Akanksha Gupta

Tragedy

3.2  

Akanksha Gupta

Tragedy

निवस्त्र

निवस्त्र

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तरुणा को निवस्त्र किया जा रहा था। सभी पुरूष एक एक कर उसके वस्त्र उतार कर अपनी वासना की आग में घी डाल रहे थे। सबके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी। सभी उसके अंगों को किसी ताजे गोश्त की तरह चबाने को तैयार बैठे थे।

तरुणा की आंखों के आंसू सूख चुके थे। भावहीन हो चुके चेहरे पर किसी शव की भांति मूर्छा छाई हुई थी। चेहरे का रंग पीला पड़ चुका था। उसके केश जटाओ की तरह खुले हुए थे। हाथ और मुंह पर चोट के निशान थे। होंठो से खून रिस रहा था। तपती हुई जमीन पर चलते हुए उसके पैरों में छाले पड़ गए थे।

यह दृश्य देखने के लिए चारों ओर भीड़ इकट्ठा थी। जहां स्त्रियां यह दृश्य देखकर शर्मसार हो रही थीं मानो कोई उन्हें ही निवस्त्र कर रहा हो, वही नवयुवकों मन मे स्त्री के शोषण की इच्छा को बल मिल रहा था।

इन सब कुकृत्य के बीच एक नन्हे बालक का रुदन वहां खड़ी स्त्रियों के हृदय को आंदोलित कर रहा था लेकिन किसी में भी उस बालक की भूख शांत करने का साहस नही हो रहा था।

जब तरुणा को निवस्त्र किया जा चुका था उसके बाद सरपंच ने उसे एक कमरे में बंद कर उसके साथ कुकृत्य किया। फिर सभी पुरुषों ने मिलकर उसके शरीर का भोग कर अपनी वासना को शांत किया। जब सबकी इच्छा पूरी हो गई तो भी उन लोगों का कृत्य यही समाप्त नहीं हुआ। 

उसके बाद उन सभी ने मिलकर तरुणा को बालों से घसीटते हुए कमरे से निवस्त्र बाहर निकाला और वहाँ जमा भीड़ के सामने किसी लाश की भांति फेंक दिया। उसके बाद अपने कृत्य पर अभिमान करते हुए सभी पुरूष वहां से चले गए।

वहां खड़ी स्त्रियों ने तरुणा को वस्त्र पहनायें। उसके मुंह पर पानी की छींटे मारकर उसकी चेतना लौटाई। जब उसकी चेतना लौटी तो उसके क्रंदन से वहां का वातावरण गूंज उठा। वहां पर उपस्थित हर एक स्त्री का हृदय चीत्कार कर उठा। उसकी वेदना को शांत करने के लिए एक स्त्री ने उसकी गोद में उसके निवस्त्र बालक को दिया। उसे देखकर तरुणा के मन की वेदना संकल्प में बदल गई। उसके चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट आ गई। वह जान गई थी कि इस पुरूष प्रधान समाज ने प्रेम विवाह कर अपने गांव लौटी तरुणा को निवस्त्र नही किया बल्कि अपनी कुंठित मानसिकता को इस संसार के समक्ष निवस्त्र किया है।


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