निमंत्रण
निमंत्रण
कुसुम जी बड़ी धार्मिक और दयालु महिला थीं। हर रोज़ घर से थोड़ी दूर स्थित मंदिर में जाती। यथा संभव सभी की सहायता करतीं। मंदिर के सभी सेवादार उनका बहुत आदर करते थे।
अभी पिछले महीने की बात है ..उन्होंने देखा कि राजेश नामक सेवादार को मंदिर के प्रधान ने नौकरी से निकाल दिया। इल्ज़ाम था कि वह मंदिर के दान पात्र से पैसे चुराता था। मंदिर के बाहर खड़ा होकर वह बेतहाशा रो रहा था। कह रहा था गांव में उसके बूढ़े बीमार माँ बाप हैं, बीवी और दो छोटी छोटी बेटियां हैं। अब उन्हें पैसे कैसे भेजेगा। माँ भी बीमार है। कुसुम जी पिछले तीन साल से उसे जानती थीं। उन्हें तो वह बड़ा भलामानस लगता था। उन्होंने प्रधानजी से इस बारे में बात की तो उन्होंने साफ मना कर दिया । वे कह रहे थे कि चोर के लिए मंदिर में कोई स्थान नहीं। कुसुम जी ने राजेश को एक मौका और देने की प्रार्थना की। प्रधानजी भड़क गए। गुस्से से बोले," माता जी, मैं इसे मंदिर में नौकरी नहीं दूंगा। आप इसकी सिफारिश क्यों कर रही हैं ? आपको ज़्यादा हमदर्दी है तो अपने घर में काम दे दो। "
कुसुम जी के अहम को ठेस लगी। उन्होंने राजेश को सुबह काम पर आने को कह दिया। पति के घर आने पर सारी बात बताई। उन्होंने भी राजेश को काम पर रखने से मना किया। किंतु कुसुमजी अपनी जिद पर अड़ी रहीं।
राजेश ने आ कर पूरे घर का काम संभाल लिया। कुसुमजी बहुत खुश थीं कि उन्होंने सही निर्णय लिया। अब वे घर की तरफ से निश्चिंत हो गईं थी और काफी समय मंदिर और समाज सेवा में गुज़ारने लगीं। छः महीनों में राजेश ने उनका मन और भरोसा पूरा जीत लिया था।
आज एक स्कूल ने उन्हें विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। 3-4 घंटे के बाद जब घर लौटीं तो सन्न रह गयीं। दरवाज़े खुले थे। गोदरेज की अलमारी खुली थी। उनके गहनों का बॉक्स व राजेश दोनों गायब थे। उनका सिर घूम गया। डरते डरते पति को फ़ोन लगाया। उन्होंने नाराज़ होते हुए खूब डांट लगाई और कहा," अब रो क्यों रही हो ? तुम्हीं ने तो निमंत्रण भेजा था... कि आओ बैल जी ! मुझे मारो। "