नई राह की ओर
नई राह की ओर
"क्या किया आपने ये मम्मी और वो भी इस उम्र में? कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा हमें, सब दोस्त मेरा मज़ाक बना रहे हैं। इस से अच्छा होता कि मैं अनाथ होता" , अपने इकलौते बेटे शुभम की ज़बान से निकले ज़हर बुझे शब्द सिया के कान और दिल में आग लगा रहे थे।
"क्या कमी रखी थी मैंने? हर तरह का ऐशो आराम, फॉरेन ट्रिप्स, मंहगी ज्वेलरी, नौकर चाकर सब था तुम्हारे पास, फिर भी तुम बहक गई। पहले तो तुमने फ़ेसबुक पर दोस्ती करी और फिर अपने उस दोस्त को पैसे भी भेजे। पता नहीं कब से चल रहा है ये सब और पता नहीं तुम क्या क्या गुल खिला चुकी हो? ना सिर्फ तुमने गलत रिश्ता बनाया बल्कि वहां से धोखा खा कर पुलिस कंप्लेंट कर के हमारी शहर में बनी सारी इज्ज़त मिट्टी में मिला दी। मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता आज के बाद", ये सिया के पति शोभित के शब्द थे जो ये सब कहकर अपनी इमेज का डैमेज कंट्रोल करने अपने बेटे के साथ घर के बाहर चले गए।
और रह गई घर में सिर्फ सिया, अपने दुख और कड़वी यादों के साथ। बड़ी देर बाद सिया रोकर शांत हुई और पेपर, पेन ला कर शोभित और शुभम के लिए एक पत्र लिखने लगी, कुछ बातें लिख कर कहना आसान होता है क्योंकि बोलने में अक्सर अल्फ़ाज़ धोखा दे जाते हैं।
प्रिय शोभित और शुभम,
बड़ा गुस्सा आ रहा है तुम दोनों को मुझ पर कि मैंने तुम्हारी सारी इज्ज़त पर बट्टा लगा दिया। एक बार भी तुम दोनों ने पूरी बात पूछना और समझना नहीं चाहा। ज़रा सा विश्वास भी नहीं दिखाया मुझ पर, लेकिन मुझे अपनी बात कहनी थी सो ये पत्र लिख रही हूँ। उम्मीद है कि तुम दोनों पढ़ लोगे।
याद है शोभित, जब हमारी शादी हुई थी तो तब हमारे पास कुछ भी नहीं था। तुम्हारी छोटी सी नौकरी और साल भर में ही शुभम का जन्म। एक एक पैसा हम सोच समझ कर खर्च करते थे और तंगी फिर भी बनी ही रहती थी। लेकिन कभी हमें ऐसा नहीं लगा कि जीवन बड़ा कठिन है क्योंकि हम दोनों एक दूसरे के साथ थे। हमारे प्यार के सामने जीवन की कठिनाइयां और पैसे की कमी सब ख़तम सी हो जाती थी।
फिर शुभम दो साल का हुआ और अपने बेटे को दुनिया भर के सुख देने के लिए तुमने नौकरी छोड़ अपना छोटा सा बिजनेस करने की सोची। मैंने भी तुम्हारा पूरा साथ दिया। और भगवान की कृपा से हमारा बिजनेस चल पड़ा और अगले दस सालों में तुम शहर के अच्छे बिजनेसमैन माने जाने लगे।
एक कमरे के छोटे से घर को तुमने बंगले में बदल दिया और स्कूटर की जगह लंबी कार ने ले ली थी और साथ ही तुम्हारे साथ की जगह सजी संवरी दीवारों ने ले ली। तुम इतने बिज़ी हुए की मुझे और शुभम को भूल ही गए।शुभम को मैंने कैसे बड़ा किया ये तुम्हे पता ही नहीं। और जब भी तुमसे शिकायत करती थी तो एक ही जवाब मिलता था कि तंग हो तो एक नौकर और रख लो, जैसे कि नौकर तुम्हारा स्थान ले लेगा।
पैसे कमाने की धुन में तुम हमसे दूर हो गए। जब तक शुभम छोटा था तब तक उसके सहारे मेरा समय कट जाता था पर जब वो बड़ा हुआ तो वो भी तुम्हारे नक्शे कदमों पर चलता हुआ मुझे भूल गया। कई बार कोशिश की मैंने उसके साथ उसकी दुनिया में कदम रखने की पर वो हमेशा गुस्सा खा जाता था। याद होगा शुभम तुम्हें वो दिन जब तुम अपने दोस्तों के सामने मुझ पर चिल्लाए थे कि मम्मी मेरे कमरे में आने की ज़रूरत नहीं है, आप मुझे मेरे दोस्तों के सामने एमबेरेस करती हो। मुझे कितना सदमा लगा था इसका अंदाज़ा तुम नहीं लगा सकते।
