदत की वजह से वो एक सिनेमा में जूली नाम की लड़की को छेड़ बैठा; अंजाम उसकी अर्ध गंज खोपड़ी पर जूली के मजबूत सैंडलों की बेभाव बरसात। इतना ही नहीं, जूली की दारुण पुकार सुनकर धीरा और बीरा नाम के दो सड़क छाप उसपर टूट पड़े, परिणाम तीनो की थाना यात्रा और वहां दारोगा लक्कड़ सिंह ने उन तीनों को समाज सेवी दिलदार सिंह की ५००० की जमानत पर उस के तबेले में चारा-गोबर के टोकरे ढोने के लिए छोड़ दिया था।


एक महीने वहाँ से बेगार कर निकले तो जा पहुंचे एक फिल्म, 'चंपा के चक्कर में,' के सूटिंग देखने। बदकिस्मती से एक्ट्रेस सिनेमा वाली मोटी सैंडल वाली लड़की निकली जो झम्मन लाल को देखते ही भड़क गई, अंजाम पब्लिक ने छेड़-खानी का आरोप लगा कर जबरदस्त पिटाई कर फिर दरोगा लक्कड़ सिंह के हवाले कर दिया। इसबार दारोगा लक्कड़ सिंह ने कुछ ज्यादा माल वसूल कर उन्हें दिलदार सिंह के तबेले में तीन महीने की बेगार पर लगा दिया। खैर दिलदार सिंह ने उनके काम से खुश होकर उन्हें अब परमानेंट अपने तबेले में रख लिया था और थोड़ा फेरबदल कर उन तीनो से वही गोबर और चारा ढोने का काम ले रहा था। अब उन्हें हफ्ते में एक दिन की छुट्टी भी मिलने लगी थी।


तीनों आपस में उस जूली के कारण लड़कर इस हालत में पंहुचे थे। वो तकदीर से एक नाव में सवार तो जरूर थे लेकिन धीरा और बीरा मौका मिलते ही झम्मन लाल को मजा चखाने के फ़िराक में रहते थे और झम्मन लाल भी किसी तरह उनसे अपनी दुर्गति का बदला लेने के चक्कर में था।

दिखावे के लिए तीनों मिल जुल रहते थे कर रहते थे और इसी कारण तीनों ने मजनू वाला रोड पर स्थित मक्कार सिनेमा (नाम तो मक्कड़ है लेकिन इंग्लिश में लिखा होने के कारण मक्कार ही लगता है) 'गड़बड़ झाला' नाम की फिल्म देखने जा रहे थे। शहर में व्यापारिक प्रतिष्ठानों की छुट्टी होने की वजह से व्यापारियों और कर्मचारियों की मिली-जुली भीड़ सिनेमा देखने आई हुई थी।

शो सुबह ११:३० शुरू होना था, फिल्म कोई ख़ास न होने के कारण टिकट मिलने में कोई दिक्कत नहीं होनी थी इसलिए तीनों ने सिनेमा हॉल पे ११:०० बजे मिलने का वादा किया था। तीनों ने टिकट लिए और जा बैठे सिनेमा के वेटिंग हाल में।

सिनेमा की लॉबी में, 'चंपा के चक्कर में की पूरी यूनिट मूवी का पोस्टर रिलीज़ करनी आई हुई थी, अच्छी खासी गहमागहमी थी वेंटिंग हाल में। जूली अभी नजर नहीं आ रही थी लेकिन फिल्म की यूनिट के बाकी लोग वहाँ मौजूद थे।

"बेटे तेरी हीरोइन नजर नहीं आ रही, डर के भाग गई क्या तेरी वजह से.....?" —धीरा ने झम्मन लाल को छेड़ते हुए कहा।

"दिमाग मत ख़राब कर उसी की वजह से गोबर ढो रहे हो बेटा तुम आज कल भैसो के तबेले में।" —झम्मन लाल भुनभुना कर बोला।

धीरा कुछ बोलने वाला था लेकिन तभी झकाझक कपड़े गहने पहने जूली ने सिनेमा के वेटिंग हाल में प्रवेश किया। उसके प्रवेश करते ही भाड़े के लोगो की एक भीड़ ने जूली के नाम का जय-जयकार किया और छोटी-छोटी स्लैम बुक लेकर उसके ऑटोग्राफ लेने दौड़ पड़े और कैमरे वाले धड़ाधड़ उसके फोटो खींचने लगे।

"हिम्मत है तो जाकर तू भी ले-ले उसका ले-ले ऑटोग्राफ।" —बीरा झम्मन लाल को चढ़ाते हुए बोला।

"पागल हुए हो, कटखनी बिल्ली है वो, पिछली बाते भूल गए हो क्या? —झम्मन लाल गुर्रा कर बोला।

"अबे तब की बाते कहाँ याद होंगी उसे, चल निकाल पाँच सौ का नोट उसी पे लेना ऑटोग्राफ; हम भी ले लेंगे उसके ऑटोग्राफ १००-१०० के नोट पर।" —कहते हुए धीरा ने उसे आगे की तरफ धक्का दिया।

