Meera Parihar

Comedy

4  

Meera Parihar

Comedy

नयी शुरुआत,नया साल-भाग 2

नयी शुरुआत,नया साल-भाग 2

5 mins
250



...वीना जब भी झगड़े जैसी स्थिति बनती अपनी किताब उठाकर छत पर पहुंच जाती। घर से सटा हुआ ही लल्लन का भी घर था , उसका घर एक मंजिल और ऊपर बना हुआ था । अतः उस छत से वीना के घर की सभी गतिविधियां आसानी से दिखाई देती थीं। लल्लन भी कोई बहुत पढ़ने वाला मेहनती लड़का नहीं था । अपनी कमजोरियां छिपाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाना उसने भी अपने ही समाज से सीखा था। किसी तरह से अपने शहर से दूर कहीं गाँव से जहाँ पर नकल के ठेके स्कूलों में उठा करते थे। वहीं से इन्टरमीडिएट पास कर लिया था। एक नंबर का महागप्पी लड़कियों को फंसाने के हथकंडे उसने अपने जैसे यार दोस्तों से सीख लिए थे। कभी किसी की मोटरसाइकिल मांग कर ले जाता तो कभी किसी की गाड़ी ले जाकर अपने दोस्तों पर रुआब जमाना उसे बखूबी आता था। लड़कियां उसके स्टाइल और रहन-सहन देख कर दीवानी हो जाती और उससे दोस्ती कर लेतीं। उनकी ख्वाहिशों को वह लूट खसोट कर के पूरा करता और नये शिकार की तलाश में अपने सभी दांवपेंच चलता रहता।

"हेलो ! क्या तुम मुझे सुन पा रही हो ? " उसने छत से झांकते हुए वीना को पुकारा।


वीना ने आवाज की दिशा में देखा तो ऊपर लल्लन को देखकर कहा, "कोई काम नहीं तेरे पास क्या? दिखाई नहीं दे रहा। मैं पढ़ रही हूँ।"


....." छत पर कौन पढ़ता है रे, मैं तो नहीं पढ़ता। जब तक इधर उधर सुंदरियां नहीं देख लेता, खाना भी नहीं खाता।"


...." जा जा किसी और को देख , बहुत देखे हैं तेरे जैसे आवारा! तू क्या समझता है ? मुझे मालूम नहीं है माल से कपड़े ले आता है फिर पहन कर रोब दिखाता है लड़कियों को और दूसरे दिन ही बापस कर आता है। ये लो जी ! छोटी है साइज में ! बड़ी है! हुँ ...."


...... नीचे माँ को लगा कि कोई है ऊपर जिससे वीना बातें कर रही है। उन्होंने छोटी बेटी मीना को ऊपर भेज कर पता करवाया। " जा देख कर आ ! कौन है ऊपर ?"


  .... मीना ने ऊपर जाकर देखा तो लल्लन छत पर खड़ा था और वीना से बातें कर रहा था। उसने नीचे जाकर माँ को बताया। 

  

  वीना भी समझ गयी थी ,अब क्रोध का ठीकरा उसके सिर पर फूटने वाला है। अतः उसने पहले से ही अपने को इस स्थिति के लिए तैयार कर लिया। नीचे से आवाज दी मम्मी ने। " अरी ओ डाक्टरनी! नीचे आ जा , बहुत पढ़ाई कर ली....पूरे मुहल्ले में तू ही नाम करेगी। "


....... वीना भी उछलती हुई सीढ़ियां उतरने लगी । हाथ में किताब लगी थी। मांँ ने देखा तो शुरू हो गयीं ," एक तौपे ई जवानी चढ़ी है,और ऊंची उछल ओर कूद जा नीचे ।"


   ....... वीना ने भी तीन सीढ़ियां ऊपर से ही कूद गयी और हंस कर कहने लगी। "देखो अपनी पी टी ऊषा , बढ़िया कूदी हूँ न ।"


......." ऊपर कौन से ख...से बतरा रही थी, कब से चल रहा है ये, बता ? पढ़ रहे हैं , अरे पढ़ाई एकांत में बैठ के होती है कि चौंड़े में ? "


