Megha Rathi

Comedy

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Megha Rathi

Comedy

ऑल आउट

ऑल आउट

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"बचपन से ही मैं बहुत सीधी रही हूं .. न.. न जलेबी की तरह नहीं बल्कि बकरी की तरह सीधी। अब गाय का उदाहरण इसलिए भी नहीं दे सकती कि कहीं आप मुझे मरखनी गाय न कहने लगे जाएं और यह बेचारी बकरी कूदती - फांदती तो रहती है पर होती बहुत सीधी है। सीधेपन में उदाहरण तो मैं भैंस का देना चाहती थी पर मेरी सेहत बकरी तक जा कर ही अटक गई।

हां, तो मैं बात कर रही थी अपने सीधेपन की जिसके कारण लोग हँस पड़ते हैं और मैं शर्मा कर रह जाती हूँ।

यकीन नहीं आता.. तो चलिए किशोरावस्था का ही एक किस्सा बताती हूँ।

दसवीं की परीक्षाओं का बोझा उतरने के बाद हम सभी बहनें मम्मी के साथ छुट्टियां बिताने मामा जी के घर गए। चूंकि पहुंचते- पहुंचते रात हो गई थी इसलिए रात्रि भोजन की डकार लेने के बाद हम सभी सोने चले गए। अंधेरा होते ही मच्छर भी अपने डिनर की तैयारी में जुट जाते हैं इसलिए मामाजी ने 'ऑल आउट' नामक एक 'मच्छर भक्षी यंत्र' कमरे में लगा दिया जिसे देखकर मुझे ऐसा लगा कि आज मेरी सभी जिज्ञासाओं का समाधान हो जाएगा और मैं लेटे - लेटे ही समाधिस्थ होकर उस यंत्र को निहारने लगी।

उन दिनों टीवी पर इसका नया- नया विज्ञापन आना शुरू हुआ था। टीवी देखने की शौकीन मैं विज्ञापन भी दीदे फाड़कर देखा करती थी। उस विज्ञापन में 'ऑल आउट' एक मेढ़क की तरह कूद - कूद कर लम्बी जीभ से मच्छरों को पकड़ कर उदरस्थ करता जाता था और बच्चे- बड़ें चैन से खर्राटे भरते सोते रहते थे। यह विज्ञापन मुझे बहुत हैरान करता था।

मैंने मम्मी से कई बार इसे लाने के लिए कहा था ताकि उसके इस अद्भुत कारनामे को स्वयं अपनी आंखों से देख सकूं पर मम्मी हर बार गुड नाईट की नीली टिकिया लेकर आ जाती थीं। आखिरकार आज मुझे यह सुअवसर प्राप्त हो गया था। मैं देर रात जागकर उसके मच्छर पकड़ने के करतब का इंतजार करती रही पर मुआ अपनी जगह से एक इंच भी न सरका ऊपर से अपनी एक आंख की लाल बत्ती जलाकर मुझे चिढ़ा और रहा था।झुंझलाकर आखिरकार मैं सो गई। सुबह जागने पर सबसे पहले जाकर मामाजी से शिकायत की, " यह क्या उठा लाये आप! बेकार है एकदम।"

" क्या मच्छरों ने परेशान किया रात में?", कहते हुए मामाजी ने उसे स्विचबोर्ड से निकालकर चेक किया पर उन्हें कुछ समझ नहीं आया।

" रात में एक बार भी नहीं हिला यह, मच्छर पकड़ना तो दूर की बात है। ", मैंने गुस्सा होते हुए सारी बात बताई तो एक पल तो मामाजी मेरा चेहरा देखते रहे उसके बाद कमरे में उठे हँसी के जोरदार तूफान ने मुझे बता दिया था कि मामाजी को मामू समझने के चक्कर में मेरा खुद का पोपट बन चुका है।




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