नीची जात
नीची जात
"रज्जो बाहर सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं, दो चाय माँग रहे हैं जरा दे आओ... और हाँ बिस्कुट भी दे देना साथ में।" शगुन ने काम वाली से कहा।
"ठीक है मैडम जी चाय बना रही हूँ आप कप दे दीजिए।" रज्जो ने शगुन से कहा।
"वो रखे तो हैं रैक में..." शगुन ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"मैडम जी वो तो आप लोगों के लिए हैं ना।" शगुन ने कहा।
"उन्होंने ने भी कप में चाय ही पीनी है हमारी तरह।" शगुन ने थोड़ा तल्ख होते हुए कहा।
"पर मैडम जी वो जमादार हैं।" रज्जो धीरे से बोली।
"तो...?" शगुन ने पूछा।
"वो मैं कह रही थी के ऐसे लोगों के कप अलग रखा करिये, नीची जात है ना।" रज्जो ने अपना ज्ञान बघारा।
"मेरे सामने ऐसी बातें मत किया करो, मैं नहीं मानती ये जात पात... ये ऊँच नीच।" शगुन ने रज्जो को समझाते हुए कहा।
"आप भले ना माने... पर समाज तो माने है।" रज्जो ने धीरे से कहा।
"अच्छा... चल जैसे तू कहती है... आज से मैं भी मानूंगी।" कुछ सोच कर शगुन ने कहा।
रज्जो के चेहरे पर जीत की मुस्कान आ गई... पर प्रश्न वही था कि अब क्या किया जाए। "ऐसा करो... अब तो इनमें से ही दो कप इस्तेमाल कर लो... फिर तीनों कप बाहर वाश बेसिन के पास जो खिड़की है उस पर रख देना।" शगुन ने रज्जो को परेशान देख कर कहा।
"बंदे तो दो हैं ना? फिर तीन कप काहे बोले?" रज्जो ने पूछा।
"तीसरा कप तुम्हारा... तुम्हारी जात भी तो हमारी जात से नीची है ना।" शगुन ने रसोई से निकलते हुए कहा।।