हरि शंकर गोयल

Fantasy Others

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हरि शंकर गोयल

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न्याय अन्याय

न्याय अन्याय

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"सुंदर का ढाबा" जयपुर में एक जानी पहचानी जगह बन गई थी। यहां का खाना बड़ा स्वादिष्ट होता है। एक ब्रांड बन गया था "सुंदर का ढाबा"। सुंदर ने गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया था। "बढ़िया भोजन और मीठा व्यवहार " उसका "ध्येय वाक्य" था। अगर किसी ने सुंदर के ढाबे का भोजन नहीं किया तो फिर उसने किया क्या ? इसलिए उसके ढाबे में भीड़ बहुत रहती थी। चूंकि स्टाफ बहुत सीमित था इसलिए सर्विस थोड़ी खराब थी। लेकिन लोग इसके बावजूद वहां पर खाना खाना पसंद करते थे। शनिवार और रविवार को भीड़ थोड़ी ज्यादा हो जाया करती थी। 


शनिवार का दिन था और लंबी कतार लगी हुई थी। चार लोग ढाबे की ओर बढ़े। एक खाली टेबल देखकर चारों उस पर बैठ गए। हरिया और चार पांच वेटर अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा तेज गति से सर्विस कर रहे थे लेकिन लोग ज्यादा थे तो वेटिंग टाइम बहुत ज्यादा लग रहा था। इन चारों को शायद जल्दी थी इसलिए वे बार बार वेटर को अपने पास बुलवा रहे थे। मगर वेटर पहले आने वालों को पहले डील कर रहा था। जब काफी देर हो गई तो इन चारों में से एक ने रौबीली आवाज में कहा "अरे कोई है भी या नहीं ? कोई ऑर्डर लेगा या नहीं?" 


इतने में एक वेटर उनके पास गया और कहा "सर , अभी थोड़ा वेट करना पड़ेगा लगभग 20 मिनट" 

"20 मिनट तो हमको आए हुए हो गये। अब 20 मिनट और लगेंगे क्या?" 

"जी, श्रीमान"। शांत जवाब था। 


वे चारों जने इसी ढाबे का खाना खाने आए थे इसलिए मन मसोस कर रह गए और अपनी बारी का इंतजार करने लगे। नंबर पर उनकी टेबल पर खाना आ गया और वे खाना खाने लग गए। खाना खाने के बाद वेटर बिल ले आया। बिल 1500 रुपए का था। पैसे कौन दे ? इस पर सब मौन हो गए। वेटर ने पैसे मांगे तो वे चारों उठकर जाने लगे। वेटर ने एक का हाथ पकड़ लिया और कहा "साहब खाने के पैसे दिए बगैर आप यहां से नहीं जा सकते हो " 

"तेरी इतनी मजाल साले कि तू हमारा हाथ पकड़ता है। तू मुझे जानता नहीं है क्या?" 

"मैं नहीं जानता हूं साहब आपको" 

" मेरा नाम विक्की है और मैं यहां का एक नामी गिरामी वकील हूं। अब समझा ? और भविष्य में मुझसे पंगा मोल मत ले लेना नहीं तो सीधा अंदर करा दूंगा"। 


जब उसने यह कहा कि वह एक नामी वकील है तो बेचारा वेटर हरिया डरकर उससे दूर हो गया। इतने में दूसरे वेटर और दूसरा स्टाफ भी वहां पर आ गया। ढाबे का मालिक सुंदर भी वहां पर, आ गया और सारा माजरा समझा। इतने में वकील ने झट से प्रकरण में एक नया मोड़ दे दिया और जोर जोर से चिल्लाते हुए कहने लगा 

"ये सड़ा हुआ खाना खिलाकर मारोगे क्या हमको ? हरामखोरों, तुमने हमको समझ क्या रखा है ? हम लोग कोई आवारा सांड हैं क्या जो यह सड़ा हुआ खाना खाएंगे और पैसे भी देंगे। वकील हूं , कोर्ट में खींच लूंगा और वो हाल करूंगा जो तुम्हारी सात पुश्तें भी याद रखेंगी"। 


हरामखोर गाली सुनकर सुंदर तैश में आ गया। वह भी कड़ककर बोला "हरामखोर किसको बोला बे ? तू वकील है तो क्या फोकट में चरेगा? मैंने क्या यहां धर्मादा खोल रखा है जो तेरे जैसे गुंडे बदमाशों को खिला पिला कर सांड बनाऊं?" 


वकील को इतनी उम्मीद नहीं थी कि एक ढाबे का मालिक उसे गुंडा बोल जाएगा। हरामखोर बोलने का एक वकील को अधिकार है क्योंकि वह वकील है एल एल बी। लेकिन एक अनपढ़ से ढाबेवाले को कोई अधिकार नहीं है वकील को कुछ भी कहने का। गुंडा और सांड शब्द सुनकर वकील महोदय का दिमाग घूम गया और उसने आव देखा ना ताव बस, एक झन्नाटेदार थप्पड़ सुन्दर के गाल पर रसीद कर दिया। 


सुंदर इसके लिये तैयार नहीं था इसलिए वह नीचे गिर पड़ा। इतने में सभी वेटर और दूसरा स्टाफ उन चारों पर पिल पड़ा। वकील महोदय की सारी "बहस" वहीं पर करा दी और फैसला भी सुना दिया गया। एक हारे हुए वकील की तरह उसने धमकी दे डाली कि उसके चाचा के बेटे के साले के मामा के बहनोई के दामाद का बेटा हाईकोर्ट का जज है। उससे कहकर वह सबको सबक सिखाकर रहेगा। और वे सब वहां से चले गये। 


सुंदर ने सोचा कि बात वहीं पर खत्म हो गई है। बस , 1500 रुपए के खाने का पेमेंट ही तो नहीं आया है। कोई बात नहीं। धर्मादे में लिख देंगे। ऐसे रोज दस बीस भूखे आदमी आते ही हैं जिन्हें वह बड़े प्रेम से खाना खिलाता है। उसे आज पता चला कि वकील भी उसी श्रेणी में आते हैं। 


रात को करीब बारह बजे जब वह ढाबा बंद कर रहा था तो वह वकील पुलिस को साथ लेकर आया और जोर जोर से चिल्लाने लगा। थानेदार ने भी सुंदर को चार गालियां निकाली और गिरफ्तार करने की बात कही तब सुंदर ने सब वाकया कह सुनाया और अपनी बात को साबित करने के लिए सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग भी दिखा दी जिसमें वकील सुंदर को थप्पड़ मारते हुए दिख रहा है। 


अब थानेदार कन्फ्यूज हो गया। झगड़ा शुरु किया वकील ने। खाना भी खाया , पैसे भी नहीं दिये और मारपीट भी की। फिर भी थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी वकील ने और ऊपर, से किसी अधिकारी का फोन भी करा दिया। लेकिन मामला एक वकील का था तो कार्रवाई तो करनी ही थी इसलिए थानेदार ने सुंदर से कहा "थाने तो चलना ही पड़ेगा तुम्हें" 

"किसलिए थानेदार जी। मैं खाना भी खिलाऊं, पैसे भी नहीं लूं , गाली और पिटाई भी खाऊं। और ऊपर से थाने भी जाऊं?" 

"वो सब नहीं पता मुझे। वकील साहब ने रिपोर्ट दर्ज कराई है" 

"तो मेरी भी रिपोर्ट दर्ज कर लो। मैंने सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग आपको दिखा दी है। अब तो सब कुछ स्पष्ट है" 

"फिर भी रिपोर्ट लिखवाने तो चलना ही पड़ेगा ना।" 


और सुंदर ने एक क्रॉस एफ आई आर दर्ज करा दी। थानेदार ने जांच कर कार्रवाई करने की बात कहकर दोनों को थाने से अपने घर भिजवा दिया। 


दूसरे दिन वकील अपने बार संघ के अध्यक्ष के पास गया और कहा कि कल रात सुंदर ढाबे के मालिक ने उसके साथ मारपीट की थी। बार संघ का अध्यक्ष तुरंत माजरा समझ गया क्योंकि थोड़े दिन पहले वह भी अपने परिवार के साथ उस ढाबे में गया था और पैसे देने के नाम पर आंय बांय करने लगा तो उसकी पत्नी ने उसे कहकर पैसे दिला दिए। अब इस जूनियर वकील का केस आ गया है तो अब उस ढाबे वाले को सबक सिखाने का समय आ गया है। यह सोचकर उसने तुरंत कार्य स्थगन का आदेश बना दिया और जिला जज से लेकर मुंसिफ, एसडीएम सबको उसकी प्रति भिजवा दी। सब न्यायालयों में काम बंद हो गया। जो लोग अपने अपने केसों में सुनवाई के लिए, गवाही के लिए, जवाब के लिए आए थे उन्हें बैरंग लौटना पड़ा। जेल से जिन अभियुक्तों को तारीख पेशी के लिए बाहर निकाला गया उन्हें पूरी सुरक्षा के साथ जेल में वापस भेज दिया गया। 