"अबे पागलो ये तो, 'आ बैल मुझे मार,' वाली बात होगी। बहुत मार पड़ेगी अगर उसने पहचान लिया तो।

"अबे मर्द बन; तू ऑटोग्राफ लेने जा रहा है शादी के लिए उसका हाथ नहीं मांग रहा........" —धीरा ने उसकी मर्दानगी को ललकारते हुए कहा।

इतना कहना बहुत था झम्मन लाल के लिए; उसने ताव में आकर एक ५०० का नोट पर्स से निकाला और ऑटोग्राफ लेने वाली भीड़ को चीरते हुए जा खड़ा हुआ ऑटोग्राफ देती जूली के सामने।

"ऑटोग्राफ प्लीज........." —झम्मन लाल पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला।

जूली अपने से डेढ़ फ़ीट छोटे फुटबाल जैसे आदमी को देखकर कुछ याद करने की कोशिस की और फिर याद आते ही चीखी— "तू........फिर आ गया तू........"

झम्मन लाल जूली की चीख सुनते ही डर कर भागा लेकिन भीड़ से उलझ कर सीधा जूली से जा टकराया और उसे अपने साथ लेकर जोर से नीचे गिरा।

"ये मुझे छेड़ने आया है........" —जूली गिरे-गिरे जोर से चिल्लाई।

जूली का इतना कहना ही बहुत था और सिनेमा में इकट्ठी भीड़ झम्मन लाल पर टूट पड़ी।

धीरा, बीरा अपने मकसद में सफल होकर सिनेमा से खिसकने ही लगे थे कि कोई चिल्लाया— "इन दोनों ने भेजा था उस बदमाश को हीरोइन को छेड़ने।"

इतना सुनते ही जूली के कुछ फैन धीरा-बीरा पर भी टूट पड़े।

करीब १० मिनट की लगातार पिटाई के बाद जब भीड़ ने उन्हें छोड़ा तो दारोगा लक्कड़ सिंह अपने दलबल के साथ आ धमका और तीनों को उठाकर सदर थाने ले लॉकअप में ला पटका।

"मिल गया बेटे ऑटोग्राफ?" —धीरा अपने जख्म सेहलाते हुए बोला।

"मिल गया बेटे लाओ तुम दोनों को भी देता हूँ।" —कहते हुए झम्मन लाल धीरा और बीरा पर टूट पड़ा। जवाब में धीरा और बीरा भी गुर्रा कर उस पर टूट पड़े। उन्हें भिड़ते हुए अभी पाँच मिनट भी नहीं हुए थे कि तीन हवलदार लॉकअप में आ घुसे और उन्होंने लाठियों से उन तीनों की पिटाई की कि तीनों को छठी का दूध याद आ गया।

करीब पाँच घंटे बाद उन्हें लॉकअप से निकाल कर दारोगा लक्कड़ सिंह के पास ले जाया गया। लक्कड़ सिंह से पास उन्हें उनका मालिक दिलदार सिंह बैठे हुए मिला। उन्हें देखते वो गुर्राकर बोला— "क्यों बे मेरी दी नौकरी रास नहीं आती तुम्हे जो बार-बार आकर यहाँ थाने में लेट जाते हो। और दारोगा जी तुम इन्हे बंद करके मुझे फोन क्यों करते हो, ये अगर बदमाश है तो भेजो ना इन्हे जेल।"

"इस बार तो इनका अपराध इतना संगीन है कि तीनों पॉंच-पॉंच साल के लिए जेल जायेंगे।" —लक्कड़ सिंह गंभीर आवाज में बोला।

"हमे बचा लो उस्ताद जी नहीं तो हम मर जाएंगे......." —तीनों जोर-जोर से रोते हुए बोले।

"पॉंच महीने की बेगार मंजूर हो तो मैं बात करूँ दारोगा जी से?" —दिलदार सिंह उन तीनों को घूरते हुए बोला।

"हमें मंजूर है उस्ताद जी......." —तीनों जोर-जोर से रोते हुए बोले।

"ये लो दारोगा जी आपका नजराना, मैं ले जा रहा हूँ इन्हें........." —दिलदार १० और ५ के सिक्कों की रेजगारी से भरा थैला लक्कड़ सिंह के सामने रखते हुए बोला।

"क्या मुसीबत है ये, कितने की रेजगारी है ये? —दारोगा लक्कड़ सिंह चिढ़कर बोला।

"पूरे पाँच हजार है, मंजूर हो तो रखो नहीं तो मैं अपनी थैली ले जाता हूँ फिर तुम जानो और ये तीनो जाने।" —दिलदार सिंह अपनी थैली उठाते हुए बोला।

"लाओ दो इधर......ले के जाओ इन बदमाशों को यहाँ से, अगली बार मेरे हत्थे चढ़ गए तो बेटा ये दिलदार सिंह भी है बचा पायेगा तुम्हें।" —दरोगा लक्कड़ सिंह रेजगारी से भरा थैला दिलदार के हाथ से छीनते हुए बोला।


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