नया साल
नया साल
हर जगह ख़ुशी उल्लास का माहौल है क्योंकि आया नया साल है। मैं भी दोस्तों संग आज एक पार्क में घूमने आया। हर जगह सिर्फ भीड़ ही भीड़ दिख रही। सब बच्चे आपस में खेल रहे। कोई फुटबॉल तो कोई क्रिकेट के मज़े ले रहा है।
हम सब भी पार्क में आराम से बैठे अपने आइस क्रीम का मज़ा ले रहे हैं। दोपहर का समय है धूप भी आज अच्छी है।
आज लग रहा सूरज देवता भी नए साल के रंग में रंगे है और घर से बाहर निकले है पूरे एक सप्ताह बाद। सबको सर्द के मौसम में गर्मी है अनुभव करवाने।
वैसे भी इस खूबसूरत मौसम में आइस क्रीम खाने का अलग मज़ा है।
मैं अपने दोस्तों के साथ वापस लौटने के लिए बाहर निकल ही रहा था कि नज़र एक 10 साल के छोटे से बच्चे पर पड़ी जो गुब्बारे बेच रहा था। जहां एक ओर सब बच्चे नए साल के खुशी में खेल रहे नाच रहे थे, वहीं एक बच्चा अपने और अपने परिवार के पेट के लिए गुब्बारे बेच रहा था। अजीब सा कानून है किस्मत और इस कुदरत का।
क्या क्या लिख देता है भाग्य में किसी के और कोई भला कैसे जान पाए क्या कब होने वाला।
वो अपने गुब्बारे लेकर हर एक बच्चों के माता पिता के पास ले जाता कि कोई गुब्बारे ख़रीद ले। सबसे विनती करता लेकिन सब उसको डाँट कर भगा देते।
मैं खड़े सब देखता रहा। कैसे सब उसको डॉट देते लेकिन वो फिर मुस्कुराते हुए अलग लोगो के पास जाकर वही बात दोहराता था।
इसे कहते हैं मजबूरी जब आप सब सहन करते हो शायद यही है असली ज़िन्दगी जब आप चाह कर कुछ नहीं करते क्योंकि आप हालात के आगे झुके है।
तभी वह मेरे पास आया बोला ,"भैया! आप ले लो गुब्बारे।"
मैं चूंकि कब से उसकी हरकतें देख रहा था। मैंने अपने दोस्तों से कहा कि वो भी उसके गुब्बारे ले लें और मैंने भी लिए। मुश्किल से उसके गुब्बारे पचास रुपये के ही थे।
हम सबने उसको 100 रुपये दिये और कहा पचास हमारी तरफ से रख लो। उसके चेहरे की वो मुस्कान बता रही थी कि हमारे वो महज सौ रुपये ने क्या कर दिया था? उसने कहा,"आप सबने मेरा नया साल बना दिया।"
इस से ज्यादा और क्या सुनना था लेकिन शायद मुझे लगता है मैंने अपना नया साल बना लिया।