वकीलों ने एक ज्ञापन मुख्यमंत्री के नाम तैयार किया जिसमें निम्न मांगें रखी गई 

1 सुंदर ढाबे के मालिक और समस्त कर्मचारियों की तुरंत गिरफ्तारी की जाये। 

2 ढाबा अवैध चल रहा है इसलिए आज ही बुलडोजर से गिराया जाये 

3 पुलिस पर विश्वास नहीं है इसलिए वकीलों की एक एस आई टी गठित की जाये जो तीन दिन में जांच करके दे देगी जिसके आधार पुलिस चार्ज शीट दाखिल करे 

4 सभी होटलों में वकीलों को फ्री खाना खाने का आदेश जारी किया जाये 

5 वकील को क्षतिपूर्ति के लिए पचास लाख रुपए तुरंत दिलवाये जायें। 

अंत में लिख दिया गया कि जब तक ये मांगें पूरी नहीं होंगी तब तक ना केवल कोर्ट बंद रहेंगे बल्कि बाजार भी बंद रहेंगे। 


सारे वकीलों ने कलेक्ट्रेट के सामने धरना प्रदर्शन कर दिया। पुराने टायरों को जला दिया। आते जाते वाहन क्षतिग्रस्त कर दिए। जबरन बाजार बंद करवा दिए। कुछ ऑटो, रिक्शा वगैरह में बैठे लोगों को पीट दिया और ऑटो को आग लगा दी। पुलिस मूक दर्शक बनी सब कुछ देखती रही। 


सरकार के स्तर पर इस विषय पर मंथन होना शुरू हुआ और कलेक्टर से रिपोर्ट देने के लिए कहा गया। संभागीय आयुक्त को मौके पर वकीलों से वार्ता के लिए भेजा गया मगर वकीलों ने मना कर दिया कहा "मुख्य सचिव" से नीचे किसी से बात नहीं करेंगे। दूसरे दिन पूरे प्रदेश में हड़ताल का आह्वान कर दिया गया। 


बार संघ के अध्यक्ष ने सभी चैनलों और प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को बुलाकर प्रेस कांफ्रेंस की और पुलिस, प्रशासन की तानाशाही प्रवृति पर एक लंबी चौड़ी तकरीर की। मुख्यमंत्री से कलेक्टर और एस पी के तुरंत स्थानांतरण की मांग की गई। सभी न्यूज चैनलों में यह घटना ब्रेकिंग न्यूज के रूप में चलने लगी। 

अगले दिन सभी राष्ट्रीय और प्रादेशिक अखबारों की हेडलाइंस बन गई यह घटना। जब अखबार इस घटना को इतना बड़ा बता रहे हैं तो हाईकोर्ट को तो बीच में आना पड़ेगा ना। वकीलों ने एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में लगा दी और हाईकोर्ट ने तुरंत एडवोकेट जनरल से जवाब मांगा। एडवोकेट जनरल ने दो दिन का समय मांगा पर हाईकोर्ट ने उन्हें दो घंटे का समय दिया। चूंकि दो घंटे में जवाब आना नहीं था इसलिए एकपक्षीय आदेश जारी कर दिया गया। 


सुंदर और उसके सभी कर्मचारी जेल में हैं। उनके बीवी बच्चे भी जेल में हैं। ढाबे पर बुलडोजर चल गया है। वकील को पचास लाख रुपए क्षतिपूर्ति के सरकार ने दे दिए। अब सरकार और वकीलों के बीच इस बिन्दु पर वार्ता जारी है कि वकीलों को होटल ढाबों में फ्री खाना कैसे दिया जाये। हाइकोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 30 जून को रखी है। 


(यह कहानी काल्पनिक है) 



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