...... बस फिर क्या था ,वीना ने भी अपना सिर गोल घुमाया और पूरे बाल बिखर कर उसके मुँह पर आ गये। " " कहने लगी ।‌ "क्या बोली बहू ? अपनी जबान को काबू में रखा कर । अरे मैं मर गई हूँ तो का तू छोरी ए मारि डारेगी, सब देखि रही हूँ ऊपर से तेरी ज्यादती । खबरदार जो आगे से ज्यादा ऊंची आवाज में बोली वीना से ।"


.. ...तरकीब काम कर गयी थी । वीना की माँ हाथ जोड़कर माफी माँगने लगीं। माँ जी ! अपनी नातिन पर भी नजर रखे रहना। बहुत ज्यादा पर निकल आये हैं इसके। 


......" हाँ हाँ ठीक है। अब छोरी पै गंगाजल के छींटा डारिके उठा लै और तख्त पर लिटा दे, ले जाकर। "


......" एक दो पड़ोसन भी पहुँच गयी थीं। क्योंकि सबसे छोटी बेटी जाकर सबको बता आयी थी कि वीना दीदी पर दादी आ गयी हैं। सबने मिलकर उस पर गंगाजल छिड़का तो उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और वहीं जमीन पर फ़ैल कर लेट गयी। आंखें खोल कर आसमान निहारने लगी। मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो कहकर सिर इधर-उधर हिला कर अपनी बेचैनी दिखाने लगी। सभी महिलाएं उसे उठा रही थीं पर वह उठ नहीं पाई। सबने हार मान ली और कहने लगीं। वीना की मम्मी! ऊपरी हवा है , शरीर छोड़ कर जाएगी तभी तो हल्की होगी छोरी। 


.... वीना समझ चुकी थी कि पड़ोसिनें भी उसकी एक्टिंग के झांसे में आ चुकी हैं । निशाना सही बैठा है और अपनी बातें मनवाने का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है। उसे अब अपनी इस कला को और निखारना है और उन सवालों के बढ़िया से जबाव तैयार करने हैं जो उससे पूछे जाते हैं। 


.....शाम को जब पिता झम्म़न लाल जी घर पहुँचे तो घर पहुंचने से पहले ही वीना के सिर पर उसकी दादी के आने की बातें पता चल गयीं। कुछ समझदार लोगों ने सलाह दी कि उसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखा देना चाहिए। घर में पत्नी का स्वभाव तो बिगड़ ही चुका था और अब ये समझदार बेटी भी उनके हाथ से निकली जा रही है। चिंता की लकीरें उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थीं। उन्हें देवी, देवता का किसी के सिर पर आना मस्तिष्क की गड़बड़ी लगती थी और वे इन सब बातों को कमजोर मानसिक स्थिति की निशानी कहा करते थे लेकिन आज वे स्वयं अपनी बेटी के जाल में उलझ गए थे। उन्होंने गेट से ही आवाज लगायी, "वीना ओ वीना ! देख तो गोलगप्पे की ठेल! बाहर ही है,आजा।"


......" नाम सुनते ही वह अपनी छोटी बहनों को आवाज लगाते हुए, मीना, टीना, गुड़िया ! चलो !..चलो ! पानी के बतासे खाएंगे।"


......माँ राम लली ने स्वयं को उपेक्षित महसूस किया क्योंकि गोलगप्पे तो उनको भी पसंद हैं मगर बच्चों को देखने के चक्कर में उनकी अभिरुचि, ख्वाहिश की किसी को भी परवाह नहीं है। उनके पति को तो जैसे उनसे कोई मतलब ही नहीं रह गया है। वह भले और उनकी बेटियां भलीं,वह किस खेत की मूली हैं सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन और उनकी परवरिश करने वाली आया बनकर रह गयी हैं। यह सोचकर वह चाहे जब अवसाद की अवस्था में पहुँच जाया करती हैं।


क्रमशः 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy