पाना ही मोहब्बत नहीं
पाना ही मोहब्बत नहीं
रेडियो मिर्ची पर पुराना गाना बचपन की मोहब्बत को दिल से न जुदा करना सुनकर अर्पिता की आँखें अर्पण को याद करके नम हो गई। जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही पडोसी प्रताप शर्मा के बेटे अर्पण को अपना पहला प्यार चुन चुकी थी अर्पिता। बचपन से साथ-साथ पले बड़े और दो घरानों के बीच ऐसा रिश्ता था की दोनों एक दूसरे के घर में ही खाते खेलते थे।
कई बार मजाक मजाक में दोनों कि मम्मीयां ऐसी बात बोल जाती की अर्पिता खुद को शर्मा खानदान की भावी बहू ही समझने लगी थी। अर्पण की मम्मी को अर्पिता बहुत पसंद थी तो कई बार अर्पिता की मम्मी से बोलती देखना अर्पिता को तो मेरा अर्पण ही घोडी पर बिठाकर ले जाएगा। बड़ों के मजाक ने अर्पित के मन में एक सपना बो दिया पर अर्पण की तो ऐसी बातों से ज़्यादा पढ़ लिखकर डाॅक्टर बनने में ही रुचि थी।
Bsc ख़त्म करके msc करने बाहर चला गया। हंसी मजाक में अर्पण कई बार अर्पिता का हाथ पकड़ लेता था तो कई बार गाल पर थपकी, तो कई बार अपनी मम्मी की मजाक पर आँख मारकर अर्पिता को हाय बीवी कहते मजाक करते छेड़ लेता था, जिसका अर्थ अर्पिता के दिल ने कुछ ओर ही समझ लिया। पूरा दिन अर्पण के खयालों में खोई दिन ब दिन अर्पण को बेइन्तहाँ प्यार करते पागल हो रही थी।
B com तक पढ़ाई करके फ़ैशन डिज़ाईनिंग कर रही थी। कालेज में कई लड़को ने कोशिश की अर्पिता को पटाने की पर खुद को अर्पण कि अमानत समझते किसी में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
बस अर्पण की पढ़ाई ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही थी।
कई बार अर्पण से फोन पर बातचीत होती तब भी अर्पण कैसी हो बीवी बोलकर मजाक कर लेता और उस गलतफ़हमी ने अर्पिता को कहीं का नहीं छोड़ा। कई अच्छे-अच्छे घराने से रिश्ते आए पर अर्पिता ने मना कर दिया ये कहकर की पहले मुझे पढ़ लिखकर कुछ बनना है। अर्पण के ख़यालो में खोई थी की अर्पण की मम्मी हाथ में मिठाई का बोक्स लेकर आई और बोली लो जी कल मेरा बेटा आ रहा है डाक्टरी की पढ़ाई ख़त्म करके मुँह मीठा कीजिए।
अर्पिता खुशी से झूम उठी मुरझाए मन में हजारों फूल खिल उठे उफ्फ़ कल कब होगी, चौबीस घंटे कैसे कटेंगे। सबसे पहले पार्लर चली गई खुद को नखशिख संवार लिया। अलमारी खोलकर अर्पण के पसंदीदा रंग की कुर्ती और चुड़ीदार निकाल कर रख दिया। पूरी रात अर्पण की यादों में बीती। एक बजे अर्पण आने वाला था अर्पिता का दिल 12 बजे से राजधानी की रफ़्तार से धड़क रहा था। सलीके से सज-धज कर मुख्य दरवाजा खुला रखकर अर्पिता सोफ़े पर बैठ गई, और अर्पण का इंतज़ार करने लगी।
एक बजे शर्मा जी के दरवाजे पर टैक्सी खड़ी हुई और पहले अर्पण उतरा और पीछे एक बेहद खूबसूरत लड़की उतरी, जिसका बहुत ही प्यार और चाहत के साथ हाथ थामकर अर्पण घर की दहलीज़ तक ले गया।
अर्पण ने पीछे मूड़कर देखा और अर्पिता को देखते ही बोला हेय बीवी कम ऑन मीट माय रियल बीवी अंशिका। अर्पिता ने हाय हैलो किया पर पैरों तले से मानों ज़मीन खिसक गई। सारे सपने टूट फूटकर बिखर गए। मैं अभी आई कहते दौड़ती हुई वाशरूम में चली गई और शावर के नीचे खड़ी रहकर पानी के साथ दिल के दर्द को आँखों से बहाती रही। प्रणय के दो कोण के आगे कोई तीसरा कोण भी हो सकता है ये तो अर्पिता ने कभी सोचा ही नहीं था। मन में ब्याही और मन में ही विधवा हुई। प्रणय के अपनी ओर के सिरे को समेटती दो कोण को दुआएं देती अर्पिता सहज होने की कोशिश में भीतर ही भीतर टूटती रही। ये सोचकर की पाना ही मोहब्बत नहीं अपने प्यार को खुश देखकर खुश होना भी मोहब्बत है।