कितनी बार मैंने तुमसे नौकरी करने की इजाज़त मांगी पर तुम्हारी इज्ज़त पर बट्टा लग जाता शायद जो तुम हर बार नौकरी की बात सुनते ही भड़क जाते थे। तुम्हे मैंने हर तरह से मनाने की कोशिश करी, पर तुम नहीं माने। मरने सी लगी थी मैं और किसी को मेरी फिक्र भी नहीं थी। डॉक्टर ने मुझे डिप्रेशन की शिकार बता दिया और मैं तुम दोनों को बता भी नहीं सकती थी, चिल्लाते तुम मुझ पर बस। और वहीं डॉक्टर के मिली एक महिला ने मुझे सोशल मीडिया ज्वाइन करने को कहा। फिर मैंने खुद को सोशल मीडिया की दुनिया में झोंक दिया। तुम ना सही, ये आभासी दुनिया ही सही।
यहीं पर मेरी दोस्ती रोहन से हुई। कॉमन ग्रुप्स और कॉमन शौक रखते थे तो धीरे धीरे हम दोस्त बन गए। बड़ा अच्छा लगता था उससे बात करना, ऐसा लगता था कि तपते मरुस्थल में बारिश की कुछ बूंदे पड़ गई हों। शुरुआत में तो उसके मुंह से सुने तारीफ़ के शब्द अनजाने से लगते थे और फिर धीरे धीरे उनकी आदत पड़ने लगी। मेरा मुरझाया सा मन खिलने लगा। ऐसा लगता था कि जैसे अकेलेपन की जेल की सलाखों से अब मुझे मुक्ति सी मिल गई है।
लेकिन रोहन सिर्फ मेरा दोस्त था। तुम दोनों शायद यकीन नहीं करोगे पर मैं आज तक रोहन से नहीं मिली। मुझे पता था कि तुम दोनों मेरी इस दोस्ती को गलत समझोगे इसलिए नहीं बताया, पर मैंने कभी छुपाने की कोशिश भी नहीं करी। पर तुम दोनों को मुझमें या मेरी ज़िन्दगी में कोई दिलचस्पी होती तो तुम देखते कि मैं कैसी हूँ, क्या कर रही हूँ।
खैर, बात रोहन की हो रही है और हां मेरा दोस्त गलत निकला। उसने अपने बिजनेस के लिए मदद मांगी और मैंने उसकी मदद करी। उसने वादा किया था कि वो पैसे वापिस कर देगा लेकिन जब लेने का वक़्त आया तो पता चला कि वो फ्रॉड है। बहुत धक्का लगा था मुझे, लगा जैसे अब कभी किसी पर भरोसा नहीं कर पाऊंगी और एक बार फिर से मैं अकेली रह गई।
फिर मुझे लगा कि रोहन ना जाने मुझ जैसी कितनी सियाओं को ठग चुका होगा और आगे भी ठगता ही रहेगा, तब मैंने पुलिस में रिपोर्ट करा दी ताकि रोहन को यहीं रोका जा सके। पता था मुझे कि तुम दोनों को मुझ पर बहुत गुस्सा आएगा लेकिन ये करना भी ज़रूरी था और वैसे भी लोग चाहे गलत मतलब निकालें, मैं सही थी और मेरे चरित्र में कोई खोट नहीं था। मेरा मकसद तुम दोनों की बेइज्जती करवाने का नहीं था, हो सके तो इसके लिए मुझे माफ़ कर देना।
लेकिन अब मैं तुम दोनों की ज़िन्दगी से हमेशा के लिए जा रही हूँ, वहां जहां सबको मेरी ज़रूरत हो और कद्र हो। मैंने एक अनाथाश्रम में रहकर वहां के बच्चे संभालने और पढ़ाने का फैसला लिया है। मैं वहां पहुंच कर तुम्हें वहां का पता दे दूंगी ताकि शोभित तलाक के पेपर्स वहां भेज सके।
एक बार फिर से माफी चाहती हूँ कि मेरी वज़ह से तुम्हें परेशानी हुई। अब आपको और मुझे नई ज़िन्दगी मुबारक हो।
सिया
इसके साथ ही सिया अपने बहते आंसुओं को पोंछ कर अपना सामान पैक करने चल दी एक नई राह की ओर।
